Up Chunav 2022 : मैनपुरी की करहल सीट पर सपा मुखिया अखिलेश यादव के खिलाफ मैदान में भाजपा की तरफ से उतरे डॉ एसपी सिंह बघेल भले ही कोई बड़ा उलटफेर कर पाएं, लेकिन सपा के लिए सिरदर्द तो बनेंगे ही. हालांकि, करहल सीट का चुनावी रिकाॅर्ड देख कर कोई भी एक झटके में यह कह देगा कि कोई चमत्कार ही यहां अखिलेश की राह में चुनौती बन सकता है. इस सीट पर तीन दशक से सपा का कब्जा रहा है. यहां 38% आबादी यादवों की है, पर चुनावी राजनीति अनिश्चितताओं का खेल है.
मिसाल के तौर पर, लोकसभा चुनाव 2019 का नतीजा आने के पहले कौन कहता था कि फिरोजाबाद, बदायूं एवं कन्नौज, जहां से अखिलेश की पत्नी डिंपल चुनाव लड़ रही थीं, सपा को पराजय का सामना करना पड़ेगा, मगर हुआ ऐसा ही. एक तर्क दिया जा सकता है कि शिवपाल यादव तब अखिलेश के साथ नहीं थे, पर बसपा सुप्रीमो मायावती तो थी, जिन्होंने इन सीटों पर दलित आबादी का वोट सपा के पक्ष में मोड़ने के लिए सभाएं भी की थीं. लिहाजा भले ही तीन दशक से करहल सीट पर सपा का कब्जा रहा हो, भाजपा ने बघेल को मैदान में उतार कर अखिलेश को यहां ज्यादा समय देने को मजबूर करने की कोशिश तो की है.
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डॉ बघेल अनुसूचित जाति के हैं. हालांकि, बघेल गड़रिया की उपजाति है. प्रदेश में पाल, गड़रिया, धनगर, बघेल आदि उपनामों से रह रही इस जाति की आबादी सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट के अनुसार पिछड़ों में लगभग 5% है, पर आगरा, फिरोजाबाद, मथुरा, मैनपुरी, इटावा, कन्नौज, अलीगढ़, फर्रुखाबाद, कानपुर देहात, रामपुर, मुरादाबाद, अमरोहा जैसे क्षेत्रों में यह अच्छी संख्या में है. करहल में कुल 3.71 लाख मतदाताओं में बघेलों की संख्या लगभग 31 हजार है. इतने ही क्षत्रिय भी हैं. इसके अलावा ब्राह्मण, लोधी एवं कुशवाहा व शाक्य वोट भी अच्छी संख्या में है. जिस तरह से चुनावी लड़ाई हिंदुत्व बनाम मुस्लिम ध्रुवीकरण पर केंद्रित होती जा रही है, उसे देखते हुए बघेल अखिलेश की जीत के समीकरण में उलटफेर कर सकते हैं.
अखिलेश वाजपेयी