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बचपन में बच्चन सर की फिल्में देखने के लिए पैसे नहीं होते थे आज उनके साथ फिल्म बना ली-नागराज मंजुले

सैराट फेम निर्देशक नागराज पोपटराव मंजुले की फ़िल्म झुंड आज सिनेमाघरों में दस्तक दे रही है. यह उनकी पहली हिंदी फिल्म है. नागराज मंजुले की इस फ़िल्म का चेहरा महानायक अमिताभ बच्चन हैं.

सैराट फेम निर्देशक नागराज पोपटराव मंजुले की फ़िल्म झुंड आज सिनेमाघरों में दस्तक दे रही है. यह उनकी पहली हिंदी फिल्म है. नागराज मंजुले की इस फ़िल्म का चेहरा महानायक अमिताभ बच्चन हैं. वह इसे इस फ़िल्म की सबसे बड़ी खासियत करार देते हुए दर्शकों से अपील करते हैं कि मेरी इस फ़िल्म की तुलना सैराट से ना करें. यह अलग फ़िल्म है. आपको अच्छी लगे या बुरी. वो आपकी राय है लेकिन तुलना ना करें. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत

झुंड फ़िल्म की क्या बात आप खास करार देंगे?

यह फ़िल्म असल घटना और लोगों से प्रेरित है. इस फ़िल्म में अमिताभ बच्चन हैं और नागपुर के ही झोपड़पट्टी के सारे बच्चे हैं. जो ज़िन्दगी में पहली बार फ़िल्म में काम कर रहे हैं. ये सब बातें इस फ़िल्म को खास बनाती हैं. जब ये कहानी हमने बच्चन सर को सुनायी थी तो उन्हें वह अच्छी लगी थी. सर ने कहा कि इसका पूरा स्क्रीनप्ले रेडी करो. हम सुनते हैं. वो रेडी करके सुनाया तो वो उनको अच्छा लगा. उन्होंने मेरी फिल्म सैराट देखी थी इसलिए उन्हें विश्वास था कि ये लड़का अच्छी फिल्म बना सकता है.

नागपुर के झोपड़पट्टी के बच्चे इस फ़िल्म में एक्टिंग कर रहे हैं,आप एक्टिंग स्कूल के बजाय हमेशा रियल लोगों को अपनी फिल्म की कास्टिंग में महत्व देते हैं इसके पीछे की सोच क्या रहती है?

मैं जब छोटा था तो मुझे लगता था कि मुझे एक्टिंग करनी है लेकिन समझ नहीं आता था कि कहां जाऊं।कैसे फ़िल्म का हिस्सा बनूं. हमेशा एक दायरे में ही ये इंडस्ट्री चलती है. एक्टिंग स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों के अलावा दूसरे बच्चे भी हैं जिनमें प्रतिभा होती है. वो अपने गांव की नाटक मंडली का अहम हिस्सा होते हैं. वो महंगी एक्टिंग स्कूल में नहीं जा सकते हैं. हम उनको मौका नहीं देते हैं. मेरे हाथ में जब यही बात आयी तो मैंने सोचा कि जो आज तक मैं सोचता था कि मुझे मौका नहीं मिला तो क्यों ना मैं उन बच्चों को मौका दूं.

कितनी ट्रेनिंग इन बच्चों को देनी पड़ी?

जब से कास्टिंग हुई उसके बाद से डेढ़ साल तक सारे बच्चे मेरे साथ ही रहे. जो फुटबॉल ठीक से खेलते नहीं थे उन्होंने फुटबॉल सीखा. एक्टिंग को समझा.इस दौरान उनका आत्मविश्वास भी बढ़ाने की ज़रूरत होती है. उस पर थोड़ा बहुत काम किया. ये लंबा प्रोसेस था लेकिन बहुत ही मज़ा आया. जिस तरह से बच्चों ने काम किया. खासकर बच्चन सर के सामने जिस तरह से उन्होंने काम किया है वह अविश्वसनीय है. बच्चन साहब ने भी सभी को बहुत प्यार,अपने पन और मज़ाक से सेट पर सहज बनाया. वो सेट पर ब्रेक के बीच अपने पिता हरिवंश राय जी कविताएं सुनाते थे.

यह अमिताभ बच्चन के साथ आपकी पहली फ़िल्म है पहले दिन सेट पर क्या था माहौल?

