हमारे प्राचीन पौराणिक साहित्य में वर्णित है कि देवासुर संग्राम की पृष्ठभूमि में अमृत के लिए हुए समुद्र मंथन से चौदह रत्न निकले थे. उनमें एक रत्न भगवान धन्वंतरि थे, जिनके हाथों में अमृत कलश था. इस कारण मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के आदि प्रवर्तक हैं. इसीलिए धन्वंतरि जयंती को आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाया जाता है. धन्वंतरि पूजा तो बहुत पहले से होती रही है, पर आयुर्वेद दिवस के रूप में बीते छह साल से ही भारत सरकार द्वारा इस अवसर को चिह्नित किया गया है.
आयुर्वेद शिक्षा परंपरा में यह पूजा लंबे समय से होती आयी है. इस वर्ष हम छठा आयुर्वेद दिवस मना रहे हैं. इस वर्ष का मुख्य विषय यानी थीम ‘पोषण के लिए आयुर्वेद’ निर्धारित किया गया है. आयुर्वेद जीवन का विज्ञान है. यह विज्ञान केवल इस पर केंद्रित नहीं है कि बीमारियों को कैसे ठीक करना है, बल्कि यह स्वास्थ्य का संपूर्ण ज्ञान है. इसमें मनुष्य की पूरी जीवनचर्या के लिए निर्देश निहित हैं. आप कब सुबह जागेंगे, क्या और कब भोजन करेंगे, किस ऋतु में क्या भोजन अच्छा है, कैसे खाना चाहिए और आप के विश्राम की पद्धति क्या होगी, इन सबका वर्णन इसमें है. इसके विचार केंद्र में एक स्वस्थ जीवन है.
आयु से हम सुख और हित का अर्थ ग्रहण करते हैं यानी व्यक्ति की अच्छी आयु लोगों और समाज के लिए भी हितकारी होनी चाहिए. इसके लिए हमें क्या-क्या करना है, इसकी जानकारी हमें आयुर्वेद से प्राप्त होती है. जब आप किसी बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं, तो उसे कैसे ठीक करना है, यह आयुर्वेद का एक हिस्सा है. स्वस्थ रहना और स्वास्थ्य को बनाये रखना एक भाग है तथा रोग होने पर उसका उपचार करना दूसरा भाग है.
इस वर्ष का थीम पहले हिस्से पर आधारित है कि सभी स्वस्थ होने चाहिए और इसे लेकर व्यापक जागरूकता का प्रसार होना चाहिए. भारत सरकार का इस वर्ष का थीम ‘पोषण के लिए आयुर्वेद’ समुचित भोजन के महत्व को रेखांकित करता है. आयुर्वेद की पुस्तकों में हमें यहां तक निर्देश दिया गया है कि किस तरह से खाना चाहिए, जैसे- एकांत में खाना चाहिए, खाते समय एकाग्रचित रहना चाहिए, बातें नहीं करनी चाहिए, जमीन पर बैठ कर खाना चाहिए आदि.
खाना खाने से पहले हाथ के साथ पैर धोने की भी हिदायत है, क्योंकि ऐसा करने से व्यक्ति की आंतरिक अग्नि प्रज्वलित होती है. भूख से कुछ कम खाने का भी निर्देश है, ताकि पेट में वायु का संचरण ठीक से हो सके. इन सभी निर्देशों का उद्देश्य है कि खाने से व्यक्ति को अधिकाधिक पोषण मिल सके.
पोषण के संदर्भ में आयुर्वेद की यह सीख भी बेहद अहम है कि हमें स्थानीय रूप से उपजनेवाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए, क्योंकि वे उस क्षेत्र-विशेष में वास करनेवाले लोगों के शरीर के लिए अनुकूल होते हैं. आजकल बाहर से आनेवाली चीजों का चलन बढ़ता जा रहा है. जैसे, हम विदेश से कीवी मंगाकर खाते हैं, लेकिन हमारे यहां पैदा होनेवाले आंवले में उससे कहीं अधिक विटामिन सी होता है.
हमें पोषण संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए स्थानीय स्तर पर होनेवाली सब्जियों आदि का सेवन करना चाहिए और उन्हें समुचित तरीके से खाना चाहिए, ताकि पर्याप्त पोषण मिल सके. स्वास्थ्य के लिए संतुलित आहार की आवश्यकता पर बल दिया जाता है. आयुर्वेद इस संबंध में हमारा मार्गदर्शन कर सकता है. ‘पोषण के लिए आयुर्वेद’ पहल के तहत हम लोगों को जानकारी प्रदान कर रहे हैं कि स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन क्या है और उसे कैसे लिया जाना चाहिए.
इस अभियान का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि हमें आयुर्वेद और उसकी शिक्षाओं को अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए. यह हमें समझना होगा कि स्वास्थ्य की अधिकतर समस्याएं हमारी जीवनशैली की कमियों के कारण पैदा हो रही हैं. आयुर्वेद इस संबंध में भी हमें दिशा देता है कि हमारी दिनचर्या कैसी होनी चाहिए. सोने-जागने और खाने का सही समय नहीं होने के कारण हम अपने को तनाव में डालते हैं और बीमारियों को आमंत्रित करते हैं.
वेलनेस को लेकर आज पूरा कारोबार ही खड़ा हो गया है और तरह-तरह के खाद्य-निर्देश लोगों को बताये जा रहे हैं. पश्चिमी दुनिया में यह प्रचलन बहुत अधिक है और वहीं से यह हमारे यहां भी आ रहा है. आयुर्वेद का उद्देश्य व्यक्ति का वजन घटाना नहीं है, बल्कि समुचित पोषण है. शरीर को जितना पोषण चाहिए, भोजन उसी के अनुसार होना चाहिए. ऐसे निर्देशों को कारोबार न बनाकर उस ज्ञान के पालन पर हमारा जोर है, जो हमें परंपरा से घर-परिवार में बड़े-बुजुर्गों से मिलता रहा है.
वह ज्ञान आयुर्वेद में निहित है तथा वह पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोगों को हासिल होता था. पर बीच में सामाजिक व पारिवारिक परिवर्तनों से उस प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न हुआ है. सरकारी स्तर पर अब कोशिश हो रही है कि आयुर्वेद के सहज-सरल निर्देश लोगों तक ठीक से पहुंच सके. उदाहरण के लिए, खाने के सही तरीकों के साथ हम यह भी बता रहे हैं कि खाना खाने के बाद सौ कदम टहलना चाहिए. इन बातों के लाभों से लोगों को अवगत करा रहे हैं. यदि हम आयुर्वेद से अपना नाता बढ़ायेंगे, तो हम स्वस्थ जीवन पा सकेंगे. ऐसा करना ही भगवान धन्वंतरि के प्रति वास्तविक श्रद्धा होगी. (बातचीत पर आधारित).