अमेज़न प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही फिल्म छोरी एक हॉरर फिल्म होने के बावजूद सशक्त संदेश देती है. फ़िल्म भ्रूण हत्या के संवेदनशील मुद्दे को छूती है. इस फ़िल्म के निर्देशक विशाल फुरिया कहते हैं कि यह जॉनर अभी भी हिंदी सिनेमा में सही तरह से एक्सप्लोर नहीं है. हॉरर फिल्मों का एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग है. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश
मराठी फिल्म सुपरहिट रही थी ओटीटी पर छोरी की रिलीज के बाद आपको कैसा रिस्पॉस मिला है?
संतुष्ट हूं पैन इंडिया के लोगों को ये कहानी पसंद आयी है. मराठी में फ़िल्म थिएटर में रिलीज हुई थी तो हम दर्शकों का रिस्पांस पर्सनली देख पा रहे थे. इस बार सोशल मीडिया पर लोगों के मैसेज से मालूम पड़ रहा है. फ़िल्म 240 देशों में रिलीज हो रही है तो रिस्पांस निश्चित तौर पर बड़ा है. मुझे यूएस और कनाडा से भी मैसेज आ रहे हैं.
इस फ़िल्म की शूटिंग कहां हुई है और अनुभव कैसा रहा?
हमलोगों ने शूटिंग भोपाल के पास पिपरिया गांव में थी. जैसे कि फ़िल्म में आपको दिख ही रहा है. गन्ने 9 से 10 फुट के थे फ़िल्म में ही नहीं फ़िल्म की शूटिंग के वक़्त भी हम रास्ते भूल जाते थे कि जाना किधर से है. आना कहां है. इसके साथ ही ये भी दिक्कत थी कि वहां सांप बिच्छू भी था हालांकि वह हमारे काम में कोई दखलंदाजी नहीं कर रहे थे लेकिन एक डर तो रहता ही है.
नुसरत इस फ़िल्म का चेहरा हैं,उन्होंने बहुत अच्छा काम भी किया है क्या वो पहली पसंद थी?
हां एकमात्र वही हमारी पसंद थी. मैं कुछ साल पहले नुसरत से किसी और फ़िल्म के सिलसिले में मिला था. वो फ़िल्म तो नहीं बन पायी लेकिन जो हमारी बात हुई थी उसमें एक बात जो मुझे स्ट्रॉन्ग ली समझ आयी. हम दोनों ही खुद को साबित करना चाहते थे. नुसरत को एक तरह के किरदार मिल रहे थे जबकि मैं लोगों को बताना चाहता था कि हॉरर में भी अच्छी कहानियां बन सकती हैं.
खबरें हैं कि आप फ़िल्म को सबसे पहले हिंदी भाषा में ही बनाना चाहते थे?
यह 2013 की बात है. मेरी उस वक़्त कोशिश चल रही थी. इसमें गाने डालने थे. इसमें रोमांस डालना था लेकिन मैं क्लियर था कि मुझे हॉरर फिल्म बनानी है और आखिर में संदेश देना था. मराठी में भी बहुत मशक्कत के बाद प्रोड्यूसर मिले थे और मैं जैसा चाहता था वैसे उन्होंने बनाने दिया. मराठी में फ़िल्म हिट होने के बाद कई हिंदी के प्रोड्यूसर्स ने मुझे संपर्क किया था लेकिन फिर वे उसे फार्मूला फ़िल्म के तौर पर ही बनाना चाहते थे जिसके लिए मैं राजी नहीं हुआ. आखिर में विशाल और शिखा जैसे निर्माता मिले जिन्होंने मुझे पूरी आजादी दी जैसे मैं फ़िल्म को बनाना चाहता था.
यह फ़िल्म भ्रूण हत्या पर है मौजूदा समय में महिलाओं का अनुपात पुरुषों से ज़्यादा है?
बहुत अच्छी बात है अगर हालात बदल रहे हैं. बदलना भी चाहिए लेकिन एक हकीकत ये भी है कि आज भी महिलाओं को पुरुषों से कम ही आंका जाता है तो मेरी फिल्म हमेशा सामयिक है और अगर एक की भी सोच बदलती है तो मैं अपने मकसद में कामयाब हूं.
फ़िल्म को लेकर लोगों का यह भी कहना है कि फ़िल्म में हॉरर थोड़ा कम रह गया है?
हां वो मैंने जानबूझकर किया क्योंकि मैं चाहता था कि लोग डरकर ऐसा ना हो फ़िल्म ही ना देखें. मैं फ़िल्म से जुड़े संदेश को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहता था इसलिए थोड़ा हॉरर कम रखा. इसके बाद जो भी फ़िल्म बनाऊंगा. वो हॉरर से भरपूर रहेगी.