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Bihar Politics: लालू- राबड़ी राज में बिहार में बोलती थी तूती, जानें कैसे गायब हुई साधु यादव की सियासी जमीन

लालू-राबड़ी राज में जिस साधु यादव की कभी तूती बोलती थी, राजद से अलग होने के बाद साधु यादव आजतक राजनीतिक जमीन ही तलाश रहे हैं. एक नजर साधु यादव के पॉलिटिकल करियर पर...

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव की शादी के खिलाफ बयानबाजी करने के बाद राबड़ी देवी के भाई साधु यादव अभी सुर्खियों में हैं. लंबे समय के बाद बिहार में साधु यादव का नाम फिर से चर्चे में आया है. कभी लालू-राबड़ी राज में जिस साधु यादव की तूती बोलती थी, आज वही साधु यादव लालू परिवार को पोल खोलने की धमकी देते दिख रहे हैं. वहीं लालू यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव अपने मामा के खिलाफ खुलकर मैदान में उतर गये हैं. आइये जानते हैं लालू-राबड़ी संग साधु यादव के रिश्ते का उतार-चढ़ाव भरा सफर……..

बिहार में रही साधु यादव की तूती

नब्बे के दशक में बिहार में लालू यादव के नेतृत्व में सरकार बनी. इसके बाद लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी के जिम्मे बिहार का शासन रहा. उन दिनों राबड़ी देवी के भाई यानी लालू यादव के साले अनिरुद्ध यादव उर्फ साधु यादव की तूती बोलती थी. लोग कहते हैं कि लालू-राबड़ी राज में साधु का रुतबा ही कुछ अलग था. वो लालू यादव के राइट हैंड माने जाते थे. लालू-राबड़ी राज में साधू यादव से पंगा लेने की हिम्मत किसी में नहीं थी.

गोपालगंज से साधु यादव को लालू ने दिया टिकट

दबंग माने जाने वाले साधु यादव की धाक केवल पार्टी में ही नहीं बल्कि पूरे बिहार में थी. लालू यादव ने ही साधु यादव को विधानपरिषद और विधानसभा में विधायक बनाकर भेजा. 2004 में साधु यादव को गोपालगंज सीट से सांसद का भी टिकट मिला और राजद के सिंबल पर जीतकर साधु सांसद भी बने.

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‘जंगलराज’ की चर्चा और बिहार में  सत्ता परिवर्तन

2005 में बिहार में बड़ा सत्ता परिवर्तन हुआ और लालू-राबड़ी राज पर ब्रेक लग गया. जनता ने नीतीश कुमार के हाथों में बिहार की बागडोर सौंप दी. लालू-राबड़ी शासकाल को लेकर सबसे अधिक अगर बातें अगर किसी चीज की होती है तो वो है ‘जंगलराज’. जिसे आज भी राजद के खिलाफ हथियार बनाकर चुनाव में राजनीतिक दलें उतरती हैं. कहा जाता है कि मंथन के बाद लालू परिवार ने यह माना कि राबड़ी देवी के भाई साधु यादव व सुभाष यादव के कारण ही ऐसी छवि बनी. हालांकि साधु यादव इसे लेकर हमेसा कहते रहे हैं कि ठीकरा उनके नाम पर फोड़ा जाता रहा है.

2009 में लोजपा के खाते में गई गोपालगंज सीट

राजद की सरकार गिरी तो साधु यादव से भी लालू परिवार के संबंधों में खटास की खबरें सामने आने लगीं. वहीं लालू यादव ने 2009 के लोकसभा चुनाव में गोपालगंज सीट लोजपा के खाते में दे दी. यह सीट सुरक्षित हो चुकी है. इसी सीट से लालू यादव ने 2004 में साधु यादव को सांसद बनाया था. इसके बाद साधु यादव ने राजद से खुद को अलग कर लिया और कांग्रेस का दामन थाम लिया. हालांकि यहां से भी विवादों में घिरकर ही साधु बाहर हुए.

2014 में राबड़ी के खिलाफ मैदान में उतरे

2014 के लोकसभा चुनाव में साधु यादव अपनी बहन राबड़ी देवी के खिलाफ ही निर्दलीय उम्मीदवार बनकर मैदान में उतर गये और सारण सीट से ताल ठोक दी. लालू परिवार की इससे काफी किरकिरी भी हुई थी. सारण से ही लालू यादव ने अपना पहला लोकसभा चुनाव जीता था और सांसद बने थे. बीजेपी उम्मीदवार राजीवप्रताप रूड़ी ने 2014 में यहां राबड़ी और साधु दोनों को हराकर जीत हासिल की थी. लेकिन लालू परिवार से साधु का कलह खुलकर सामने आ गया था.

बसपा और जाप में भी रहे साधु

2015 के विधानसभा चुनाव में साधु यादव ने पप्पू यादव की जाप पार्टी से चुनाव लड़ा और हार का सामना उन्हें फिर करना पड़ा. इसके बाद जब 2019 में लोकसभा चुनाव हुआ तो साधु यादव बसपा की टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे लेकिन उन्हें जीत नहीं मिली. कुल मिलकार अगर देखा जाए तो लालू परिवार से दूर होने के बाद से साधु यादव लगातार राजनीतिक जमीन की तलाश में ही हैं लेकिन सितारे अब पहले की तरह बुलंद नहीं रहे.

Published By: Thakur Shaktilochan

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