रांची : हमने विकास के नाम पर न सिर्फ पारिस्थितिक तंत्र को बिगाड़ा है, बल्कि वन्यजीवों के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा कर दिया है. हमारी गतिविधियों के कारण वन्यजीवों की संख्या लगातार कम हो रही है. जंगल हमारी दुनिया की लाइफलाइन है़ इसके बगैर पृथ्वी पर जिंदगी की कल्पना तक नहीं की जा सकती है़ दूसरी तरफ लोग धड़ल्ले से जंगलों को काट रहे हैं.
संसाधनों के अत्यधिक दोहन से तमाम तरह की प्रजातियों के विलुप्त होने का संकट बढ़ गया है़ बड़े-बड़े जंगल खत्म होने की कगार पर हैं. जीव-जंतुओं का शिकार बढ़ा है़ एक तरफ जंगल खत्म हो रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर प्रदूषण भी लगातार बढ़ता जा रहा है. इससे प्रकृति में नकारात्मक बदलाव दिख रहा है़ ग्लोबल वार्मिंग जैसे भयावह परिणाम देखने को मिल रहे हैं.
एक तरफ झारखंड से बाघ पूरी तरह विलुप्त हो गये, तो अब हाथी भी साथी नहीं रहे. गजराज सड़कों पर घूम रहे हैं. इनके आश्रय को नुकसान पहुंचाना संकट का सबसे बड़ा कारण है. घट रहे घने जंगल और वन्य क्षेत्र में बढ़ रहे असंतुलन के कारण हाथी राजधानी के आस-पास के गांवों में उत्पात मचा रहे हैं. हाथियों के आश्रय को लेकर भी सबको मिलकर विचार करना चाहिए. विश्व वन्यजीव संरक्षण दिवस
झारखंड के जंगलों में असंतुलन है. यहां घने जंगल घट रहे हैं. राज्य में करीब 23605 वर्ग किलोमीटर वन भूमि है. इसमें मात्र 2587 वर्ग किलोमीटर ही घने जंगल हैं. यही कारण है कि यहां कई वन्य प्राणी संकट में हैं. बाघों की संख्या शून्य हो गयी है. साहिल और गिद्ध की स्थिति भी यही है. जंगल कटने के कारण गजराज सड़कों पर आ जा रहे हैं. इससे मानव-हाथी द्वंद बढ़ गया है.
हर साल कई लोगों की जान हाथियों के कारण जा रही है़ झारखंड में वाइल्ड लाइफ के संरक्षण के लिए किये गये प्रयास का परिणाम नजर नहीं आ रहा है. हाल के वर्षों में यहां के वन्य आश्रयणियों को इको टूरिज्म के रूप में विकसित करने के लिए वन विभाग का प्रयास हो रहा है. अधिकारी दावा कर रहे हैं कि इसका परिणाम जल्द दिखेगा. नेतरहाट, दलमा में इको टूरिस्ट विकसित किया जा रहा है. जंगलों में रहनेवाले लोगों की आजीविका को भी विकसित करने का प्रयास हो रहा है.
2015 में झारखंड में चार बाघ होने का प्रमाण था. 2019 की गणना में एक भी बाघ नहीं बताये गये हैं. अधिकारी दावा करते हैं कि कई कारणों से पलामू टाइगर रिजर्व में बहुत अंदर तक गणना नहीं हो पाती है. इस कारण बाघ नहीं मिल पाते हैं. 1973 में पीटीआर में 50 बाघ होने का दावा विभाग करता है.
