धनबाद : धनबाद जिला में तृतीय वर्ग यानी लिपिक या समकक्ष पद पर पिछले 35 वर्षों से बहाली नहीं हुई है. चतुर्थ वर्गीय कर्मियों की अंतिम बहाली भी 16 वर्ष पहले हुई थी. इसके चलते यहां के सरकारी दफ्तरों में बाबुओं तथा अनुसेवकों की भारी कमी है. आउटसोर्सिंग कर्मियों के जरिए कई विभागों को चलाया जा रहा है.
प. बंगाल के पुरुलिया से अलग होने के बाद धनबाद जिला का गठन वर्ष 1956 में हुआ था. सूत्रों के अनुसार, अविभाजित बिहार के समय यहां पर उपायुक्त के नियंत्रण वाले कैडर की रिस्ट्रक्चरिंग वर्ष 1972 में हुई थी. इसके बाद जिला की आबादी काफी बढ़ी. कई नये प्रखंड भी बने, लेकिन तृतीय व चतुर्थ वर्गीय कर्मियों के स्वीकृत पद नहीं बढ़े.
धनबाद जिला में तृतीय वर्ग (लिपिक) कर्मियों की बहाली अंतिम बार वर्ष 1987 में हुई थी. तत्कालीन उपायुक्त मदन मोहन झा के कार्यकाल में बहाल हुए कई कर्मी आज रिटायरमेंट के कगार पर हैं. वर्तमान में उपायुक्त को छोड़ कर किसी भी अधिकारी के पास नियमित स्टेनो (आशुलिपिक) नहीं है.
स्थिति यह है कि वर्ष 1972 में स्वीकृत बल के अनुसार भी यहां कर्मी नहीं हैं.
16 वर्ष पहले हुई थी अनुसेवकों की नियुक्ति
1972 के बाद नहीं बढ़ी पदों की संख्या
धनबाद जिला में तृतीय वर्ग (लिपिक) कर्मियों की बहाली अंतिम बार वर्ष 1987 में हुई थी. तत्कालीन उपायुक्त मदन मोहन झा के कार्यकाल में बहाल हुए कई कर्मी आज रिटायरमेंट के कगार पर हैं. वर्तमान में उपायुक्त को छोड़ कर किसी भी अधिकारी के पास नियमित स्टेनो (आशुलिपिक) नहीं है.
संविदा या आउटसोर्स पर कार्यरत कर्मियों से ही स्टेनो का काम करवाया जा रहा है. झारखंड अलग राज्य बनने के बाद जिला स्तर पर अनुसेवकों (चतुर्थ वर्गीय कर्मियों) की बहाली वर्ष 2006 में हुई थी. तत्कालीन उपायुक्त डॉ बीला राजेश के समय हुई बहाली में पहले से मैनडेज (दैनिक वेतनभोगी) के रूप में कार्यरत कर्मियों को नियमित किया गया था. इसके बाद वर्ष 2011-12 में 110 वीएलडब्लू की बहाली हुई थी. हालांकि यह कैडर जिला परिषद के नियंत्रण में चला गया.
कार्यालय अधीक्षक 12 10 02
प्रधान लिपिक 54 37 17
उच्चवर्गीय लिपिक 80 30 50
निम्नवर्गीय लिपिक 121 41 80
आशुलिपिक 11 01 10
राजस्व उप निरीक्षक 92 66 26
अमीन 20 09 11
चालक 21 09 12
अनुसेवक 185 94 91
जिला में आशुलिपिक के 11 पद स्वीकृत हैं, लेकिन अभी 10 पद रिक्त हैं. इसी तरह उच्च वर्गीय लिपिक के स्वीकृत 80 में से 50 पद रिक्त हैं. वर्ष 1987 के बाद तृतीय वर्ग के कर्मियों की जो भी बहाली हुई है, वह अनुकंपा के आधार पर हुई. यही हाल चतुर्थ वर्गीय कर्मियों का भी है. प्रखंड, अंचल स्तर पर कर्मियों का बहुत ज्यादा टोटा है. नवसृजित प्रखंडों, अंचलों में भी जिला से ही कर्मियों को भेजा गया. इससे यहां कर्मचारियों की समस्या और बढ़ गयी.
रिपोर्ट- संजीव झा