Prime Minister Narendra Modi in Balrampur: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को बलरामपुर में 9,800 करोड़ रुपये की लागत से तैयार सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना का लोकार्पण किया. इस दौरान उन्होंने बलरामपुर स्टेट के अंतिम शासक महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह का जिक्र किया. बलरामपुर स्टेट 14वीं सदी में स्थापित हुआ था. राजपरिवार के लोग अत्यंत दूरदर्शी थे. महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह का जन्म 01 जनवरी 1914 को हुआ था और उनका निधन 30 जून 1964 को हुआ. महज 50 वर्ष की उम्र में उन्होंने बलरामपुर के लिए उल्लेखनीय कार्य किया.
बलरामपुर राज्य के पहले शासक माधव सिंह व अंतिम शासक महाराजा पटेश्वरी प्रसाद सिंह रहे. देश की आज़ादी के बाद तक जीवित रहने वाले महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह की मृत्यु के बाद राज परिवार की कमान उनके दत्तक पुत्र महाराज धर्मेंद्र प्रसाद सिंह ने संभाला.
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महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह के व्यक्तित्व के निर्माण में भारतीय स्वाधीनता संग्राम की महत्वपूर्ण भूमिका रही. वे राष्ट्रीय स्वाधीनता आन्दोलन में महात्मा गांधी के विचारों से गहरे प्रभावित थे. वे सुख और वैभव में पले होने के बाद भी बलरामपुर की जनता के सुख-दुःख एवं उनकी बुनियादी जरूरतों से भलीभांति परिचित थे. वे स्वाधीनता आंदोलन के आदर्शवादी, नैतिकतावादी सृजनात्मक परिवेश में जन्में, पले-बढ़े और उच्चतर संस्कार अर्जित करते हुए बड़े हुए थे.
महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान बन रहे नये मूल्यों, विचारों एवं आदर्शों से गहरे जुड़े हुए थे. उन्होंने कम समय में ही इस तराई अंचल की अभावग्रस्त जनता के लिए शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण कार्य किया. वे एक संवेदनशील, सहृदय, सुयोग्य एवं दानवीर राजा थे. उन्होंने प्रसिद्ध काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विशाल परिसर के चहारदीवारी का भी निर्माण करवाया था. उनसे दान और सहयोग के लिए महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने भी सम्पर्क किया था. उन्होंने बलरामपुर में महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह से खुद आकर मुलाकात की थी.
बलरामपुर राज की स्थापना चंद्रवंशी पांडव खानदान के युवराज बरयार शाह (पावागढ़, गुजरात) के वंशज बलरामपुर शाह ने की थी. महाराजा दिग्विजय सिंह का देहावसान हो जाने पर महारानी इन्द्र कुंवरी ने उदित नारायण सिंह को गोद लिया, जिनका नाम भगवती प्रसाद सिंह रखा गया. करीब 20 साल राज करने के बाद उनकी मौत हो गई, जिसके बाद उनके पुत्र पाटेश्वरी प्रसाद सिंह ने राज गद्दी संभाली.
महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह के निधन के बाद महारानी राजलक्ष्मी कुमारी देवी ने अवयस्क महाराजा धर्मेंद्र प्रसाद सिंह की वयस्कता तक राज का कार्यभार संभाला.1976 को धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह के वयस्क होते ही राज का समस्त कार्य सौंप कर धार्मिक कार्यो में व्यस्त हो गयीं. सन 1999 में उनका निधन हो गया.
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महाराजा धर्मेंद्र प्रसाद सिंह का जन्म बहराइच जिले के गंगवल स्टेट के राजा कुंवर भरत सिंह के घर वर्ष 1958 में हुआ था. बलरामपुर के महाराजा सर पाटेश्वरी प्रसाद सिंह की कोई संतान न होने के कारण उन्होंने धर्मेंद्र प्रसाद सिंह को गोद ले लिया था. वर्ष 1964 में महाराजा सर भगवती प्रसाद सिंह के स्वर्गवास के बाद धर्मेंद्र प्रसाद सिंह का राजतिलक कर उन्हे महाराज घोषित कर दिया गया था और तब से उनके निधन तक बलरामपुर स्टेट उन्हीं के अधीन था.
महाराजा धर्मेंद्र प्रसाद सिंह के एक पुत्र कुंवर जयेंद्र प्रताप सिंह और एक पुत्री कुंवर विजय श्री हैं. धर्मेंद्र प्रसाद सिंह का विवाह 1980 में नेपाल के जंग बहादुर राणा की पुत्री महारानी बंदना राजलक्ष्मी के साथ हुआ था और 29 दिसंबर 1980 में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिनका नाम जयेंद्र प्रताप सिंह रखा गया. 21 अप्रैल 1984 में पुत्री महाराज कुंवर विजय श्री का जन्म हुआ.
बलरामपुर को शिक्षा के क्षेत्र में छोटी काशी कहा जाता था. वहीं, मन्दिरों के कारण इसे छोटी अयोध्या भी लोग कहते थे. बलरामपुर के राजाओं का ध्यान क्षेत्र के चहुंमुखी विकास के साथ-साथ समाज सुधार के क्षेत्र में भी रहता था. पूरे अवध में तत्कालीन क्षत्रिय जाति में पुत्री बलि की कुप्रथा प्रचलित थी, जिसे बलरामपुर के तत्कालीन महाराजा दिग्विजय सिंह ने बन्द कराया.है।
बलरामपुर को शिवालयों, मंदिरों एवं जलाशयों का नगर कहा जाता है. नील बाग कोठी के पास स्थित राधाकृष्ण-मन्दिर और सिटी पैलेस के भीतर का पूजा गृह और वहां का मंदिर गौरव एवं पवित्रता का द्योतक है. तुलसीपुर में देवी का स्थान, बिजलीपुर में बिजलेश्वरी देवी का मन्दिर, बलरामपुर में बड़ा ठाकुर द्वारा आदि अनेक मन्दिर बलरामपुर राजवंश की धार्मिक मनोवृत्ति के द्योतक रहे हैं.
Posted By: Achyut Kumar