जूही स्मिता: पटना. कोविड आपदा का हमारे शारीरीक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ा है. पूरे देश के साथ-साथ बिहारवासियों के लिए भी मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा फरवरी-2020 में माननीय पटना उच्च न्यायालय द्वारा राज्य के मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा था- “ऐसा लगता है कि लोगों का मानसिक स्वास्थ्य और जिन्हें इलाज की जरूरत है, खासकर कोरोना महामारी के समय में, ऐसे लोग राज्य सरकार की प्राथमिकताओं में सबसे नीचे हैं.
ऐसी स्थिति में इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (आइजीआइएमएस) की डिपार्टमेंट ऑफ कम्युनिटी मेडिसीन की डॉ शुभम श्री द्वारा जरुरतमंद मरीजों को लगातार दी गयी निशुल्क काउंसेलिंग की पहल वाकई बेहद प्रेरणादायी है. यहां तक कि ड्यूटी के दौरान गत वर्ष 2021 और इस साल जनवरी-2022 में डॉ शुभम खुद भी कोरोना संक्रमित हुईं, लेकिन रिकवरी के बाद वापस पुन: अपनी ड्यूटी ज्वॉइन करके कई स्टूडेंट्स, कपल्स और डिप्रेशन के शिकार लोगों की मदद की.
पटना के बेली रोड इलाके की रहने वाली डॉ शुभम की मानें, तो मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अभी भी हमारे देश में पर्याप्त जागरुकता का अभाव है. इसी वजह से कोरोना काल में खास कर वर्ष 2020 और 2021 में कई सारे लोग डिप्रेशन का शिकार हुए. कई लोगों ने तो अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या जैसा खतरनाक कदम भी उठा लिया. कई लोगों की कोरोना से मौत हो गयी, जिसके बाद उनके परिजन पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिस्ऑर्डर (पीटीएसडी) या ग्रिफ रिएक्शन (अत्यधिक दुख के बाद उभरी भावात्मक प्रतिक्रिया) भी शिकार हुए. पोस्ट कोविड स्ट्रेस की वजह से हार्ट और बीपी के मरीजों की संख्या भी अचानक से काफी बढ़ गयी.
ऐसे में डॉ शुभम ने न सिर्फ हॉस्पिटल में, बल्कि अपने घर पर रहते हुए फोन के द्वारा भी मरीजों को पर्सनल व्हाट्स एप्प तथा टेलि काउंसेलिंग के माध्यम से काउसेंलिंग की सुविधा मुहैया करवायी. हॉस्पिटल की ड्यूटी निभाते हुए उन्होंने उसी दौरान ‘द काउंसेलर रूम’ नामक एक फेसबुक पेज भी शुरू किया. कुछ एनजीओ के साथ मिल कर लगातार क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी वेबिनार आयोजित किया. उनके साप्ताहिक और मासिक वेबिनार में 10 से 15 हजार की संख्या में लोग शामिल हुए. वह रोजाना हॉस्पिटल में सुबह 9.30 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक ड्यूटी करतीं. घर आने के बाद लोगों की काउंसेलिंग करती. उन्होंने कभी भी काउंसेलिंग सेशन में ब्रेक नहीं लिया. इस दौरान उन्हें घरवालों का भरपूर सहयोग मिला.
डॉ शुभम बताती हैं कि हॉस्पिटल में ड्यूटी पर रहने के दौरान वह खुद भी कोरोना संक्रमित हो गयीं. ऐसे में उन्होंने खुद को अपने परिवारवालों से आइसोलेट किया और सारे प्रोटोकॉल को फॉलो करते हुए उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभायी. इस दौरान भी उन्होंने अपनी काउंसेलिंग सेशन जारी रखीं. उस समय बुजुर्गों में होनेवाले स्ट्रेस डिसऑर्डर, बच्चों में गेमिंग डिसऑर्डर, युवाओं में डिप्रेशन इसके साथ इनसोम्नि्या, एंगजाइटी, डॉमेस्टिक एब्यूज, एग्रेशन के केस सबसे ज्यादा थे.
डॉ शुभम रोजाना 45 मिनट से लेकर एक घंटे तक काउंसेलिंग करती थीं. कोई दो सेशन में ठीक हो जाते थे तो कई 15 दिनों पर लगातार काउंसेलिंग लेते थे. डॉ शुभम बताती हैं मेंटल हेल्थ यानी मानसिक स्वास्थ्य को लेकर हमने कई जगहों पर जागरूकता अभियान भी चलाया. एमेंरजेंसी मैनेजमेंट के लिए कई अन्य प्रोफेशनल्स के साथ मिलकर कार्य किया.