पिछले काफी समय से दुनियाभर में क्रिप्टो करेंसियों का चलन बढ़ा है. भारत में केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक का मत यह रहा कि क्रिप्टो करेंसियां गैर कानूनी हैं, इसलिए इनके लेन-देन को कानूनी मान्यता नहीं दी जा रही थी. रिजर्व बैंक ने एक सूचना जारी कर बैंकों को क्रिप्टो करेंसी के लेन-देन से दूरी बनाने और अपने ग्राहकों को आगाह करने को कहा, तो सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया कि चूंकि सरकार ने इन्हें गैर कानूनी घोषित नहीं किया है, इसलिए बैंकों को दी गयी यह हिदायत कानूनन ठीक नहीं है.
इसके बाद तो क्रिप्टो एक्सचेंजों द्वारा बड़ी मात्रा में लेन-देन शुरू हो गया. बाजार के हवाले से अनुमान है कि करीब दो करोड़ लोगों ने इसमें पैसे लगाये हैं. क्रिप्टो एक नयी कंप्यूटर टेक्नॉलॉजी ‘ब्लॉकचेन’ की देन है. इस तकनीक का अभी तक अनुभव यह रहा है कि वर्तमान में चल रही क्रिप्टो करेंसियों के उद्गम, निर्माता आदि का कुछ पता नहीं चलता.
यदि कोई व्यक्ति गैर कानूनी रूप से क्रिप्टो प्राप्त करता है, तो उसका पता नहीं लगाया जा सकता. तकनीकी विकास एक निरंतर प्रक्रिया है. इस संदर्भ में ब्लॉकचेन तकनीक के कई अभूतपूर्व फायदे हैं. इसका उपयोग कर स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, भूमि रिकाॅर्ड सहित कई नागरिक सुविधाओं को बेहतर बनाया जा सकता है.
लेकिन प्रश्न यह है कि क्या इस टेक्नॉलॉजी के नाम पर क्रिप्टो को अपनाना भी जरूरी है? क्रिप्टो समर्थकों का कहना है कि ‘ब्लॉकचेन’ तकनीक का भरपूर लाभ उठाने और इसके विकास को गति देने के लिए क्रिप्टो करेंसी की माइनिंग एक प्रोत्साहन के रूप में कार्य करती है. इसलिए उनका तर्क यह है कि क्रिप्टो और ‘ब्लॉकचेन’ टेक्नॉलॉजी को अलग नहीं किया जा सकता, लेकिन टेक्नॉलॉजी के समर्थक, पर क्रिप्टो के विरोधियों का तर्क है कि ‘ब्लॉकचेन’ तकनीक का उपयोग करने के लिए क्रिप्टो की जरूरी शर्त नहीं होनी चाहिए.
यह सही है कि किसी भी कार्य के लिए प्रोत्साहन जरूरी है, लेकिन वह विधिसंगत और नैतिक रूप से सही होना चाहिए. वर्तमान क्रिप्टो करेंसियां यह शर्त पूर्ण नहीं करतीं. पहली बात यह है कि क्रिप्टो करेंसी को करेंसी कहना ही गलत है. करेंसी का अभिप्राय है सरकार की गारंटीशुदा, केंद्रीय बैंक द्वारा जारी मुद्रा. क्रिप्टो करेंसी निजी तौर पर जारी आभासी सिक्के हैं, जिनकी कोई वैधानिक मान्यता नहीं है.
दूसरी बात, क्रिप्टो का उपयोग अपराधियों, आतंकवादियों, स्मगलरों, हवाला में लगे लोगों द्वारा किया जा रहा है. हाल में पूरी दुनिया में जब साइबर अपराधियों ने कई कंपनियों का डाटा वापस देने के लिए फिरौती बिटक्वाइन में मांगी थी, तब इससे बिटक्वाइन के आपराधिक इस्तेमाल की बात सामने आ गयी.
तीसरी बात, यह एक ऐसी मूल्यवान आभासी संपत्ति है, जिसके धारक को तो उसका पता होता है, लेकिन किसी अन्य को इसका पता तभी चलता है, जब इसमें बैंक के माध्यम से लेन-देन होता है. हालांकि घोषित लेन-देन के बाद इस पर आयकर लगाया जा सकता है, लेकिन यदि इसकी बिक्री विदेश में हो, तो कर नहीं लगेगा. वास्तव में क्रिप्टो एक वैधानिक संपत्ति नहीं है, इसे किसी कंपनी या व्यक्ति की बैलेंसशीट में नहीं दिखाया जा सकता.
इस प्रकार क्रिप्टो आयकर, जीएसटी एवं अन्य करों की चोरी का माध्यम बन रही है. चौथी बात, बिटक्वाइन तथा अन्य क्रिप्टो करेंसियों की कीमत में लगातार होते उतार-चढ़ाव और बढ़ती कीमत के कारण युवा इसकी तरफ आकर्षित हो रहा है. एक मोटे अनुमान के अनुसार अभी तक छह लाख करोड़ रूपये इसमें लग चुके हैं. यह एक अंधे कुएं की तरह है, जहां पैसा कहां और किसकी जेब में जा रहा है, किसी को नहीं मालूम.
यदि यह पैसा देश के विकास में लगे, हमारे युवा उद्योग-धंधे में लगाएं, तो हमारी जीडीपी में खासा फायदा हो सकता है. कहा जा रहा है कि पिछले कुछ समय से देश में पूंजी निर्माण कम हो रहा है. यदि ऐसी आभासी कथित संपत्ति में पैसा लगाने की प्रवृत्ति बढ़ी, तो यह निवेश और अधिक कम हो सकता है. पांचवा, क्रिप्टो के खिलाफ एक बड़ा तर्क यह है कि इसकी माइनिंग में बड़ी मात्रा में बिजली खर्च होती है, जिससे बिजली की कमी हो सकती है. चीन द्वारा क्रिप्टो को प्रतिबंधित करने में यह सबसे बड़ा तर्क दिया गया है.
क्रिप्टो समर्थक भी यह मानते हैं कि क्रिप्टो का विनियमन जरूरी है, लेकिन उनका कहना है कि क्रिप्टो को मान्यता देकर विनिमयन हो. क्रिप्टो विरोधियों में से भी एक वर्ग ऐसा है, जो मानता है कि हालांकि इसके विनियमन में ही भलाई है, क्योंकि प्रतिबंध को प्रभावी नहीं किया जा सकता, लेकिन एक वर्ग यह भी मानता है कि क्रिप्टो को गैर कानूनी गतिविधियों को बढ़ावा देने के चलते प्रतिबंधित करना चाहिए और यह संभव है.
वे इस बाबत चीन का उदाहरण देते हैं, जहां सरकार ने क्रिप्टो को प्रतिबंधित कर सरकारी डिजिटल करेंसी जारी करने की ओर कदम बढ़ाया है. लगभग इसी मार्ग पर अमरीका भी चलने को तैयार है, लेकिन क्रिप्टो प्रतिबंधित करते हुए इसकी अंतर्निहित तकनीक से कोई परहेज नहीं होना चाहिए. ‘ब्लॉकचेन’ तकनीक का उपयोग तो तब भी किया जा सकता है. प्रौद्योगिकी के विकास को प्रोत्साहन सरकारी डिजिटल करेंसी के माध्यम से किया जा सकता है. ऐसी करेंसी घरेलू लेन-देन में इस्तेमाल तो हो ही सकती है, साथ ही इसकी वैश्विक मांग भी हो सकती है.