Sarhul 2022: सरहुल त्योहार प्रकृति को समर्पित है. इस त्योहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है. आदिवासियों का मानना है कि इस त्योहार को मनाए जाने के बाद ही नई फसल का उपयोग शुरू किया जा सकता है. इस बार सरहुल 4 अप्रैल को है. यह आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है.
सरहुल दो शब्दों से बना है- सर और हूल. सर मतलब सरई या सखुआ फूल. हूल यानी क्रांति. इस तरह सखुआ फूलों की क्रांति को सरहुल कहा गया. मुंडारी, संथाली और हो-भाषा में सरहुल को ‘बा’ या ‘बाहा पोरोब’, खड़िया में ‘जांकोर’, कुड़ुख में ‘खद्दी’ या ‘खेखेल बेंजा’, नागपुरी, पंचपरगनिया, खोरठा और कुरमाली भाषा में इस पर्व को ‘सरहुल’ कहा जाता है. इस बार सरहुल 4 अप्रैल को है. यह आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है.
सरहुल त्योहार प्रकृति को समर्पित है. इस त्योहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है. आदिवासियों का मानना है कि इस त्योहार को मनाए जाने के बाद ही नई फसल का उपयोग शुरू किया जा सकता है. “मुख्यतः यह फूलों का त्यौहार है.” पतझड़ ऋतु के कारण इस मौसम में ‘पेंडों की टहनियों’ पर ‘नए-नए पत्ते’ एवं ‘फूल’ खिलते हैं. इस पर्व में ‘साल‘ के पेड़ों पर खिलने वाला ‘फूलों‘ का विशेष महत्व है. मुख्यत: यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है. जिसकी शुरूआत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया से होती है.
सरहुल में प्रचलित है- नाची से बांची. यानी जो नाचेगा वही बचेगा. क्योंकि, मान्यता है कि नृत्य ही संस्कृति है. इसमें पूरे झारखंड में जगह-जगह नृत्य उत्सव होता है. महिलाएं लाल पाढ़ साड़ी पहनती हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि सफेद पवित्रता और शालीनता का प्रतीक है. वहीं, लाल संघर्ष का. सफेद सर्वोच्च देवता सिंगबोंगा और लाल बुरुबोंगा का प्रतीक है. इसलिए सरना झंडा भी लाल और सफेद ही होता है.
सेनगे सुसुन, काजिगे दुरंग…यानी जहां चलना नृत्य और बोलना गीत-संगीत है. यही झारखंड का जीवन है. हाड़तोड़ मेहनत के बाद रात में पूरा गांव अखड़ा में साथ-साथ नाचता-गाता है. ऐसे में बसंत में सरहुल को खुशियां का पैगाम माना जाता है. क्योंकि, इस समय प्रकृति यौवन पर होती है. फसल से घर और फल-फूल से जंगल भरा रहता है. मानते हैं प्रकृति किसी को भूखा नहीं रहने देगी.
सरहुल पूजा में केकड़ा का विशेष महत्व है. पुजारी जिसे पाहन के नाम से पुकारते हैं. उपवास रख केकड़ा पकड़ता है. केकड़े को पूजा घर में अरवा धागा से बांधकर टांग दिया जाता है. जब धान की बुआई की जाती है तब इसका चूर्ण बनाकर गोबर में मिलाकर धान के साथ बोआ जाता है. ऐसी मान्यता है कि जिस तरह केकड़े के असंख्य बच्चे होते हैं, उसी तरह धान की बालियां भी असंख्य होगी. इसीलिए सरहुल पूजा में केकड़े का भी विशेष महत्व है.