रांची : झारखंड में कार्यरत कोल कंपनियों सीसीएल, बीसीसीएल और इसीएल पर राज्य सरकार का विभिन्न मदों में एक लाख 36 हजार 42 (136042) करोड़ रुपये बकाया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी को पत्र लिखकर बकाया भुगतान कराने की मांग की है.
उन्होंने लिखा है कि भारी बकाया लंबित रहने से झारखंड घोर आर्थिक तंगी से गुजर रहा है. इस कारण विकास की परियोजनाएं, योजनाएं और सामाजिक-आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं. सीएम ने केंद्रीय मंत्री से आग्रह किया है कि इस मामले में दखल देते हुए वह कोयला कंपनियों को बकाया भुगतान करने का निर्देश दें.
सीएम ने अपने पत्र को ट्वीट भी कर दिया है. पत्र को सार्वजनिक करने से ठीक एक दिन पहले 25 मार्च को उन्होंने सदन में कहा था कि हम अपना हक
अगर बकाया पैसा नहीं मिला, तो कोयले की सप्लाई रोक दी जाएगी. मुख्यमंत्री ने कहा था कि एक तरफ केंद्रीय कोयला कंपनियां 1.36 लाख करोड़ बकाया राशि नहीं दे रही हैं, तो दूसरी ओर बिजली मद में डीवीसी की बकाया राशि के रूप में केंद्र सरकार बिना पूछे राज्य के आरबीआइ खाते से करीब तीन हजार करोड़ रुपये काट चुकी है. ऐसे में अब झारखंड को अपने हक की लड़ाई लड़नी होगी.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के पास खनन का जो बकाया है, उसका भुगतान नहीं करने के संबंध में कोयला मंत्रालय और नीति आयोग के साथ कई बार परामर्श किया है. इसके बावजूद भारत सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. इसलिए अब पत्र लिखा है.
सी एम ने लिखा है कि कोयला कंपनियां केवल कोयला ढुलाई का रॉयल्टी देती हैं, जबकि प्रोसेस्ड कोयले की रॉयल्टी नहीं देतीं. मुख्यमंत्री का कहना है कि डिस्पैच की बजाय रन ऑफ माइन कोल के आधार पर रॉयल्टी दी जा रही है.
इसे लेकर जिला खनन पदाधिकारी ने रजरप्पा, पिपरवार, कथारा, स्वांग, करगली और मुनीडीह वॉशरी को कई बार नोटिस भेजी है. लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. इस मामले को कोल कंपनियां हाइकोर्ट ले गयीं. जिस पर हाइकोर्ट ने राज्य सरकार को कोई एक्शन नहीं लेने के लिए कहा है. हालांकि बाद में हाइकोर्ट ने सरकार के पक्ष को सही बताया. इसके बावजूद कोल कंपनियां वाश्ड कोल के पैसे नहीं दे रही हैं. इस कारण बकाया बढ़कर 2900 करोड़ रुपये हो गया है.
सीएम ने लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट ने कॉमन कॉज मामले में 2.8.2017 को आदेश दिया था कि पर्यावरण स्वीकृति (इसी) लिमिट से अधिक खनिज उत्खनन अवैध माना जायेगा. सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2006 से किये गये अधिक उत्खनन पर केंद्र व राज्य सरकार को खनन कंपनियों को डिमांड नोट भेजने का निर्देश दिया था. इसके बाद कोल कंपनियों को जो डिमांड नोट भेजा गया, उसमें 32 हजार करोड़ रुपये है. यह बकाया भी कोल कंपनियों ने नहीं दिया है.
सीएम ने लिखा है कि कोल कंपनियों द्वारा राज्य में 32802 एकड़ जीएम लैंड और 6655.72 एकड़ जीएम जेजे लैंड का अधिग्रहण हो चुका है. लेकिन इन सरकारी भूमि का मुआवजा करीब 41142 करोड़ का भुगतान भी नहीं हुआ है. जिस पर केवल सूद की रकम ही 60 हजार करोड़ हो गयी है. कुल बकाया 101142 करोड़ रुपये केवल मुआवजा मद में हो गया है. सीएम ने किस कोलियरी पर वाश्ड कोल और कॉमन कॉज मद में कितना बकाया है, इसकी विस्तृत सूची भी भेजी है.
Posted By: Sameer Oraon