Diwali 2021: दिवाली का त्योहार रौशनी का प्रतीक है. दिवाली पर्व में ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का मैसेज छिपा है, मतलब अंधकार से प्रकाश की ओर का सफर. कहने का अर्थ है कि अंधकार को त्यागकर प्रकाश के मार्ग पर आगे बढ़ते जाना. दिवाली पर रौशनी होती है, पटाखे फोड़े जाते हैं, बधाईयों का दौर भी चलता है.
भारत जैसे विविधता से भरे देश में उत्तर प्रदेश का एक जिला बदायूं है. बदायूं में एक परंपरा रही है पत्थर मार दिवाली मनाने की. नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली) पर पत्थर मार दीपावली सेलिब्रेट किया जाता था. लेकिन, वक्त गुजरने के साथ इस प्रथा पर रोक लगा दी गई. इस बार भी पत्थर मार दिवाली का आयोजन नहीं हुआ है.
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बदायूं में छोटी दिवाली पर फैजगंज और बेहटा गांव के लोग खुले मैदान में आमने-सामने आते थे. इसके बाद एक-दूसरे पर पत्थरबाजी करके पत्थरमार दिवाली मनाते थे. इस दौरान लोगों को चोटें भी लगती थी. लेकिन, किसी के मन में गिला-शिकवा नहीं रहता. शाम के वक्त दोनों गांवों के लोग साथ बैठकर एक-दूसरे की मरहम-पट्टी करके दिवाली की शुभकामनाएं देते थे. इसके बाद एक साथ मिलकर रौशनी के त्योहार को सेलिब्रेट करते थे. खास बात यह थी कि इसमें हिंदु-मुस्लिम दोनों शामिल होते थे.
बताया जाता है कि पांच साल पहले तत्कालीन एसएसपी ने हिंसा को ध्यान में रखकर पत्थरमार दिवाली पर रोक लगा दी थी. इसके बाद फैसले का खूब विरोध भी हुआ था. विरोध को देखते हुए दोनों गांवों में पुलिस फोर्स की तैनाती कर दी गई. इस साल भी पत्थर मार दिवाली को रोकने के लिए पुलिस की तैनाती की गई है.
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बदायूं जिले दो गांव के बीच पत्थरमार दिवाली की शुरुआत कब हुई? इस सवाल का लिखित जवाब कहीं नहीं मिलता है. इससे जुड़े दस्तावेज भी नहीं हैं. लोगों की मानें तो पत्थरमार दिवाली की शुरुआत गैरआबाद गांव गंगापुर यानी फैजगंज को बसाने के लिए हुई. इसी को लेकर लड़ाई के बाद पत्थरमार दिवाली शुरू हुई.
मुरादाबाद-फर्रुखाबाद मार्ग की उत्तर दिशा में मिर्जापुर बेहटा नामक गांव बसा है. गांव के लोग फैजगंज को बसाने के खिलाफ थे. फैजगंज वाले गांव बसाना चाहते थे. इसके बाद मिर्जापुर के लोगों ने जंग लड़ने की शर्त रखी कि अगर वो जीते तो गांव बस जाएगा. नरक चतुर्दशी के दिन दोनों गांव के बीच जमकर पत्थरबाजी की गई. इस लड़ाई में जीत होने पर फैजगंज बस गया. इसके बाद पत्थर मार दिवाली शुरू हुई.