रांची : यूक्रेन और रूस के बीच जारी जंग का आज आठवां दिन है. इस बीच यूक्रेन में फंसे छात्र भारत लौट रहे हैं. इनमें से कुछ छात्र झारखंड के भी हैं जो यहां आकर यूक्रेन के हालात के बारे में बता रहे हैं. यूक्रेन से लौटे एक छात्र ने बताया कि 26 फरवरी से ही हमें अहसास हो गया था कि कुछ बुरा होनेवाला है. यूक्रेन के खारकीव शहर के अपार्टमेंट में अपने भाई (प्रणव कुमार मिश्र) के साथ रह कर मैं मेडिकल की पढ़ाई करता हूं. 27 फरवरी से खारकीव में बमबारी होने लगी.
खबर मिलने लगी कि रूसी सेना खरकीव तक पहुंच गयी है. इसके बाद पूरे शहर में कर्फ्यू लगा दी गयी. सड़कों पर सिर्फ यूक्रेनी आर्मी ही दिखती थी. हालात ऐसे भयावह थे कि जगह-जगह बम धमाके हो रहे थे. अपने अपार्टमेंट के बंकर में छिप कर रात बितानी पड़ती थी. 28 फरवरी की रात हम सब बंकर में छिपे थे, उसके पास ही एक धमाका हो गया. चारों तरफ शोर मचने लगा. हम सब काफी भयभीत हो गये.
यह कहना है खारकीव में एमबीबीएस के पांचवें वर्ष के पढ़ रहे छात्र अक्षय कुमार मिश्र का. फिलहाल, वो यूक्रेन के लबीब शहर में है. बुधवार को व्हाट्सऐप कॉल पर उसने यूकेन के हालात की आंखों देखी बातें बतायी. वह चान्हो (रांची) का रहनेवाला है. अक्षय ने बताया कि डर के माहौल में भारतीय दूतावास से सूचना आयी कि सारे विद्यार्थी यूक्रेन से निकल जायें.
हमलोग 130 भारतीय विद्यार्थी थे. दूतावास के सहयोग से एक मार्च की दोपहर तीन बजे सभी विद्यार्थी ट्रेन में सवार हुए. सबकी आखों में डर साफ देखा जा रहा था. रास्ते भी बमबारी व युद्ध की तबाही का मंजर दिखा. ट्रेन को धीमी गति से ही ले जाने का निर्देश था. शाम होते ही ट्रेन की सारी लाइट बंद कर दी गयी.
हमें अंधेरे में सफर करना पड़ रहा था. खैर किसी तरह हम सभी 130 विद्यार्थी यूक्रेन के ही एक अन्य शहर लबीब पहुंच गये हैं. अक्षय ने बताया कि भारतीय दूतावास द्वारा बस की व्यवस्था की गयी है. बुधवार की शाम में करीब पांच बजे हम सब बस में बैठ चुके हैं. अगले चार से पांच घंटे में हम बॉर्डर पार कर हंगरी पहुंच जायेंगे. अब उम्मीद है कि जल्द अपने वतन लौटेंगे.
झारखंड सरकार द्वारा बनाये गये कंट्रोल रूम के अनुसार, अबतक यूक्रेन में फंसे झारखंड के 182 विद्यार्थियों का पता चला है, इनमें 25 लौट आये हैं. बुधवार को मिली सूचना के अनुसार लगभग सारे विद्यार्थी यूक्रेन छोड़ चुके हैं. अब भारतीय दूतावास की ओर से उन्हें दिल्ली लाने की व्यवस्था की जा रही है.
पलामू के रहनेवाले पुरुषोत्तम कुमार वर्मा यूक्रेन के बिनेप्रो शहर में एमबीबीएस चौथे वर्ष का छात्र है. पलामू में रह रही उसकी मामी ने बताया कि एक मार्च की शाम पांच बजे उससे अंतिम बार बात हुई. उसने बताया था कि बॉर्डर क्राॅस करनेवाले हैं, इसके बाद से उससे संपर्क नहीं हो पाया है. उसका फोन बंद है.
मंगलवार को यूक्रेन से रांची लौटी प्रियंका ने प्रभात खबर से बातचीत में आपबीती बतायी. बोली- यूक्रेन के हर शहर में खौफ का माहौल है. वहां हर वक्त मौत का डर था. कब-कहां से बमबारी हो जाये, किसी को पता नहीं था.
मैं तरनोपिल में थी. वहां से निकल कर बॉर्डर तक पहुंचने और फिर रांची आने तक सारा मंजर आंखों के सामने ही घूमता रहा. हालात ऐसे थे कि बिस्कुट और पानी पर ढाई दिन गुजारना पड़ा. 12 किलोमीटर पैदल चल कर बॉर्डर पहुंची और 10-12 घंटे बॉर्डर पर प्रवेश के लिए कतार में लगना पड़ा. यूक्रेन से लौटी बोड़ेया (कांके) की प्रियंका प्रिया ने कहा कि रांची लौट कर आने के बाद वो सुरक्षित तो है, पर यूक्रेन में बिताये बीते कुछ दिन की यादें हर पल ताजा हैं. अब समझ नहीं आ रहा है कि आगे क्या होगा. विवि ऑनलाइन क्लास करायेगा या हमारी डिग्री भेजेगा. हम छात्रों ने डीन को भी कई मेल किये, पर जवाब नहीं आया.
Posted By: Sameer Oraon