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क्रीमिया को लेकर रूस की बेचैनी

पुतिन क्रीमिया के सामरिक महत्व से बखूबी वाकिफ हैं. काला सागर में रूसी बेड़े का अर्थ यूरोप भी जानता है और अमेरिका भी.सन 2008 में जाॅर्जिया प्रकरण ने इसकी पुष्टि की है.

क्रीमिया के पूर्व और पश्चिम में जो कुछ हो रहा है, उसमें युद्ध की आहटों को सुना जा सकता है. क्रीमिया के भविष्य के संदर्भ में पिछली दो सदियों की घटनाएं बरबस ‘हॉट’ करती हैं, पहली 19वीं सदी के मध्य की दो साला जंग और फिर 20वीं सदी में स्तालिन-काल में लाखों तातार मुसलमानों की ‘पर्ज’ यानी शिविरों में सामूहिक यंत्रणा. पूर्वी यूरोप में काला सागर के उत्तरी तट पर बसे प्रायद्वीप क्रीमिया की आबादी पच्चीस लाख है.

क्रीमिया ‘तातार’ शब्द ‘किरिम’ से निकला है, जिसका अर्थ होता है दीवार. वस्तुत: तातारों का यहां लंबे समय तक प्रभुत्व रहा. यहां रूस की सम्राज्ञी कैथरीन (एकातेरिना) के 1783 में अाधिपत्य के बाद इनका रुतबा घटने लगा. क्रीमिया सुर्खियों में उभरा 19वीं सदी के मध्य में दो साला जंग से.

जुलाई, 1853 से सितंबर, 1855 के मध्य हुए युद्ध को अनेक इतिहासकार मूर्खतापूर्ण और अनिर्णीत करार देते हैं. लेडी विद द लैंप (फ्लोरेंस नाइटिंगेल) इसी युद्ध में घायलों की अथक सेवा से चर्चा में आयी थीं. इस युद्ध में एक ओर फ्रांस, ब्रिटेन, सार्डीनिया और तुर्की थे, दूसरी ओर, अकेला रूस. इस लड़ाई में दोनों ही पक्षों को क्षति हुई.

अलबत्ता, इंग्लैंड-फ्रांस धुरी रूस की विस्तारवादी नीतियों पर अंकुश लगाने में सफल रही. ‘द टाइम्स’ में विलियम रसेल और रोजर फेंटन ने क्रीमिया वार की नियमित रिपोर्टिंग की. अंतत: 30 मार्च, 1856 को पेरिस में इंग्लैंड, फ्रांस, ऑस्ट्रिया, तुर्की, सर्बिया और रूस में संधि हुई. मल्दाविया और सर्बिया को आजादी की गारंटी मिली और तुर्की रूस के शिकंजे में आने से बच गया.

यदि यह युद्ध न होता तो काला सागर और कुस्तुंतुनिया समेत तुर्की पर प्रभुत्व की रूसी महत्वाकांक्षा पूरी हो गयी होती. इस रक्तरंजित प्रसंग से क्रीमिया रूस की दुखती रग बनकर उभरा. करीब डेढ़ सौ साल बाद तज्जन्य ग्रंथि ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आक्रामक कार्रवाई में प्रभावी मनोवैज्ञानिक भूमिका निभायी.

द्वितीय विश्वयुद्ध में क्रीमिया को भयंकर तबाही झेलनी पड़ी. सेवस्तोपोल तो बर्बाद ही हो गया. जर्मनी से अयुद्ध संधि से जोसेफ स्तालिन निश्चिंत थे कि एडोल्फ हिटलर रूस का रुख नहीं करेगा. लेकिन, हिटलर ने क्रीमिया पर धावा बोल दिया. सन 1941-44 में नात्सियों ने कहर बरपाया. अंतत: रेड आर्मी ने 1944 में नात्सियों को खदेड़ कर क्रीमिया फतेह किया. स्तालिन को शक हो गया कि क्रीमिया की आबादी का एक हिस्सा गद्दार है. शक बढ़ता गया और उसने ऐसा गुल खिलाया, जिसका किसी को गुमान न था.

अप्रैल, 1944 में सोवियत संघ के खुफिया महकमे का मुखिया और अत्यंत विश्वासपात्र बेरिया स्तालिन से मिला. उसके हाथों में एक गोपनीय फाइल थी, जिसमें उन तातार मुस्लिमों की फेहरिस्त थी, जिनके बारे में माना गया था कि उन्होंने ‘गिर्मानिया’ (जर्मनी) की मदद की थी. स्तालिन ने फाइल पर नजर डाली और एक क्रूर आदेश लिखा. गौरतलब है कि स्तालिन और बेरिया दोनों एक ही जाॅर्जियाई मूल के थे.