बच्चन सर जिस दिन आए थे उस दिन मैं ही नहीं मेरा पूरा क्रू बहुत उत्साहित था. मेरी जो टीम है वो बहुत ही आम सी है. मैं पुणे रहता हूं बाकी लोग भी यही आसपास रहते हैं. हम लोग सॉफिस्टिकेटेड लोग नहीं हैं. एकदम आम से हैं. मैंने लोगों को समझा कर रखा था लेकिन जब बच्चन साहब आए तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. बच्चों की खुशी तो देखते बनती थी. मैं पिछले डेढ़ सालों से उनको बोल रहा था कि बच्चन साहब के साथ शूटिंग करनी है लेकिन हमारी फ़िल्म टलती जा रही थी. जब बच्चन साहब आए तो पूरे सेट पर त्यौहार जैसा माहौल हो गया था. मैं बताना चाहूंगा कि इस उम्र में भी उनका उत्साह सेट पर किसी न्यूकमर की तरह था. पूरे सीन्स की शूटिंग उन्होंने खुद की है. बॉडी डबल का इस्तेमाल नहीं किया.

फ़िल्म की शूटिंग कहां कहां हुई है?

नागपुर में हुई है. हरियाणा ,कोलकाता और केरल में हुई है. सबसे ज़्यादा नागपुर में हुई है. नागपुर में रियल झोपड़पट्टी के साथ साथ हमने थोड़ा सेट लगाया था. बच्चन साहब नागपुर के ही होटल में रहते थे.

आप जाति के मुद्दे को बेबाक तरीके से सैराट में रखने के लिए काफी सराहे गए थे ,हिंदी फिल्में पर हमेशा बीच का रास्ता अख्तियार करने का आरोप लगता रहा है क्या आप हिंदी फिल्मों में भी बेबाकी से सामाजिक मुद्दों को उठाएंगे?

ये आपने सही कहा है. हमारे यहां जो जाति के बारे में बात करता है. हम उसे ही जातिवादी कहने लगते हैं. कोई जेंडर की बात करेगा तो हम उसको भी गाली देने लगते हैं. मैं पूछता हूं कि अगर हम अपनी बुराई को सामने लाकर बात नहीं करेंगे तो वो दूर कैसे होगी तो मैं बात करता हूं और करता रहूंगा. मैं खुद उन चीजों को सहकर यहां तक आया हूं तो मैं बात करूंगा. यह मेरी नहीं पूरे भारत की परेशानी है. एक महिला जब अपनी परेशानी कहती हैं तो वह आधी आबादी की परेशानी बताती है. अमीरी गरीबी की बात करके बदलाव नहीं होगा सीधे परेशानी की बात करनी होगी अगर वो जातिगत भेदभाव में है तो बोलना पड़ेगा तभी वो दूर रहेगा.

आपकी फ़िल्म सैराट बहुत कामयाब थी हिंदी में झुंड पहली फ़िल्म है क्या उम्मीदों का प्रेशर है?

प्रेशर मुझे इस बात का सिर्फ है कि बच्चन साहब के साथ मेरी फिल्म है. मैं अपनी पूरी ज़िंदगी में उनका सबसे बड़ा फैन रहा हूं. उनसे ज़्यादा किसी का फैन नहीं रहा हूं. जिनकी फिल्में देखने के लिए बचपन में मेरे पास पैसे नहीं होते थे उनके साथ फ़िल्म बनाया. यह बहुत बड़ी बात है. मेरे सबसे पसंदीदा एक्टर के साथ मैंने फ़िल्म बनायी है तो मन में एक ख्वाइश ज़रूर है कि मेरी यह फ़िल्म सभी को पसंद आए.

मराठी सिनेमा और डिजिटल स्पेस में आप काम कर चुके हैं,झुंड आपकी पहली हिंदी फिल्म है .कहते हैं कि हिंदी फिल्मों का गणित अलग ही होता है क्या आपने ये बात महसूस की?

मैं फ़िल्म मेकर हूं. मुझे फ़िल्म बनाना आना चाहिए. कैलकुलेशन देखता तो मुझे सीईओ होना था. मेरे साथ कुछ लोग हैं जिनको ये मार्केट बहुत अच्छे से पता है. हमारी फ़िल्म के निर्माता भूषण कुमार को ये दुनिया अच्छे से पता हैं. मैं फ़िल्म बनाना चाहता हूं. मुझे लगता है कि मुझे वही ठीक से आना चाहिए. एक अच्छी फ़िल्म ही एक अच्छा गणित है.

अब फोकस हिंदी फिल्में रहेंगी या रीजनल भाषा में भी फिल्में बनाते रहेंगे?

भाषा के बारे में नहीं सोच रहा हूं. मराठी भाषा में सैराट थी लेकिन बंगाल और बिहार सभी के लोगों ने उसे देखा था. मैं अच्छी कहानी कहना चाहता हूं बस.

अमिताभ बच्चन के साथ काम करने के बाद बॉलीवुड के और किस अभिनेता के साथ काम करने की ख्वाइश है?

आमिर खान और धनुष जी मुझे पसंद है. उनके साथ काम करने की ख्वाइश है.

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