देवघर : देवघर की सड़कों पर पांच हजार से अधिक ई-रिक्शा (टोटो) का परिचालन हो रहा है. जिला परिवहन कार्यालय देवघर के आंकड़ों पर गौर करें, तो 487 ई-रिक्शा का ही रजिस्ट्रेशन हो पाया है. यानी करीब 4500 ई-रिक्शा अब भी बगैर किसी रजिस्ट्रेशन के ही सड़कों पर दौड़ रही हैं. आंकड़ों पर गौर करें, तो एक ई-रिक्शा की कीमत एक से 1.25 लाख रुपये हैं.
प्रति ई-रिक्शा के निबंधन पर 9000-10000 रुपये खर्च आता है. एक अनुमान के अनुसार, निबंधित ई-रिक्शा के माध्यम से जिला परिवहन कार्यालय को करीब 44 लाख रुपये का ही राजस्व मिला है. वहीं, विभाग को बिना रजिस्ट्रेशन की दौड़ रही ई-रिक्शा के कारण करीब चार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
देवघर में स्थानीय निर्माता भी ई-रिक्शा तैयार कर धड़ल्ले से अपने कारोबार को बढ़ा कर सरकारी राजस्व की चोरी कर रहे हैं. आंकड़ों पर गौर करें, तो देवघर में एक दर्जन से अधिक निर्माता लोकल स्तर पर ई-रिक्शा का निर्माण करते हैं. पर ई-रिक्शा खरीदने वालों को यह पता ही नहीं होता है कि यह मोटर व्हीकल एक्ट के अंदर आता है. रजिस्ट्रेशन, ड्राइविंग लाइसेंस आदि की जानकारी से भी चालक अनभिज्ञ हैं. इस स्थिति में ई-रिक्शा चालकों द्वारा लाखों रुपये से ज्यादा के राजस्व का नुकसान हर माह किया जा रहा है.
जिला परिवहन कार्यालय में ई-रिक्शा का निबंधन नहीं होने से सरकारी एवं गैर सरकारी इंश्योरेंस कंपनियों को भी राजस्व का नुकसान हो रहा है. आंकड़ों पर गौर करें, दो एक ई-रिक्शा के इंश्योरेंस पर औसतन 5000 से 6000 खर्च आता है. इस प्रकार 4500 ई-रिक्शा का इंश्योरेंस नहीं होने से अब तक 2.25 से 2.70 करोड़ का नुकसान हुआ है.
नो इंट्री जोन में भी धड़ल्ले से घुस कर ट्रैफिक व्यवस्था को चुनौती दे रहे हैं.
चालकों को मोटर व्हीकल एक्ट का कोई डर नहीं. न रजिस्ट्रेशन न ड्राइविंग लाइसेंस
दुर्घटना होने के बाद रजिस्ट्रेशन नंबर नहीं होने के कारण चिह्नित नहीं होती ई-रिक्शा
बगैर रजिस्ट्रेशन के ई-रिक्शा का एक्सीडेंट होने पर कोई मुआवजा नहीं मिलता
चोरी होने पर पुलिस इसकी खोज भी नहीं करती
बेतरतीब तरीके से ई-रिक्शा चलाने के कारण दूसरे वाहन के चालक हो रहे दुर्घटना के शिकार
शहर में नाबालिग भी धड़ल्ले से चला रहे हैं ई-रिक्शा, नहीं होती है कार्रवाई
देवघर के नेशनल हाइ-वे व स्टेट हाइ-वे सहित सामान्य सड़कों पर ई-रिक्शा के चालकों को इसे चलाने का ज्ञान नहीं है. न ही चालकों के पास कोई ड्राइविंग लाइसेंस ही है. नतीजा सड़कों पर ई-रिक्शा चलाते वक्त उन्हें यातायात नियम का ज्ञान नहीं होता. यही वजह है कि आये दिन दुर्घटनाओं की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. यह लोगों के जान पर बन आयी है. कार्रवाई के नाम पर चालकों से 500 से लेकर एक हजार रुपये तक वसूली कर उन्हें छोड़ दिया जाता है. पुलिस की ओर से कहा जाता है कि मोटर व्हीकल एक्ट के तहत कार्रवाई करने का उन्हें कोई निर्देश नहीं है.
ई-रिक्शा की औसतन कीमत एक लाख है. यह केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम के तहत आता है. बावजूद ई-रिक्शा निर्माता एजेंसी निर्धारित मानक के तहत इसका निर्माण नहीं करते. नियमानुसार केंद्रीय मोटरवाहन नियमावली के प्रावधान के तहत केंद्र सरकार द्वारा प्राधिकृत इंटरनेशनल सेंटर फॉर ऑटोमोटिव टेक्नोलॉजी हरियाणा द्वारा प्रदत्त प्रमाण पत्र के आधार पर झारखंड में वाहनों के निबंधन की स्वीकृति प्रदान की गयी है. आइसीएटी द्वारा जारी प्रमाण पत्र के आधार पर जिला परिवहन पदाधिकारी कार्यालय में मोटरयान निरीक्षक (एमवीआइ) नवनिर्मित ई-रिक्शा की जांच कर निबंधन व फिटनेस देने की कार्रवाई सुनिश्चित करते हैं. लेकिन, यहां ऐसा कुछ भी नहीं है.
Posted by : Sameer Oraon