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बदल रहा है धनबाद का वासेपुर, दो दशक पहले नहीं था शिक्षा के प्रति आकर्षण लेकिन अब कायम कर रहें नयी मिसाल

शिक्षा के क्षेत्र में धनबाद के वासेपुर की बदल रही है. नतीजा यह है कि टेलरिंग दुकान चलाने वाले मकसूद आलम के पांचों बेटे आज सरकारी मुलाजिम हैं. साथ ही साथ उनका परिवार भी आज क्षेत्र के बच्चों में शिक्षा के प्रति अलख जगाने के लिए भी अभियान चला रहे हैं.

Jharkhand News, Dhanbad News धनबाद : आज से दो दशक पहले वासेपुर इलाके में शिक्षा खासकर सरकारी नौकरी के प्रति बहुत आकर्षण नहीं था. उस दौर में भी आलम परिवार ने शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया. नतीजा यह हुआ कि कभी रे टॉकीज के पास टेलरिंग दुकान चलाने वाले मकसूद आलम के पांचों बेटे आज सरकारी मुलाजिम हैं.

इनमें से तीन अधिकारी हैं, तो दो कोर्ट में वरीय सहायक. साथ ही क्षेत्र के बच्चों में शिक्षा के प्रति अलख जगाने के लिए भी अभियान चला रहे हैं. टेलर मकसूद आलम के पांच पुत्र हैं. सबसे बड़े पुत्र महफूज आलम वासेपुर उर्दू विद्यालय के प्राचार्य हैं. दूसरे पुत्र महबूब आलम व तीसरे पुत्र मेहताब आलम धनबाद सिविल कोर्ट में वरीय सहायक हैं.

चौथे पुत्र मो परवेज आलम अभी एफसीआइ में मैनेजर सह डीडीओ डालटनगंज तथा सबसे छोटे पुत्र मो अफजल आलम सिविल, जज बेगूसराय के रूप में पदस्थापित हैं. सिविल कोर्ट में वरीय सहायक महबूब आलम कहते हैं कि परिवार में शिक्षा के प्रति शुरू से रुचि थी. बड़े भाई महफूज आलम ने जब इंटर पास किया था, तब ही उन्हें सरकारी स्कूल में सहायक शिक्षक की नौकरी मिल गयी. इससे परिवार में शिक्षा के प्रति रुचि बढ़ी.

व्यवसाय की बजाय नौकरी का था संकल्प :

श्री आलम के अनुसार सभी भाइयों ने व्यवसाय की बजाय सरकारी नौकरी में जाने का संकल्प लिया. सभी भाई खुद पढ़े तथा अपने स्तर से ही प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी की. भाइयों ने मैट्रिक तक की पढ़ाई वासेपुर स्थित सरकारी उच्च विद्यालय से की. इसके बाद कुछ ने यहां के कॉलेजों से ही स्नातक, एलएलबी किया. उनकी पत्नी डॉ शबाना अहमदी गर्वमेंट हाइ स्कूल भूली में सहायक शिक्षिका हैं. उन्होंने इकॉनोमिक्स में पीएचडी किया है.

2017 में बिहार न्यायिक सेवा में चुने गये अफजल :

आलम परिवार के छोटे पुत्र अफजल आलम वर्ष 2017 में बिहार न्यायिक सेवा के लिए चुने गये. इससे क्षेत्र में शिक्षा के प्रति माहौल और बेहतर हुआ. महबूब आलम बताते हैं कि वर्ष 2002 से ही नूरी मस्जिद वासेपुर के पास एक प्रशिक्षण संस्थान चलाते हैं. यहां इंटर, स्नातक पास छात्रों को रेलवे, एसएससी, रेलवे, ज्यूडिशियरी, जेपीएससी, बीपीएससी जैसी प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए तैयारी करायी जाती है.

यहां बच्चों को नि:शुल्क अखबार, मैगजीन आदि मुहैया करायी जाती है. साथ ही सिर्फ 50 रुपये की टोकन मनी लेकर मासिक परीक्षा ली जाती है. कहा कि सबसे बड़ी बात है कि यहां पढ़ाने के लिए बाहर से शिक्षक नहीं आते. बल्कि छात्र ही एक-दूसरे को पढ़ाते हैं. मसलन अगर किसी की अंग्रेजी अच्छी है, तो अंग्रेजी की क्लास लेते हैं. किसी का गणित अच्छा है, तो वह गणित पढ़ाता है. यहां पढ़ने वाले कई छात्र आज सरकारी नौकरी कर रहे हैं. वह कहते हैं कि पिछले दो दशक के दौरान वासेपुर में शिक्षा के प्रति माहौल काफी बदला है. अब युवा न केवल स्कूली बल्कि उच्च शिक्षा के लिए आगे आ रहे हैं.

दिव्यांग आफताब आज कैग अधिकारी

वासेपुर के रहने वाले आफताब आलम जो दिव्यांग हैं, आज कैग में अधिकारी हैं. उनका चयन वर्ष 2006 में हुआ था. अभी कोलकाता में एकाउंट्स एंड ऑडिट ऑफिसर के रूप में पदस्थापित हैं. कहते हैं कि दिव्यांगता के कारण कुछ प्रतियोगी परीक्षाओं में परेशानी हुई. वासेपुर में रह कर ही सभी तैयारी की. अल इस्लाह स्कूल वासेपुर से मैट्रिक तथा पीके राय कॉलेज से गणित में स्नातक किया. आर्थिक तंगी के कारण पढ़ाई में आ रही मुश्किलों को दूर करने के लिए ट्यूशन भी पढ़ाता था. कठोर संकल्प से ही सफलता मिली. सीनियर महबूब आलम ने भी पढ़ाई में काफी सहयोग किया.

शिक्षा के प्रति युवा काफी सचेत है : महफूज आलम

वासेपुर के उर्दू मिडिल स्कूल के प्राचार्य महफूज आलम ने कहा कि वासेपुर के बारे में जो धारणा बनायी जाती रही है, वह सही नहीं है. यहां शिक्षा के प्रति युवा काफी सचेत हैं. मैट्रिक, इंटर, सामान्य स्नातक के साथ-साथ विभिन्न ट्रेड में लोग स्नातक, पीजी कर रहे हैं. कई नौकरशाह, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर के अलावा व्यवसाय भी कर रहे हैं. शिक्षा के प्रसार के लिए कई संगठनें भी यहां कार्यरत हैं.

रिपोर्ट : संजीव झा, धनबाद.

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