विवेक शुक्ला
Lata Mangeshkar News: लता मंगेशकर की पवित्र शख्सियत का ही परिणाम था कि आजाद भारत के सब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री उनसे आदरभाव से मिलते थे. उनका कद देश के किसी भी नागरिक से बड़ा था. देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद से लेकर मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक से उनके निजी संबंध थे. वह जब राज्यसभा सदस्य थीं, तब ही उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था. यह बात साल 2001 की है. उन्हें 1969 में पद्म भूषण, पद्म विभूषण 1999 में और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार 1989 में मिल गया था.
जाहिर है, वह इन सब पुरस्कारों को लेने के लिए भी राजधानी आती रहीं. लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) ने 1983 में राजधानी के इंद्रप्रस्थ स्टेडियम में अपने पसंदीदा गीत सुनाकर दिल्ली को कृतज्ञ किया था. उस कार्यक्रम का आयोजन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने किया था, ताकि कपिल देव के नेतृत्व में वर्ल्ड कप क्रिकेट चैंपियन बनी भारतीय टीम के खिलाड़ियों को पुरस्कृत किया जा सके. लता जी ने यहां कार्यक्रम पेश करने के बदले में एक पैसा भी नहीं लिया था.
उस कार्यक्रम में उन्होंने रहें ना रहें हम महका करेंगे…, ऐ मालिक तेरे बंदे हम…, अजीब दास्तां है ये…, मेरी आवाज ही पहचान है…, आज फिर जीने की तमन्ना है… जैसे अपने अमर गीत सुनाये थे. इस बीच, जब से उनका राज्यसभा का कार्यकाल 2005 में समाप्त हुआ, तो फिर वह संभवत: इधर नहीं आयीं.
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27 जनवरी, 1963 को गुजरे हुए लगभग छह दशक हो रहे हैं. फिर भी दिल्ली को याद है, जब लता मंगेशकर ने उस दिन दिल्ली की आंखें नम कर दी थी. दरअसल, उस दिन नेशनल स्टेडियम में कड़ाके के सर्दी के बावजूद हजारों लोग एकत्रित थे. चीन के साथ हुई जंग में शहीद हुए जवानों की याद में एक कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा था. उस जंग के परिणामों के कारण देश हताश था. शाम करीब 5 बजे जब लता मंगेशकर ने जब अमर गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी…’ गाया, तो वहां उपस्थित अपार जन समूह के साथ-साथ प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आंखें भी नम हो गयीं थीं.
जब लता जी ने सी रामचंद्र के संगीत पर गाना शुरू किया था, तो रामलीला मैदान का मंजर देखने लायक था. दिल्ली वालों की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी थी. लता जी के गीत समाप्त करने के बाद रामलीला मैदान में भारत माता की जय का उदघोष होने लगा था. वे कार्यक्रम के बाद मंच से उतरीं, तो प्रशंसकों ने उन्हें घेर लिया. वे देर तक सबसे बातें करती रहीं. उनके साथ सुनील दत्त और नर्गिस भी थीं.
कृषि वैज्ञानिक डॉ पीएल शर्मा भी उन भाग्यशाली लोगों में थे, जिन्होंने लता जी को अपनी भावपूर्ण आवाज में गाते हुए सुना था. तब वे 19 साल के थे. आज जब उन्हें लता जी के निधन का समाचार मिला, तो उनकी आंखें नम हो गयीं. संयोग देखिए कि उस दिन कत्थक गुरु बिरजू महाराज भी नेशनल स्टेडियम में थे. वे बताते थे कि वे उस दिन पहली बार स्लर कोकिला के दर्शन कर रहे थे. बिरजू महाराज से लता जी का आगे चलकर घनिष्ठ संबंध बन गया था. बिरजू महाराज कहते थे कि लता जी उन्हें सिर्फ बिरजू नाम से बुलाती हैं.
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इस बीच, यह जानकारी कम लोगों को है कि लता मंगेशकर ने राजधानी में राज्यसभा के नामित सदस्य के रूप में सरकार से मिले सरकारी बंगले को लेने से इंकार कर दिया था. उनके पास विकल्प था कि वे फिरोजशाह रोड या कॉपरनिकस मार्ग में से किसी एक जगह पर बंगला ले लें. लेकिन, उन्होंने राजधानी में इतनी खास जगहों पर मिलने वाले भव्य बंगलो को लेने से साफ मना कर दिया था. उन्होंने सरकार को कह दिया था कि वे दिल्ली में अपने रहने की व्यवस्था खुद करेगी.
इसके अलावा, भारत रत्न से सम्मानित लता मंगेशकर ने 6 साल तक सांसद रहने के दौरान वेतन-भत्तों के चेक भी नहीं लिये. वह साल 1999 से 2005 तक राज्यसभा की मनोनीत संसद सदस्य रहीं. जब उन्हें चेक भेजे गये, तो वहां से वापस आ गये. लता मंगेशकर ने कभी भी सांसद पेंशन के लिए भी आवेदन नहीं किया. लता मंगेशकर अपने दिल्ली प्रवास के दौरान डोगरी की लेखिका पदमा सचदेव के बंगाली मार्केट स्थित घर में भी रहीं. दोनों में बहुत घनिष्ठ संबंध थे. अजीब इत्तेफाक है कि पदमा सचदेव का पिछले साल निधन हो गया था.
Posted By: Mithilesh Jha