Jharkhand News, Ranchi News रांची : डों बारी बुरु : खूंटी के घनघोर जंगल और सुंदर वादियों के बीच का एक पहाड़़ यह केवल महज पहाड़ नहीं, बल्कि झारखंडी अस्मिता और संघर्ष का गवाह है़ यह बिरसा मुंडा और उनके अनुयायियों की शहादत की कर्मभूमि है़ यह आनेवाली पीढ़ियों के लिए प्रेरक स्थल बन चुकी है. यह आज के युवाओं को भी रोमांचित कर रही है. इसी पहाड़ पर धरती आबा ने अंग्रेजों के खिलाफ अंतिम लड़ाई लड़ी थी.
डोंबारी बुरु यानी डोंबारी पहाड़ पर बना ऊंचा स्तूप, मान-स्वाभिमान और आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ जंगल-पहाड़ में लड़ी गयी पूरी वीर गाथा को बयां करता है़ प्रभात खबर की टीम भी डोंबारी बुरु पहुंची़ अंग्रेजों की नींद हराम कर देनेवाला अबुआ दिशुम-अबुआ राज का नारा इसी ऊंची पहाड़ी से गूंजा था. 09 जनवरी 1900 को अंग्रेजों के खिलाफ बिरसा के उलगुलान के साथ सैकड़ों आदिवासियों ने शहादत दी और बिरसाइत का झंडा बुलंद किया़ यहां स्थित परिसर में लगे शिलापट्ट में वर्ष 1900 के संघर्ष में शहादत देने वाले शहीदों के नाम उकेरे हुए है़ं
अबुआ दिशोम, अबुआ राज के लिए शहीद हुए हाथी राम मुंडा, हाड़ी मुंडा, सिंगरा मुंडा, बंकन मुंडा की पत्नी, मझिया मुंडा की पत्नी, डुंडन मुंडा की पत्नी के नाम शिलापट्ट पर लिखे है़ं पहाड़ी तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क बन चुकी है़ जितनी ऊंची डोंबारी की चढ़ान है, उतना ही ऊंचा धरती आबा बिरसा मुंडा और उनके साथियों का देश के प्रति समर्पण है़ घनघोर जंगल व दुरुह जगह पर युवाओं की टोली भी अपने पूर्वजों के शाैर्य व पराक्रम को देखने पहुंच रही है़ सोमवार को खूंटी के मुरहू प्रखंड स्थित डोंबारी पहाड़ी पर भी युवा सरपट दौड़ते दिखे. अब अगली पीढ़ी भी वीर गाथा सुनकर रोमांचित हो रही है और अपनी माटी से प्रेम की शपथ ले रही है.
Posted By : Sameer Oraon