23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Jharkhand News: छोटानागपुर में बाल उत्सव की सांस्कृतिक धरोहर है दसा- मसा पर्व, संरक्षण व पोषण की है जरूरत

छोटानागपुर में बच्चों ने प्राचीन परंपराओं को जीवित रखते हुए दसा- मसा पर्व मनाया. इस दौरान अनाज इकट्ठा करने के लिए घर- घर भिक्षाटन भी करते दिखे. अनाज इकट्ठा होने के बाद क्षेत्र के बच्चे साथ मिलकर पिकनिक मनाते हैं. वर्तमान में इस पर्व के संरक्षण व पोषण की जरूरत है.

Sohrai Parb, Jharkhand News (दुर्जय पासवान, गुमला) : ‘दसा मसा हो सोहराई, पीठा लाम्भा मास खाय. ई डाड़े उ डाड़े, करिया कुकुर, दे भौजी झट पट, पुटुस झुंड’ इन गानों की गूंज के बीच शुक्रवार को झारखंड के छोटानागपुर इलाके में बच्चों ने उत्साहपूर्वक दसा- मसा पर्व मनाया. प्राचीन परंपरा के अनुसार, छोटे-छोटे बच्चे हाथों में थैला, डंडा व पारंपरिक औजार लेकर गांव के घर-घर जाकर अनाज मांगते हैं. इकट्ठा हुए अनाज के साथ बच्चे पिकनिक मनाते हैं.

दसा- मसा पर्व में बच्चों द्वारा जंगल में लाम्भा (खरगोश) का शिकार करके उसका मांस खाने की भी परंपरा है. लेकिन, जंगलों में अब खरगोश नहीं मिलते. इस कारण बच्चों ने घरों से जमा किये गये अनाज से पिकनिक मनाये. दक्षिणी छोटानागपुर के गुमला, रांची, सिमडेगा, लोहरदगा व खूंटी जिले में इस पर्व को प्रमुखता के साथ मनाया जाता है. इसके अलावा झारखंड से सटे छत्तीसगढ़ व ओड़िशा राज्य के सीमावर्ती इलाके में भी इस पर्व को छुर-छुरी पर्व के रूप में मनाते हैं. शुक्रवार को गुमला शहर से सटे डुमरडीह गांव में दसा- मसा पर्व का नजारा देखा गया. बच्चे अपने घरों से झुंड बनाकर निकले और हर घर से अनाज जमा किये और पिकनिक मनाये.

जनजाति व सदानों का पर्व है दसा मसा

बाल अधिकार संरक्षण समिति के कार्यकर्ता सह प्रशिक्षक डुमरडीह गांव निवासी त्रिभुवन शर्मा ने बताया कि दसा- मसा में बच्चों की गीत हर घर में गूंजते हैं. समूह में बच्चों की टोली दीपावली के दूसरे दिन घरों से चावल, दाल, अनाज, कंदा उगाह कर बगीचा पहुंचते हैं. इसके बाद पिकनिक से सराबोर होकर घर आते हैं. यह दिन बच्चों के लिए सांस्कृतिक उल्लास का शिखर होता है.

Also Read: Jharkhand News: हजारीबाग के बड़कागांव में अलग अंदाज में मनाया जाता है सोहराय पर्व, जानें इसकी महता

रामराज में उत्सव जंगल में लाम्भा शिकार व पीठा का स्वाद चखने की परंपरा है. आज बरबस बच्चे आंगन में शोर मचाकर नाचते- उछलते आते हैं. ये बाल पर्व छोटानागपुर में बाल उत्सव का सांस्कृतिक धरोहर है. जो जनजाति समूह व सदानों की देन है. यह पर्व सिर्फ छोटानागपुर में मनाया जाता है. दसा- मसा पर्व के संरक्षण व पोषण की जरूरत है.

जीत- जंतुओं के लिए आतिशबाजी है घातक

गुमला में गोवर्धन पूजा धूमधाम से की गयी. भगवान कृष्‍ण, गोवर्धन पर्वत का आकर का पिंड बनाकर और गायों की पूजा विधि-विधान से हुई. वहीं, गुमला की परंपरा के अनुसार गोहार घर में दीया जलाया गया. धान से जुड़े सभी जगहों पर दीया रखा गया. भंडार कोना के दरवाजे पर, धान कूटने वाली ढेंकी के ऊपर, खेती में सहयोग करने वाले गाय-बैल, काड़ा-काड़ी के गोहार घर में दीया रखा. उनके सींगों पर मगहा फूल का तेल लगाया गया.

इस संबंध में सोसो गांव के पाहन सोमरा उरांव ने कहा कि हमारे लिए यह खेती-बारी में सालों-साल आदमी के साथ मेहनत करने वाले पशुओं का पर्व है. पहले लोग पटाखे नहीं फोड़ते थे. उजाले की जीत की कामना पूजा- पाठ से करते थे. इस दौरान सवाल उठाते हुए कहा कि अब अंधेरे को रातभर बारूद से दागते रहना क्या अच्छा है? आदमी, जीव- जंतुओं और पूरी प्रकृति के लिए यह कितना नुकसानदेह है. पर कौन सुनता है? जीत- जंतुओं के लिए अब आतिशबाजी घातक बनते जा रही है.

Also Read: सरायकेला के राजनगर में सोहराय पर्व की धूम, ढोल-नगाड़े पर थिरकते दिखें आदिवासी समुदाय के लोग

Posted By : Samir Ranjan.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें