नई दिल्ली : अमेरिका के उकसावे के बाद रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है. आज आठवें दिन भी यूक्रेन के विभिन्न शहरों पर रूसी सैनिकों का हमला जारी है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) और संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) में रूस के खिलाफ प्रस्ताव पेश कर पास किया गया है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा प्रस्ताव में जब रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाया गया था, तो भारत ने खुद को वोटिंग से दूर कर लिया था और जब संयुक्त राष्ट्र महासभा में भी रूस के खिलाफ यूक्रेन से बिना शर्त सेना वापस बुलाने को लेकर प्रस्ताव पेश किया गया, तब भारत वोटिंग से दूर ही रहा. भारत की इस तटस्थता से दुनिया भर में सवाल उठने लगे कि आखिर वह युद्धरत दोनों देशों में से किसी एक का खुलकर समर्थन क्यों नहीं कर रहा है? आखिर उसके सामने ऐसी क्या मजबूरी है? इन दोनों सवालों का जवाब यही है कि किसी के समर्थन में खुलकर आना भारत के लिए आसान नहीं है? कूटनीतिक और वैश्विक स्तर पर कई ऐसी चुनौतियां, नीतियां और समझौते हैं, जो भारत को तटस्थ रहने के लिए बाध्य करता है. आइए, समझते हैं…
गुट निरपेक्ष संगठन का भारत से अटूट संबंध है. गुट निरपेक्ष आंदोलन का जनक भारत है और इसके प्रणेताओं में प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर और युगोस्लाविया के राष्ट्रपति टीटो और इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सुकर्णो थे. इसकी स्थापना 1961 में हुई थी और इसमें दुनिया के करीब 120 देश शामिल हो चुके हैं. इस संगठन का उद्देश्य गुट निरपेक्ष राष्ट्रों की राष्ट्रीय स्वतंत्रता, सार्वभौमिकता, क्षेत्रीय एकता एवं सुरक्षा को उनके साम्राज्यवाद, औपनिवेशिकवाद, जातिवाद, रंगभेद एवं विदेशी आक्रमण, सैन्य अधिकरण, हस्तक्षेप आदि मामलों के विरुद्ध उनके युद्ध के दौरान सुनिश्चित करना है. इसके साथ ही, किसी पावर ब्लॉक के पक्ष या विरोध में ना होकर निष्पक्ष रहना है. ये संगठन संयुक्त राष्ट्र के कुल सदस्यों की संख्या का लगभग 2/3 एवं विश्व की कुल जनसंख्या के 55 फीसदी भाग का प्रतिनिधित्व करता है. खासकर इसमें तृतीय विश्व यानि विकासशील देश सदस्य हैं.
विदेश मंत्रालय के अनुसार, यूक्रेन के साथ भारत के सभी क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंध है. सोवियत संघ का विघटन होने के बाद यूक्रेन को पहले मान्यता देने वाले देशों में से भारत एक है. इसलिए यहां के निवासियों में भारतीयों के लिए बहुत सम्मान है. भारत ने यहां की राजधानी कीव में अपना दूतावास मई 1992 में खोला था. वहीं यूक्रेन ने एशिया में अपना पहला मिशन फरवरी 1993 में दिल्ली में खोला. पिछले ढाई दशकों और खासकर 2018-19 में लगभग 2.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार किया गया. यूक्रेन से भारत में निर्यात की जाने वाली मुख्य वस्तुएं कृषि उत्पाद, प्लास्टिक और पॉलिमर हैं. कीव खाना पकाने के तेल का एक महत्वपूर्ण सप्लायर है. पिछले साल भारत में लगभग 74 फीसदी सूरजमुखी तेल का आयात यूक्रेन से हुआ था. इसके साथ ही, भारत फार्मास्यूटिकल्स, मशीनरी, रसायन, खाद्य उत्पादों का आयात करता है.
सोवियत संघ के जमाने से ही रूस के साथ भारत के रिश्ते मजबूत हैं. रक्षा मामलों में वर्ष 1970 से भारत का रूस के साथ द्विपक्षीय रिश्ते बेहद मजबूत हैं. भारत अपनी जरूरत का करीब 50 फीसदी हथियार रूस से खरीदता है. इसके साथ ही, भारत अपनी जरूरी का करीब 80 फीसदी से अधिक कच्चे तेल का आयात रूस से करता है, जबकि 25 फीसदी प्राकृतिक गैस. खासकर, हथियारों के लिए भारत रूस पर ही ज्यादा आश्रित है. साल 2011 से 2015 तक भारत ने करीब70 फीसदी हथियार रूस से खरीदे थे. इसके बाद, 2016 से 2020 तक हालांकि इसमें गिरावट दर्ज की गई और यह करीब 49 फीसदी पर आ गया है. हालांकि, दोनों देशों के बीच रक्षा सौदों में एस-400 रक्षा मिसाइल प्रणाली सौदा अहम है.
इतना ही नहीं, रूस भारत के सामरिक, आर्थिक और कारोबारी हितों के लिए द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत तो किया ही है, लेकिन उसने भारत के आंतरिक हितों के लिए भी संयुक्त राष्ट्र में करीब 4 बार अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल कर मदद की है. रूस ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के लिए पहली बार अपनी वीटो पावर उस समय किया, जब 1957 में पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के डिमिलिटराइज करने के लिए भारत के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया था. उस समय सोवियत संघ ने अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान के प्रस्ताव को गिरा दिया था.
इसके बाद 1961 में गोवा की पुर्तगाल के हाथों आजादी के लिए वीटो पावर का इस्तेमाल किया था. पुर्तगाल गोवा पर कब्जा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र को पत्र लिखा था. तीसरी बार 1962 में अपनी 100वीं वीटो पावर का इस्तेमाल करते हुए आयरलैंड के उस प्रस्ताव को गिरा दिया था, जिसमें उसने भारत-पाकिस्तान के युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच मध्यस्थता करते हुए बातचीत से मसले के समाधान की बात कही थी. रूस के इस कदम से कश्मीर मुद्दे में तीसरे देश की मध्यस्थता अस्वीकार्य हो गई थी.
चौथी बार रूस ने अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल तब किया था, जब पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय बनाने के प्रयास में जुटा था. 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति को लेकर भारत-पाकिस्तान में युद्ध हो रहा था और पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को दोबारा संयुक्त राष्ट्र में पेश किया. उस समय भी रूस ने अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल कर भारत के साथ दोस्ती निभाई थी.
रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत के सामने पश्चिमी देशों को साधे रखना सबसे बड़ी चुनौती है. रूस और यूक्रेन के इस युद्ध ने कूटनीतिक तौर पर भारत को असहज कर दिया है. कूटनीतिक मामलों के विशेषज्ञों की मानें तो भारत को पश्चिम और रूस के बीच संतुलन बनाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. एक इंटरव्यू में भारत के पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन ने कहा है कि भारत की कूटनीति के लिए यह सबसे बड़ा मुश्किल का दौर है. उन्होंने कहा है कि भारत के लिए चुनौती यह है कि वह पश्चिम को बिदकाए किए बिना रूस के साथ अपनी दोस्ती को कायम कैसे रखे?
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इस समय यूक्रेन के समर्थन में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, बुल्गारिया, ब्राजील, कनाडा, भूटान, कंबोडिया, डेनमार्क, अफगानिस्तान, मिस्र, घाना, ग्रीस, इंडोनेशिया, आयरलैंड, इटली, जापान समेत करीब 141 वैसे देश खड़े हैं, जिनके साथ भारत का आर्थिक, कारोबारी और सामरिक संबंध हैं. अब अगर भारत ऐसे संकट की घड़ी में यूक्रेन के साथ खड़ा होता है, तो उसका सबसे बड़ा हितैषी दोस्त का साथ छूट जाएगा और अगर रूस का साथ दिया तो अमेरिका समेत दुनिया के 141 देशों से संबंधों में खटास पैदा हो जाएगी. इसीलिए भारत इस मामले में तटस्थता का रुख अपनाए हुए है.