भले ही आप पश्चिम के धुर विरोधी हों, उसकी औपनिवेशिक नीतियों के कारण उसके कटु आलोचक हों, लेकिन कानून सबके लिए बराबर होता है, यह सबक उनसे सीखा जा सकता है. अगर आप नियमों का पालन नहीं करेंगे, तो आप भले ही खास हों, आपके साथ आम आदमी जैसा ही व्यवहार होगा. हम भारतीय इस विषय में उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं. इसके बरक्स भारत में परिस्थितियां देख लें.
नेता व अधिकारी पुत्रों की दबंगई के मामले रोजाना सामने आते हैं. यहां तो नेता-अभिनेता और यहां तक उनके सगे-संबंधी भी अपने को कानून से ऊपर मानते हैं. कुछेक मामलों में ही उन पर नकेल कसने की कोशिश होती है. अधिकारियों की हिम्मत नहीं होती है कि कोई उनसे कानून का पालन करने की बात भी कह दे. हाल में ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने दुनिया के नंबर वन टेनिस खिलाड़ी सर्बिया के नोवाक जोकोविच का वीजा रद्द कर दिया. जोकोविच कोई साधारण खिलाड़ी नहीं हैं. वे नौ बार ऑस्ट्रेलियन ओपेन जीत चुके हैं और 10वीं बार इस ट्रॉफी को जीतना चाहते हैं. उन्होंने अपने करियर में 20 ग्रैंडस्लैम समेत 84 खिताब जीते हैं.
ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने 17 जनवरी से शुरू हो रहे ऑस्ट्रेलियन ओपन में सिर्फ उन्हीं खिलाड़ियों, अधिकारियों और दर्शकों को प्रवेश की अनुमति दी है, जिन्हें कोरोना के दोनों टीके लग चुके हैं. जोकोविच ने अब तक वैक्सीन नहीं लगवायी है और वे वैक्सीन के घोर विरोधी हैं. ऑस्ट्रेलिया में वैक्सीन को लेकर नियम सख्त हैं. जोकोविच ने मेडिकल परेशानी की हवाला देते हुए कहा कि वे फिलहाल वैक्सीन नहीं लगवा सकते हैं.
इस आधार पर उन्हें ऑस्ट्रेलियन ओपन में खेलने की छूट मिल गयी थी. लेकिन जोकोविच के ऑस्ट्रेलिया पहुंचने के बाद जब उनसे इस बारे में सबूत मांगे गये, तो वह उन्हें पेश नहीं कर पाये. उनकी ओर से जमा कराये गये दस्तावेजों में भी यह कहा गया था कि मेलबर्न के लिए फ्लाइट पकड़ने से 14 दिन पहले उन्होंने कोई यात्रा नहीं की है. लेकिन सोशल मीडिया की उनकी पोस्ट पर आधारित खबरों के अनुसार इस दौरान जोकोविच ने सर्बिया से स्पेन की यात्रा की थी.
इन जानकारियों के सार्वजनिक होने के बाद उन्हें मेलबर्न एयरपोर्ट में ही रोक लिया गया और उनका वीजा रद्द कर दिया गया. लेकिन उन्होंने इसे अदालत में चुनौती दी और अदालत ने वीजा रद्द करने के आदेश पर रोक लगा दी. लेकिन ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने दोबारा उनका वीजा रद्द कर दिया है. ऐसा करते हुए ऑस्ट्रेलियाई आव्रजन मंत्री एलेक्स हॉक ने कहा कि जनहित में यह कदम उठाया गया है. सरकार का कहना है कि विश्व के नंबर एक खिलाड़ी कोरोना टीका नहीं लगाए हुए हैं और इस वजह से वे समाज के लिए जोखिम पैदा कर सकते हैं.
जोकोविच का कहना है कि उनका वीजा फॉर्म उनके एजेंट ने भरा था और उसमें गलतियां रह गयी थीं. ऐसी खबरें भी आयी हैं कि जिस दिन सर्बिया में जोकोविच की कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आने की बात कही जा रही है, उसी दिन वे बिना मास्क लगाये दो सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल हुए थे, जिनमें एक युवा टेनिस कार्यक्रम था और दूसरा एक सम्मान समारोह था, जिसमें जोकोविच की तस्वीरों वाले स्टांप जारी किये गये थे.
