सियासी ग्लैमर के सामने बॉलीवुड का ग्लैमर भी फेल है. इसीलिए एक्टर बॉलीवुड का ग्लैमर छोड़कर सियासी अखाड़े में उतरते हैं. बरेली में भी सरकारी विभागों की बड़ी कुर्सी पर बैठने वाले अफसर-कर्मचारी भी सियासत के अखाड़े में दांव पेंच अजमा रहे हैं. इसमें से कई विधायक बन चुकें हैं, तो वहीं कुछ लगातार सियासी मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं.
पशु चिकित्सा अधिकारी की नौकरी छोड़कर वर्ष 2007 में सियासत में आने वाले डॉ. डीसी वर्मा तीसरे चुनाव में मीरगंज से विधायक बने हैं. उन्होंने सियासत की शुरुआत बसपा से की थी.मगर, विधायक भाजपा के टिकट पर बन सके. बदायूं कलेक्ट्रेट में प्रशासनिक अधिकारी की नौकरी छोड़कर आने वाले विजयपाल सिंह फरीदपुर से पांच विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं.वह 2007 में विधायक बन सके हैं.
सिंह एक बार फिर मज़बूती के साथ मैदान में हैं, जबकि एमजेपी रुहेलखंड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. श्याम विहारी लाल वर्तमान में फरीदपुर सुरक्षित सीट से विधायक हैं. शिक्षा विभाग में टीचर की नौकरी छोड़कर आने वाले मास्टर छोटे लाल 1996 में सपा के टिकट पर विधायक बने थे.मगर, इसके बाद दोबारा विधानसभा पहुँचने की इच्छा पूरी नहीं हुई, लेकिन इस बार फिर चुनाव लड़ने को टिकट की कोशिश में हैं.
इनका ख्बाब अब भी अधूरा- सपा से कैंट विधानसभा से टिकट मांगने वाले इंजीनियर अनीस अहमद सरकारी विभाग सीएनडीएस में इंजीनियर थे.वह 2012 में सरकारी नौकरी छोड़कर कैंट से चुनाव लड़े.इसके बाद 2017 में भी लड़े.मगर, विधायक नहीं चुने गए हैं.
यह रिटायर के बाद अजमा रहे हैं किस्मत- एडीएम के पद से रिटायर होने वाले पीसीएस रामेश्वर दयाल सुरक्षित सीट फरीदपुर से टिकट मांग रहे हैं, जबकि यहीं से कॉपरेटिव डिपार्टमेंट में एआर के पद से रिटायर होने वाले रामेश्वर दयाल भी मैदान में हैं.एक ही नाम वाले दोनों अफसर टिकट की कोशिश में जुटे हैं.पुलिस विभाग के आईजी पद से रिटायर होने वाले गुरवचन लाल शाहजहापुर की पुवायां सुरक्षित सीट से चुनाव लड़कर हार चुके हैं, एक बार फिर कोशिश में हैं.
नहीं मिला मुकाम तो, लौट गए पेशे में– डॉ. एमएल मौर्य बसपा से चुनाव लड़े थे, वह भी सरकारी डॉक्टरी छोड़कर आएं थे.मगर, चुनाव हार गए.इसके बाद अपना अस्पताल खोलकर फिर पेशे में वापस गए.15 साल से राजनीति में सक्रिय नहीं हैं.
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रिपोर्ट : मुहम्मद साजिद