रांची : तेनुघाट कोर्ट बिल्डिंग की वाइट वाशिंग आठ वर्षों से नहीं हुई है. कोर्ट परिसर में लेडीज टॉयलेट नहीं है और इसका नहीं होना अपराध है. बोकारो में सिविल कोर्ट बिल्डिंग की वाइट वाशिंग तीन वर्षों से नहीं हुई है. गिरिडीह सिविल कोर्ट की छत का प्लास्टर टूट कर गिरता है. आखिर यह झारखंड में क्या हो रहा है?
खंडपीठ ने मौखिक रूप से कहा कि जब ज्यूडिशियरी को पैसा देना होता है, तो सरकार के पेट में दर्द होने लगता है. सरकार ज्यूडिशियरी पर काफी कम खर्च करती है. केंद्र पैसा देगा, तब काम करेंगे क्या. खंडपीठ ने कहा कि रिपोर्ट दिखा देंगे, तो सरकार का तोता उड़ जायेगा. हालात ऐसे रहे, तो एजी से बजट की जांच करायी जा सकती है.
ये बातें शुक्रवार को झारखंड हाइकोर्ट ने कही. झारखंड हाइकोर्ट में राज्य के सिविल कोर्ट की सुरक्षा, कोर्ट बिल्डिंग और न्यायिक अधिकारियों के आवासों को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिकाओं पर सुनवाई की गयी. मामले की चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने वीडियो कांफ्रेंसिंग से सुनवाई की. इस मामले में राज्य सरकार की ओर से दायर रिपोर्ट पर खंडपीठ ने नाराजगी जतायी.
खंडपीठ ने महाधिवक्ता के आग्रह को स्वीकार करते हुए अगली सुनवाई के लिए 25 फरवरी की तिथि निर्धारित की. इससे पूर्व राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन व अधिवक्ता पीयूष चित्रेश ने राज्य भर के सिविल कोर्ट बिल्डिंग व अधिकारियों के आवासों से संबंधित रिपोर्ट दायर की. उन्होंने खंडपीठ को बताया कि सरकार ने लगभग 104 करोड़ की लागत से 257 योजनाएं स्वीकृत की हैं.
इसमें 42 करोड़ रुपये राज्यांश और 62 करोड़ केंद्रांश का हिस्सा है. इसमें से राज्य सरकार ने 42 करोड़ रुपये स्वीकृत कर दिये हैं, जबकि केंद्र ने मात्र छह करोड़ ही राज्य को दिया है. केंद्र सरकार से राशि की मांग की गयी है. महाधिवक्ता ने बताया कि राज्य सरकार पूरी गंभीरता से कोर्ट बिल्डिंग व अधिकारियों-कर्मियों के आवासों को दुरुस्त करने में लगी है. ज्ञात हो कि कोर्ट सुरक्षा को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट ने विभिन्न जिलों के कोर्ट भवन व आवासों की स्थिति पर सुनवाई की.
Posted By : Sameer Oraon