उन्होंने खुद माना है कि उन्होंने संक्रमित होने के बावजूद एक पत्रकार को इंटरव्यू दिया था. हालांकि उनकी दलील है कि उन्होंने सभी सावधानियां बरती थीं. जोकोविच खुल कर टीकों का विरोध करते रहते हैं. जब दुनिया में कोरोना की पहली लहर चल रही थी, उस दौरान उन्होंने कहा था कि वे चाहते हैं कि उनके शरीर के लिए क्या अच्छा है, इसका फैसला करने का विकल्प उनके ही पास हो.
जोकोविच ने एक फेसबुक लाइव कार्यक्रम में कहा था कि वे यह नहीं चाहते हैं कि यात्रा करने या प्रतियोगिताओं में शामिल होने के लिए कोई उन पर टीका लगवाने के लिए दबाव डाले. उनके बयानों को लेकर उनके देश सर्बिया के विशेषज्ञों ने भी कड़ी आलोचना की थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि जोकोविच टीकों को लेकर लोगों में भ्रम पैदा कर रहे हैं. अब स्थिति यह है कि सोशल मीडिया पर वैक्सीन विरोधी लोग उन्हें एक हीरो की तरह पेश कर रहे हैं और उन्हें आजादी का प्रतीक करार दे रहे हैं. ट्विटर पर उनके समर्थन में हैशटैग भी चला और ऑस्ट्रेलियाई ओपन का बहिष्कार तक करने की मांग उठ गयी है.
अगर आपको याद हो कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो को दो प्रसिद्ध फुटबॉल क्लबों- सैंटोस और ग्रेमियो- के बीच मुकाबला देखने की अनुमति नहीं दी गयी थी. इसे देखने के लिए नियम तय कर दिये गये थे कि केवल टीका लगवाने वाले अथवा नेगेटिव आरटी-पीसीआर परीक्षण वाले लोगों को ही स्टेडियम में जाकर मैच देखने की अनुमति मिलेगी.
इसके पहले ब्राजील के राष्ट्रपति बोल्सोनारो ने कोरोना टीकों के प्रति संदेह व्यक्त किया था और खुद टीका नहीं लगवाया था. इस दिलचस्प मुकाबले को ब्राजील के राष्ट्रपति भी देखना चाहते थे. लेकिन अधिकारियों ने उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी. उन्होंने बेहद सम्मान के साथ राष्ट्रपति से कहा कि पहले आप कोरोना का टीका लगवा लें, फिर आप मैच देख सकते हैं. कहने का आशय यह है कि संदेश साफ है- भले ही आप आम हों या खास, लेकिन आप कानून से ऊपर नहीं हैं.
भारत के किसी कोने में नेता, अधिकारी अथवा सेलिब्रिटी को हाथ लगा कर तो देखिए. फिर देखें कि कैसे पूरे तंत्र पर हल्ला बोल दिया जाता है. मैंने इस बात का उल्लेख पहले भी किया है कि नियम और कानून की अनदेखी जैसे हमारी प्रवृत्ति बन गयी है. उत्तर भारत में यह प्रवृत्ति अधिक है. इसकी एक वजह है कि आजादी के 75 वर्षों के दौरान अधिकांश समय सत्ता उत्तर भारतीयों के हाथों रही है. सत्ता प्रतिष्ठान तक लोगों की पहुंच बहुत आसान रही है. ये मंत्री और प्रभावशाली व्यक्ति नियम-कानूनों को तोड़ने में एक मिनट भी नहीं लगाते हैं. मुझे लगता है कि इसी वजह से नियम-कानूनों को तोड़ने का चलन बढ़ता गया है.
आप गौर करें कि रेड लाइट का उल्लंघन करने पर लोग फाइन देने के बजाय पैरवी लगा कर छूटने की कोशिश करते नजर आते हैं. कोरोना की संभावित तीसरी लहर को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों ने अनेक निर्देश जारी किये हैं. लेकिन हम बेपरवाह नजर आ रहे हैं. यह बात सब लोगों को स्पष्ट होनी चाहिए कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई लंबी चलनी है और दिशा-निर्देशों की अवहेलना की प्रवृत्ति हम सभी को संकट में डाल सकती है.