17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सांसद अपना कर्तव्य निभाएं

प्रधानमंत्री ने भले ही यह कहा है कि सांसद जनता के लिए काम करें, लेकिन संसद में संसद का काम सुचारु रूप से चले और उसमें सांसद अपना कर्तव्य निभायें, यह भी सांसदों का ही काम है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसदों को सदन की कार्यवाही में शामिल होने को लेकर चेताया है़ उन्होंने कहा है कि सदन की कार्यवाही में वे अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें और जिम्मेदारी व कर्तव्य का भलीभांति निर्वहन करें. प्रधानमंत्री का अपने दल के सांसदों को संसद के सत्र में नियमित रूप से भाग लेने के लिए चेतावनी देना अपने आप में बहुत असाधारण बात है.

असाधारण होने का सबसे पहला कारण तो यह है कि जो लोग चुनकर संसद सदस्य बनते हैं, क्या वो इतने अपरिपक्व हैं कि उनको ये बताने की जरूरत पड़नी चाहिए कि संसद के सत्र में भाग लेना उनका धर्म है या उनकी जिम्मेदारी है. यदि इस तरह के लोग संसद सदस्य बन रहे हैं, ताे हम नागरिकों को इस बात पर बहुत गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.

हालांकि, एक हिसाब से देखें, तो ये अजीब बात भी नहीं है. बार-बार ऐसा देखने में आता है कि विधानसभा के चुनाव के बाद जो दल बहुमत में होता है, वह अपने विधायकों को किसी बस में बिठाकर किसी रिसॉर्ट में ले जाकर वहां उनको लगभग बंदी बनाकर रखता है. ताकि वे दल-बदल के चक्कर में न फंसें. यहां विधायकों को यह सोचना चाहिए कि उनका अपना अस्तित्व क्या है? उन्हें अपने दल के अधिकारियों, नेताओं से यह नहीं कहना चाहिए कि मैं एक जिम्मेदार नागरिक हूूं और मैं जो ठीक समझूंगा वो करूंगा. लेकिन हमारे राजनीतिक वर्ग में इस तरह की बातें तो बिल्कुल खत्म हो गयी हैं, कोई इस बारे में सोचता भी नहीं है.

अब बात संसद की. मैं बहुत दुख के साथ यह कहना चाहता हूं कि करीब दस वर्ष हो गये हैं, संसद के अस्तित्व को कमोबेश बिल्कुल खत्म किया जा चुका है. मेरा मानना है कि संसद को न चलने देना और पहले से फैसला करके और उसकी घोषणा करके संसद को चलने से रोकना लोकतंत्र के खिलाफ सबसे बड़ा विश्वासघात (ट्रीजन) है. जब एक दल विपक्ष में होते हुए संसद को न चलने देने को अपना राष्ट्रीय कर्तव्य समझता है और फिर जब वही दल सत्ता में आता है, तो उस समय उसके सांसदों का संसद के सत्र में भाग लेना बहुत महत्वपूर्ण बात हो जाती है.

यह बात समझ से परे है. एक और प्रमुख बात यह है कि पिछले कुछ वर्षों में संसद का कार्यकाल या संसद में जिस तरह काम होना चाहिए, जैसे पहले होता था कि संसद में जो बिल आया उस पर चर्चा होती थी, सांसद बिल को विस्तार पूर्वक पढ़ते थे, फिर उस पर चर्चा होती थी, वह बिल्कुल खत्म हो गया है. अब तो संसद में सत्र शुरू होने के बाद सांसदों को बिल दिया जाता है और फिर पांच-दस मिनट के बाद वह पारित हो जाता है.

मेरी समझ से अब संसद रबर स्टांप होकर रह गयी है. पिछले कुछ वर्षों में संसद में किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर अच्छी और तर्कपूर्ण चर्चा हुई ही नहीं है. संसद में लोग सिर्फ हाथ उठाने जाते हैं, ऐसे में सांसद संसद में जायें, या न जायें, क्या फर्क पड़ता है. एक बात और, जब हाथ उठवाने की जरूरत होती है, तब हर एक दल अपना-अपना व्हिप जारी करते हैं. और इसी व्हिप की डर से सांसद वहां चले जाते हैं और हाथ खड़ा कर देते हैं. इस प्रकार संसद की महत्ता को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है.

संसद में चर्चा न होना और संसद में चर्चा न होने देना, चाहे सत्तारूढ़ पक्ष की तरफ से हो, या विपक्ष की तरफ से, देश और लोकतंत्र के विरुद्ध इससे बड़ा कोई अपराध नहीं हो सकता. मेरे हिसाब से जो लोग संसद की कार्यवाही को जानबूझकर, योजना बनाकर बाधित करते हैं, उसे नहीं होने देते, उनकी सदस्यता खत्म करना या सदस्यता सस्पेंड करना तो एक बात है, उनके ऊपर संसद के खिलाफ ट्रीजन यानी विश्वासघात के महाभियोग का मुकदमा चलना चाहिए. क्योंकि इससे ज्यादा नुकसान देश और देश के लोकतंत्र को नहीं हो सकता है.

प्रधानमंत्री द्वारा सांसदों को सदन में उपस्थित रहने को कहने की जरूरत ही नहीं पड़नी चाहिए थी. सांसदों को यह पता नहीं है क्या? ऐसा कहने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि सांसद जिम्मेदारी से काम नहीं करते. एक प्रश्न यह भी उठता है कि यदि सांसद जिम्मेदारी से काम नहीं करते हैं, तो क्या उन्हें सांसद बने रहने का अधिकार है? कहने का अर्थ है कि कोई एक लाख लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहा है और वह अपना काम सही तरीके से नहीं कर रहा है. यह बहुत अजीब बात है.

सांसद कोई बच्चे तो हैं नहीं, ये भी नहीं है कि उनको समझ नहीं है, तो उन्हें ये बात कहने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए. लेकिन यह बहुत दुख की बात है कि सांसदों को यह बताना पड़ रहा है, या इस बात की चेतावनी देनी पड़ रही है कि वे संसद के सत्र में उपस्थित रहें. एक बात और, जो दल सत्ता में होता है, उसका भी यह कर्तव्य हाेता है कि वह संसद को सही तरीके से चलाये. लेकिन यदि सत्तारूढ़ दल संसद में चर्चा होने ही नहीं देना चाहता, तो ऐसे में संसद में होने वाले हंगामे के कारण भी बहुत से सांसद यहां आना नहीं चाहते होंगे.

हो सकता है कि वे अपने क्षेत्र में जाकर काम कर रहे हों. प्रधानमंत्री ने भले ही यह कहा है कि सांसद जनता के लिए काम करें, लेकिन संसद में संसद का काम सुचारु रूप से चले और उसमें सांसद अपना कर्तव्य निभाएं यह भी सांसदों का ही काम है. सिर्फ हाथ खड़ा करना और शोर मचाना ही उनका काम नहीं है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें