Prayagraj News: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रयागराज में लगने वाले माघ मेले में श्रद्धालुओं के स्नान और आचमन को लेकर गंगा नदी में 3700 क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि कानपुर व अन्य जिलों की टेनरीज से निकलने वाले गंदे पानी को बिना ट्रीटमेंट के गंगा में प्रवाहित न किया जाए. याचिका पर हाईकोर्ट चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस एमके गुप्ता और जस्टिस अजीत की बेंच ने की.
हाईकोर्ट को याचिका के माध्यम से अधिवक्ताओं ने बताया कि वाराणसी में विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण को लेकर तोड़े गए घरों का मलबा गंगा में पाट कर दीवार बनाई गई. जबकि गंगा की स्वच्छता को लेकर सरकार द्वारा करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं. इस पर कोर्ट ने काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के अधिवक्ता विनीत संकल्प से जवाब तलब करते हुए पूछा कि वह बताए ऐसा क्यों किया गया. मामले में अगली सुनवाई 14 फरवरी को होगी.
कोर्ट को अधिवक्ता वीसी श्रीवास्तव ने बताया कि एसटीपी से ट्रीटमेंट के बाद भी पानी साफ नहीं हो रहा. इसके साथ ही कई जगहों पर सीवर और नाले सीधे गंगा में अब भी गिर रहे हैं. साल 2019 से लेकर अब तक एसटीपी के करीब 66 लाख रुपए के बिजली बिल का भुगतान नहीं किया गया है. इस पर कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है कि बिल के बिल का भुगतान क्यों नहीं किया गया? साथ ही, कोर्ट ने सरकार को एसटीपी के क्रियाशील होने और उससे पानी को साफ करने की योजना की विस्तृत जानकारी देने को कहा है.
गंगा में प्रदूषण को लेकर याचिका पर सुनवाई कर रही कोर्ट ने प्रदेश की योगी सरकार को माघ मेले के शुरू होने से पहले गंगा में स्वच्छ पानी को लेकर निर्देश दिया. कोर्ट ने कहा कि माघ मेले में श्रद्धालु गंगा में स्नान और आचमन करते हैं. माघ मेले से पहले गंगा में कोर्ट ने 3200 क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा सरकार सुनिश्चित करे की गंगा में गंदे नाले और सीवर का पानी बिना ट्रीटमेंट के न गिराया जाए.
रिपोर्ट : एसके इलाहाबादी