PM Modi Repeals Farm Laws : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में एक ऐतिहासिक ऐलान के तहत तीनों कृषि कानून वापस लेने की बात कही. हालांकि अपने संबोधन में उन्होंने क्षमा शब्द का उपयोग किया. प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं क्षमा चाहता हूं कि तीन कृषि कानून को मैं समझा नहीं सका. इसलिए केंद्र सरकार ने तीनों कानून को वापस लेने का फैसला लिया है. जहां एक ओर राजनीतिक विशेषज्ञ इसे मास्टरस्ट्रोक बता रहे हैं. तो वहीं विपक्ष फैसले वापस लेने को बैकफुट वाला कदम बता रही है. जानकारों की मानें तो पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानून पर फैसला लेकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं.
जानकारों की मानें तो कृषि कानून की वजह से पश्चिम यूपी, हरियाणा और पंजाब के किसान दिल्ली-यूपी और दिल्ली-हरियाणा बॉर्डरों पर पिछले एक साल से आंदोलन करते दिख रहे थे. इस वजह से देश के सबसे बड़े प्रदेश यूपी में भाजपा की सत्ता तक पहुंचने की राह मुश्किल नजर आ रही थी. पीएम मोदी के इस फैसले से न सिर्फ रास्ते का कांटा हट जाएगा बल्कि जाटलैंड में विपक्ष की राजनीति को भी मुंह की खानी पड़ेगी.
पंजाब की बात करें तो वहां अभी कांग्रेस सत्ता पर काबिज है. इससे पहले वहां भाजपा और अकाली दल के गंठबंधन की सरकार थी. एक बार फिर भाजपा की प्रदेश पर नजर है. भाजपा इसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का सहारा ले सकती है. किसान बिल वापस लेने के पीछे पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का अहम रोल जानकार बता रहे हैं. पीएम के इस फैसले की कैप्टन अमरिंदर ने सराहना करने का काम किया है.
Also Read: Farm Laws Repealed: प्रधानमंत्री ने क्यों कहा क्षमा चाहता हूं! पढ़ें पीएम मोदी के संबोधन की 10 बड़ी बातें
कृषि कानून को लेकर माहौल भाजपा के इतना खिलाफ था कि कांग्रेस छोड़ने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह भी उससे जुड़ने से करराते रहे. यही नहीं अकाली दल ने भी इसी मुद्दे पर भाजपा का साथ छोड़ दिया था. जानकारों की मानें तो अब कृषि कानूनों की वापसी के बाद माहौल पूरी तरह अलग हो सकता है. पूरी संभावना है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह भाजपा के साथ मिलकर चुनावी मैदान में नजर आ सकते हैं. यही नहीं अकाली दल भी साथ आ सकता है. यदि ऐसा हुआ तो चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस की परेशानी बढ़ जाएगी.
यदि आपको याद हो तो उत्तर प्रदेश में पिछले तीन चुनावों 2014 लोकसभा, 2017 विधानसभा और 2019 लोकसभा चुनाव में पश्चिम यूपी से भगवा लहराया था. तीनों ही चुनावों में भाजपा को ध्रुवीकरण का बहुत लाभ प्राप्त हुआ था. आंकड़ों पर नजर डालें तो 2017 में वेस्ट यूपी के 136 विधानसभा सीटों में से 109 सीटों पर भाजपा ने जीत का परचम लहराया था. वहीं 2012 के चुनाव में उसने सिर्फ 38 सीटें मिली थी. 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो इसमें 2014 की तुलना में उसे 5 सीटों का नुकसान हुआ था. इसके पीछे सपा-बीएसपी और आरएलडी का गठजोड़ वजह बताया गया.
जानकारों की मानें तो पिछले साल नवंबर में किसान आंदोलन की शुरूआत हुई थी. आंदोलन से पश्चिम यूपी में जाट-मुस्लिम को एकजुट होने में मदद मिली जिससे भाजपा परेशान थी. 2013 से पहले के परिदृष्य पर नजर डालें तो राष्ट्रीय लोकदल का कोर वोट बैंक माना जाता था लेकिन मुजफ्फरनगर दंगों के बाद हालात बदल गये. जाट-मुस्लिम एकता टूट गई जिसका सीधा फायदा 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने लिया था.
Posted By : Amitabh Kumar