झारखंड में वैसे वन्य प्राणियों की संख्या घट रही है, जो लुप्त प्राय हैं. 2010-11 के आसपास कराये गये सर्वे में झारखंड के आश्रयणियों में बाघों की संख्या 14 बतायी गयी थी, लेकिन 2019 में कराये गये टाइगर सेंसस में एक भी बाघ नहीं मिले़ यही स्थिति गिद्ध और नील गाय की भी है. आश्रयणियों में नील गायों की संख्या काफी कम हो गयी है. गिद्ध को बचाने के लिए यहां प्रयास हो रहे हैं. राज्य में सर्वे के दौरान मात्र सात गिद्ध ही पाये गये थे. साहिल की भी संख्या कम होती जा रही है़
ताजा सर्वे के अनुसार झारखंड में करीब 31 हजार वन्य प्राणी हैं. 12 वन्य आश्रयणी (एक नेशनल पार्क सहित) हैं. यहां के जानवरों को ही सर्वे में चिन्हित किया जाता है. सर्वे में सबसे अधिक 17 हजार से अधिक बंदर पाये गये थे. राज्य में सबसे अधिक वन्य प्राणी पलामू के तीनों आश्रयणी में हैं. पलामू में राज्य सरकार ने तीन आश्रयणी चिन्हित कर रखा है. यहां पलामू टाइगर रिजर्व के अंदर में ही तीनों आश्रयणी आते हैं. यहां करीब 23 हजार जानवर पाये गये थे. इसमें सबसे अधिक संख्या बंदरों की थी.
आश्रयणी जिला एरिया (वर्ग किमी) मुख्य जानवर
बेतला नेशनल पार्क पलामू 231.67 टाइगर, गौर, हिरण, हाथी
पलामू सेंचुरी पलामू 794.33 हाथी, गौर, सांभर
हजारीबाग सेंचुरी हजारीबाग 186.25 पाइंथर, वाइल्ड बोर व हाइना
महुआडांड़ भालू आश्रयणी पलामू 63.25 भालू, स्पॉटेड डियर, वाइल्ड बोर
दलमा आश्रयणी सरायकेला 193.32 हाथी, माउस डियर, बार्किंग
खरसांवा डियर, वाइल्ड बोर
तोपचांची आश्रयणी धनबाद 8.75 पैंथर, लंगूर, बार्किंग डियर, वाइल्ड बोर
लावालौंग आश्रयणी चतरा 207.00 पैंथर, वाइल्ड बोर, लंगूर, सांभर,
नील गाय, स्पॉटेड डियर आदि
कोडरमा आश्रयणी कोडरमा 177.95 सांभर, तेंदुआ, बार्किंग डियर, ब्लू बुल
पारसनाथ आश्रयणी गिरिडीह 49.33 सांभर, तेंदुआ, बार्किंग डियर, ब्लू बुल
पालकोट आश्रयणी गुमला 183.18 तेंदुआ, स्लॉथ बियर, डियर
गौतम बुद्धा आश्रयणी हजारीबाग 100 सांभर, तेंदुआ, ब्लू बुल
उधवा लेक बर्ड आश्रयणी साहेबगंज 5.65 प्रवासी पक्षी
राज्य में एक नेशनल पार्क और 11 वन्य आश्रयणी हैं. इसके संरक्षण और विकास के लिए काम होता है. झारखंड में कई लुप्तप्राय प्रजातियां भी हैं. इनके साथ-साथ वन्य क्षेत्रों में रहने वालों के लिए भी संरक्षण का प्रयास होता है.
यहां बाघों के संरक्षण पर काम काम हो रहा है. गिद्ध के संरक्षण के लिए एक ब्रीडिंग सेंटर खोलने की योजना है. साहिल का विकास कैसे हो, इस पर काम हो रहा है. स्थिति सुधारने की कोशिश जारी है.
वहां के पर्यावरण का विकास करना होगा. पर्यावरण में वहां रहनेवाले लोगों को भी चिन्हित किया जाता है. जैसे ही पर्यावास का विकास होगा, वहां रहनेवाले जानवरों की संख्या भी बढ़ेगी. वन विभाग इको टूरिज्म की दिशा में भी काम कर रहा है. वन्य आश्रयणियों के आसपास के इलाकों को विकसित किया जा रहा है. आसपास में रहने वाले लोगों की आजीविका का साधन विकसित करने की योजना है. इससे लोग वन्य प्राणी और पर्यावास का नुकसान कम पहुंचायेंगे.
Posted By : Sameer Oraon