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मानसिक स्वास्थ्य पर जोर

महानगरों में मानसिक समस्याओं का असर 13.1%, अन्य शहरी क्षेत्रों में 9.3% व ग्रामीण क्षेत्र में 9.2% तक है. यह बेहद चिंताजनक है.

भारत की लगभग 14 फीसदी आबादी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रही है. इसमें 4.5 करोड़ से अधिक ऐसे लोग हैं, जो अवसाद के शिकार हैं और करीब पांच करोड़ चिंताग्रस्त हैं. केंद्र और राज्य सरकारें मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित जागरुकता फैलाने से लेकर चिकित्सा एवं परामर्श की सुविधाओं के विस्तार की कोशिश कर रही हैं. निजी अस्पताल और स्वैच्छिक संगठन भी इस काम में लगे हैं. राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में भी इस मुद्दे को अहमियत दी गयी है. लेकिन अभी भी संसाधनों और सुविधाओं की कमी है. इसके साथ एक बड़ी चुनौती समुचित शोध करने और आंकड़े जुटाने की है.

इस संबंध में महत्वपूर्ण पहल करते हुए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेस तथा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के दूसरे चरण की तैयारी की है. यह सर्वेक्षण छह महानगरों तथा कर्नाटक के दो द्वितीयक शहरों में अगले साल फरवरी से शुरू होगा. हर शहर से 3600 लोगों से प्राप्त सूचनाओं का विश्लेषण करने की योजना है. इस प्रक्रिया में लोगों की मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं तथा सरकारी स्वास्थ्य सेवा तक लोगों की पहुंच का आकलन किया जायेगा. इस सर्वे की खास बात यह है कि सोशल मीडिया, ऑनलाइन गेमिंग आदि की लत का भी अध्ययन होगा, जो आज एक बड़ी चिंता के रूप में हमारे सामने है.

यह सर्वे पांच साल के बाद किया जा रहा है. वर्ष 2015-16 के सर्वे के अनुसार महानगरों में मानसिक समस्याओं का असर 13.1 प्रतिशत, अन्य शहरी क्षेत्रों में 9.3 प्रतिशत तथा ग्रामीण क्षेत्र में 9.2 प्रतिशत तक है. यह बेहद चिंताजनक है. ऐसी रिपोर्टें आयी हैं कि लगभग दो साल से जारी महामारी ने मानसिक स्वास्थ्य को भी बहुत हद तक प्रभावित किया है. संक्रमण, बीमारी, मौतों तथा आर्थिक संकटों ने मन-मस्तिष्क पर जो असर किया है, उसका आकलन भी इस सर्वे के माध्यम से किया जा सकेगा. इस बार शहरी क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की एक बड़ी वजह यह है कि देश में शहरीकरण की रफ्तार बहुत तेज है.

इसी तरह मानसिक समस्याओं का दायरा भी बढ़ता जा रहा है. इस सर्वे से जो सूचनाएं हमें मिलेंगी, उस आधार पर चिकित्सक और नीति निर्धारक निवारण के प्रयासों की रूप-रेखा तैयार कर सकेंगे. उल्लेखनीय है कि मानसिक समस्याएं अपने साथ शारीरिक और सामाजिक मुश्किलें भी लाती हैं. इसके साथ ही, शारीरिक और सामाजिक परेशानियां मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं.

ऐसे में प्राथमिकता के साथ इनके समाधान और उपचार की समुचित व्यवस्था करना जरूरी है. सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य को डिजिटल तकनीक से जोड़ने का आवश्यक कदम उठाया है. इससे दूरस्थ चिकित्सा और परामर्श उपलब्ध हो सकेगा. इस व्यवस्था से पीड़ित व्यक्ति और उसके परिजन सुदूर किसी शहर या महानगर में बैठे विशेषज्ञ की सेवाएं ले सकेंगे, जो तकनीक के अभाव में संभव नहीं है.

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