20.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का संकल्प

विकसित देश समझ चुके हैं कि भारत की नीति देश में ही निर्माण को प्रोत्साहित करने की है और उन्हें कारोबार के लिए साझा उपक्रम लगाना होगा.

भारत में रक्षा हथियारों और साजो-सामान के निर्माण पर जोर देना एक जरूरी कदम है और पिछले कुछ समय से यह सरकार की प्राथमिकता में है. सबसे अहम बात यह है कि बड़ी शक्ति बनने की आकांक्षा रखनेवाला कोई भी देश हो, उसे अर्थव्यवस्था और रक्षा के क्षेत्र में, जहां तक संभव हो, आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करनी चाहिए. फ्रांस की रक्षा मंत्री फ्लोरेंस पार्ली से हुई बातचीत की जानकारी देते हुए भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताया है कि दोनों देश संयुक्त रूप से जहाज का इंजन बनाने पर सहमत हो गये हैं.

इसके लिए एक बड़ी फ्रांसीसी कंपनी भारत आयेगी और यहां एक स्थानीय कंपनी के साथ मिल कर इंजन निर्माण करेगी. उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले रूस के सहयोग से भारत में क्लाशिनिकोव राइफलों के निर्माण का करार हुआ है. कई वर्षों की चर्चा के बाद अब इस पर सहमति बनी है और रूस सौ फीसदी तकनीक के हस्तांतरण के लिए तैयार हो गया है.

कई अन्य हथियारों का निर्माण भी रूसी सहयोग से हो रहा है. हमारी पहले एक नीति थी ‘ऑफसेट पॉलिसी’, जिसके तहत यह व्यवस्था थी कि जितने मूल्य का हम सामान खरीदेंगे, उसका 30 फीसदी हिस्सा भारत में रक्षा या अन्य क्षेत्र में निवेश करना होगा, लेकिन उस व्यवस्था से हमें कोई खास फायदा नहीं हुआ. फिर हमारी कोशिश तकनीक के हस्तांतरण के लिए रही, पर उसे भी पूरी तरह कार्यान्वित नहीं किया जा सका. इसका एक कारण हमारी रक्षा कंपनियों की कमियां भी रहीं.

पिछले साल सरकार ने रक्षा उत्पादन नीति बनायी और इसके साथ बजट आवंटन का प्रावधान भी किया गया है. यह एक अहम पहल है, क्योंकि चीन और पाकिस्तान की आक्रामकता को देखते हुए रक्षा इंतजामों को लगातार बेहतर करने की जरूरत है. हम अभी दुनिया में हथियारों के दूसरे सबसे बड़े आयातक देश हैं. बेचनेवाले देशों का तो हित इसमें है कि हम उनसे सामान खरीदते रहें, लेकिन बाजार होने के नाते हमारा हित इसमें है कि बाहर की कंपनियां आएं और हमारी कंपनियों के साथ मिल कर उत्पादन करें.

पहले सरकार ने 101 चीजों की एक सूची बनायी थी, जिन्हें घरेलू बाजार से ही खरीदा जाना था. धीरे-धीरे इसमें बहुत-सी चीजें और भी जोड़ी जा रही हैं. इस संबंध में यह भी उल्लेखनीय है कि रक्षा क्षेत्र में बड़े निवेश की जरूरत होती है. बड़ी कंपनियां तभी इस क्षेत्र में आयेंगी, जब उन्हें भरोसा होगा कि उन्हें ऑर्डर मिलते रहेंगे. यदि ऐसा होता, तो बीते 10-15 साल में हम और आगे बढ़ सकते थे. रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष निवेश की सीमा पहले 49 फीसदी थी, जिसे अब बढ़ा कर 74 फीसदी कर दिया गया है. ऐसे नीतिगत सुधार से देशी और विदेशी कंपनियों की दिलचस्पी बढ़ी है.

रक्षा क्षेत्र में विकसित देश भी अब यह बात समझ गये हैं कि भारत की नीति देश में ही निर्माण को प्रोत्साहित करने की है और अगर उन्हें हमारे साथ कारोबार करना है, तो उन्हें साझा उपक्रम लगाना होगा. रक्षा मंत्री ने यह भी कहा है कि भारतीय उद्योग से रक्षा खरीद बढ़ाने के लिए सरकार बजट आवंटन बढ़ाने के लिए भी प्रतिबद्ध है.

आज भारत का रक्षा और एयरोस्पेस निर्माण बाजार 85 हजार करोड़ रुपये का हो चुका है और 2047 तक इसके पांच लाख करोड़ रुपये होने की उम्मीद है. यदि हम फ्रांस की बात करें, तो वह चार-पांच दशक पहले रक्षा जरूरतों के लिए अमेरिका और ब्रिटेन पर निर्भर करता था, पर आज वह इन देशों के साथ प्रतिस्पर्द्धा में है. भारत का रक्षा निर्यात भी निरंतर बढ़ रहा है. यदि हमें इस दिशा में लगातार विकास करना है, तो हमें शोध एवं अनुसंधान पर बहुत अधिक ध्यान देना होगा.

केवल उपलब्ध तकनीक पर निर्भरता से बहुत कुछ हासिल नहीं किया जा सकता है. जो उत्पाद दूसरे बना रहे हैं, अगर हम भी वही निर्मित करेंगे, तो फिर कोई हमसे खरीद क्यों करेगा? हमने रूस के साथ मिलकर ब्रह्मोस मिसाइल का निर्माण किया है, जो एक बेहद उम्दा मिसाइल है और अब वह हाइपर सोनिक क्षमता से लैस हो रही है. अनेक देश उसे खरीदना चाह रहे हैं.

जिस प्रकार पहले रूस को समझ में आ गयी कि भारत के साथ रक्षा के क्षेत्र में कारोबार करने का ढंग साझेदारी है, उसी तरह अब फ्रांस भी संयुक्त उपक्रम लगाने पर सहमत हो गया है. जैसा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि भारत ने सभी देशों को इस संबंध में अपने पक्ष से अवगत करा दिया है.

निश्चित ही ये प्रयास स्वागतयोग्य हैं, लेकिन इन दिशा में ठोस प्रगति हो, इसके लिए हमें अपनी क्षमताओं, शक्ति और कमजोरियों को ठीक से समझकर आगे बढ़ना होगा. देश के निजी क्षेत्र की कुछ कंपनियां बहुत अच्छा कर रही हैं और उन्हें बड़े ऑर्डर भी दिये जा रहे हैं.

देशी निजी क्षेत्र और बाहर की कंपनियों के आने से निवेश, शोध, तकनीक आदि से जुड़ी कई समस्याओं का समाधान होने की आशा की जा सकती है. जिस प्रकार से फ्रांस, अमेरिका आदि देशों में रक्षा और एयरोस्पेस उत्पादन को आगे बढ़ाने में निजी क्षेत्र की मुख्य भूमिका रही है, वैसा हमारे देश में भी संभव है. इस संबंध में सार्वजनिक उपक्रमों में सुधार को आगे ले जाने के साथ निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के उपाय भी करने होंगे. (बातचीत पर आधारित).

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें