किसी ज़माने में कांग्रेस के गढ़ कहे जाने वाले औरंगाबाद हाउस की चौथी पीढ़ी आज कांग्रेस में नहीं है, ऐसे में इस राजनैतिक परिवार का राजनैतिक भविष्य बदलते वक्त के साथ बदल रहा है. पंडित कमलापति त्रिपाठी की चौथी पीढ़ी के वंशज और और उनके प्रपौत्र ललितेश पति त्रिपाठी इस बदलाव को वर्तमान का शाश्वत सत्य मानते हैं.
पिछले दिनों सिलीगुड़ी में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरपरस्ती में तृणमूल कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करने के बाद उत्तर प्रदेश पहुंचे ललितेश ने लखनऊ से मिर्ज़ापुर होते हुए वाराणसी तक का सफर सड़क मार्ग से तय किया. इस सड़क यात्रा के निहितार्थ सिर्फ प्रदेश और विशेषकर पूर्वांचल की बदलती हुयी राजनैतिक फ़िज़ा को समझने के क्रम में निकाले जा रहे हैं.
तृणमूल कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण करने के बाद रविवार को वाराणसी में मीडिया को सम्बोधित करने से पहले प्रभात खबर के साथ दूरभाष पर हुयी एक विशेष बातचीत में ललितेश ने स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश में इस वक़्त एक राजनैतिक रिक्तता है और तृणमूल कांग्रेस ही इस रिक्त स्थान को भर सकती है.
एक सवाल के जवाब में ललितेश त्रिपाठी ने बताया कि ‘इस समय प्रदेश के निवासियों में अजीब सा बदलाव मुझे देखने को मिला है, अधिकांश लोग दुखी हैं और खामोश हैं , ऐसे में उनकी मदद और उन्हें उनके अधिकार दिलाने की लड़ाई में ममता दीदी से बड़ा नेतृत्वकर्ता मुझे कोई और नहीं दिखता है, आप बताइए मुझे कि दीदी जिस प्रकार से अलग अलग मोर्चों पर भाजपा की सामंतवादी विचारधारा से लड़ रही हैं वैसे क्या कोई और विपक्ष का नेता लड़ पा रहा है ?’
कांग्रेस छोड़ने के निर्णय पर ललितेश त्रिपाठी ने बताया ‘पुराना घर है हमारा, हमेशा सम्मान है और हमेशा रहेगा, लेकिन अब एक नयी दिशा में आगे बढ़ने का वक़्त आ गया था सो घर से निकल आया अब तृणमूल कांग्रेस ही मेरा घर है और दीदी ही मेरी अभिभावक हैं. ऐसे में उनके निर्देश पर प्रदेश भर में पार्टी के विस्तार पर कार्ययोजना बना कर उस पर गंभीरता से कार्य करूँगा. इसके अलावा पार्टी के विस्तार और अन्य किसी भी मिशन में जो निर्देश प्राप्त होंगे उनका भी पालन करूँगा.’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट वाराणसी के वर्तमान परिदृश्य के सन्दर्भ में पूछे गये सवाल के जवाब में ललितेश ने कहा कि काशी को नागपुर और घाटों को चौपाटी में बदलने का जो प्रयास किया जा रहा है, उसका विरोध होना बहुत आवश्यक है. क्या हमारे प्रमुख मंदिरों एवं बेमिसाल इमारतों पर फसाड लाइट लगवा देने या घाटों पर उत्सव के नाम पर शोर करवाने को विकास मान लिया जाय? पिछले कुछ सालों से काशी को नागपुर बनाने का प्रयास हो रहा है और घाटों को चौपाटी बनाने की चेष्टा चल रही है. यह हमारी साझा संस्कृति के खिलाफ है. इसका विरोध होना चाहिये और जो लोग भी इस विरोध में लड़ रहे हैं हम उनके साथ मिलकर लड़ेंगे.’
ललितेश ने आगे कहा कि जैसा मुझे निर्देशित किया गया है उसमें प्रमुख रूप से प्रदेश भर में पार्टी की विस्तार किया जाना सुनिश्चित हुआ है, प्रदेश भर में सदस्यता अभियान चलाकर मैं स्वतः हर जनपद से लोगों को जोड़ने के काम में लगूंगा, ममता दीदी का त्योहारों के बाद उत्तर प्रदेश का संभावित दौरा प्रस्तावित है, ऐसे में उनके आगमन के कार्यक्रम को सफल बनाने की बड़ी जिम्मेदारी मुझे मिली है.
वाराणसी में वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक समालोचक अमिताभ भट्टाचार्य ने प्रभात खबर को दूरभाष पर बताया कि “कांग्रेस के राजनैतिक रूप से कमजोर होने के साथ ममता बनर्जी का राजनैतिक उत्थान ही आज का सच है, अगर ममता बनर्जी उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में विस्तार का सपना देख रही हैं तो यह मत सोचिये कि कुछ नया हो रहा है, लखनऊ में तृणमूल कांग्रेस का दफ्तर लगभग ४ साल से चल रहा है.
त्रिपाठी परिवार के आने से उस दफ्तर में हलचल बढ़ेगी, ऐसे में भाजपा और कांग्रेस से नाराज़ नेताओं का आना जाना अगर बढ़ा तो यह मान के चलिये कि उन्हें अब बड़ा दफ्तर लेना पड़ सकता है. ममता दीदी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को पहले ही अपने भतीजे का दर्जा दे चुकी हैं, जिससे स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में तृणमूल कांग्रेस को अखिलेश का सहयोग जरूर मिलेगा. अब अगर सपा जैसे मजबूत विपक्षी दल का किसी भी तरह का प्रत्यक्ष या परोक्ष सहयोग तृणमूल कांग्रेस को भविष्य में मिलता है तो उन परिस्थितियों में किसी नयी राजनैतिक संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
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रिपोर्ट : उत्पल पाठक