बहरहाल, मई में जब तातार लोग नींद की आगोश में थे, अचानक उनके दरवाजे भड़भड़ाये जाने लगे. लोग अवाक रह गये. स्तालिन का फरमान था कि 15 मिनट में सामान समेटो और घर छोड़ दो. इन बेघर अभागे तातारों को मालगाड़ियों में पशुओं की तरह ठूंस दिया गया. हफ्तों का कठिन कष्टप्रद सफर. यात्रा कइयों के लिए प्राणांतक सिद्ध हुई.

पूरे क्रीमिया से करीब 2.30 लाख तातार मुस्लिमों को उज्बेक प्रांत, उराल अंचल और साइबेरिया ले जाया गया. यातना शिविर या पर्ज स्तालिन युग की पहचान बन चुके थे. इस बीच क्रीमिया में 1932-33 में दुर्भिक्ष (होल्दोमोर) की आपदा आ गयी. अकाल ने लाखों लोगों की बलि ली. स्तालिन के बाद आये निकिता ख्रुश्चेफ. उन्होंने पहला प्रायश्चित किया कि क्रीमिया यूक्रेन को गिफ्ट कर दिया. अधिकांश तातार मर-खप गये. थोड़े-बहुत अन्यत्र गये या वहीं बस गये. सन 1967 में तीन सौ तातार आनुष्ठानिक तौर पर क्रीमिया लौटे. गोर्बाचोव के ‘ग्लासनोस्त’

(खुलापन) के दौर में भी कुछ तातारों ने क्रीमिया का रुख किया, लेकिन खुशहाल जिंदगी तातारों के नसीब में नहीं थी. व्लादिमीर पुतिन के ‘क्रेमिल’ (क्रेमलिन) में आने के बाद तातारों के बुरे दिन फिर लौट आये. वर्ष 1991 में सोवियत संघ विघटित हुआ. यूक्रेन पुतिन की महत्वाकांक्षा की जद में रहा.

रूस के लिए उसके भू-राजनीतिक तकाजे मायने रखते थे. सन 2010 में यांकोविच के यूक्रेन का राष्ट्रपति बन जाने से पुतिन को कारगर मोहरा मिल गया. क्रीमिया का स्लाव बहुल होना उनके ‘गेमप्लान’ के लिए मुफीद था. यूक्रेन का झुकाव जहां यूरोपीय यूनियन की ओर था, स्लाव रूसियों का लगाव मास्को से था.

नवंबर, 2013 से फरवरी, 2014 के दरम्यान समूचे यूक्रेन में प्रतिरोध-प्रदर्शन हुए. यांकोविच ने पहले तो रूस से कर्ज लिया और फिर मास्को पलायन कर गये. रूस के हथियारबंद दस्तों ने धावा बोल क्रीमिया पर कब्जा कर लिया. मार्च, 2014 में जनमत संग्रह हुआ और सेवस्तोपोल समेत क्रीमिया को रूस शासित प्रांत घोषित कर दिया गया.

अमेरिका समेत पश्चिमी राष्ट्रों और जी-8 ने हाय-तौबा मचायी. जी-8 ने रूस को निष्कासित कर दिया. जनमत संग्रह को अवैध करार दिया गया, लेकिन ये कवायदें रूस की मुश्कें नहीं कस सकीं. पिछले वर्षों में 1.40 लाख तातार पलायन कर चुके हैं और बड़ी संख्या में तातार प्रताड़ित, कत्ल या गिरफ्तार हुए हैं.

क्रीमिया ने पुतिन काल में नयी करवट ली. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन कहते हैं कि क्रीमिया यूक्रेन का हिस्सा था और रहेगा. उधर रूस ने 10 अमेरिकी राजनयिकों को निष्कासित किया और आठ को ‘काली सूची’ में डाल दिया. पुतिन क्रीमिया के सामरिक महत्व से बखूबी वाकिफ हैं. काला सागर में रूसी बेड़े का अर्थ यूरोप भी जानता है और अमेरिका भी. सन 2008 में जाॅर्जिया प्रकरण ने इसकी पुष्टि की है. इससे सीरिया को मदद में भी सुभीता है. प्राकृतिक संसाधनों के अकूत भंडार का लाभ अलग है.

जो बाइडन भले ही क्रीमिया को यूक्रेन का हिस्सा बताएं और क्रेमलिन को चुनौती दें, केजीबी के मुखिया रह चुके स्लाव-वर्चस्व के हिमायती राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन क्रीमिया पर पकड़ ढीली करना तो दूर रहा, फौलादी मुट्ठी में कुछ और भी कसना चाहें, तो आश्चर्य नहीं.

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