भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में क्रिकेट का जुनून हर किसी के सर चढ़ कर बोलता है. क्रिकेट यहां किसी मजहब से कम नहीं और जब भी भारत-पाकिस्तान के बीच मुकाबला हो तो यह मजहब कई बार अफ़ीम की तरह आता है. टी 20 क्रिकेट विश्व कप मैच में भारत पर पाकिस्तान की जीत ने भारत में राजनीतिक तूफान ला दिया है. पहले ऑनलाइन ट्रोलिंग पर हंगामा हुआ जिसने भारत के तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी को धार्मिक आधार पर निशाना बनाया. वहीं शमी के समर्थन में कई विपक्षी नेता समेत कई क्रिकेटरों और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने भी उनके लिए आवाज उठाई. इस बीच, मुसलमानों द्वारा पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाने की खबरें आने लगीं.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 28 अक्टूबर को एक ट्वीट में कहा कि ऐसा करने वालों पर देशद्रोह के आरोप लगाए जाएंगे. भारत-पाकिस्तान मैचों को लेकर राजनीति भारत में कोई नई बात नहीं है. लेकिन ऐसी राजनीति क्या चलाती है? क्या यह सिर्फ सोशल मीडिया का शोर है. क्या अधिकांश भारतीय भारत की क्रिकेट टीम का समर्थन करना देशभक्ति की अग्निपरीक्षा के रूप में देखते हैं? इस सवाल के बारे में हिंदू और मुसलमान कैसे सोचते हैं, इसमें कोई अंतर है? राजनीतिक बयानबाजी के बारे में क्या है जो भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान समर्थक के रूप में चित्रित करने की कोशिश करता है? क्या क्रिकेट को लेकर कट्टरवाद भारत में सबसे खतरनाक सांप्रदायिक खतरा है?
इन सब सवालों का जवाब वाशिंगटन स्थित “नॉनपार्टिसन फैक्ट टैंक” प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा किया गया एक सर्वे में निकल कर सामने आता है. नवंबर 2019 और मार्च 2020 के इस थिंक टैंक 30,000 लोगों के इंटरव्यू के अधार पर एक रिपोर्ट पब्लिश किया है. इस सर्वे में पूछे गए प्रश्नों में से एक यह था कि “सचमुच भारतीय” माने जाने के लिए किसी को क्या करना होगा? उत्तरदाताओं में से 56% ने उत्तर के रूप में भारतीय क्रिकेट टीम का समर्थन करना चुना. हालांकि यह इस सवाल का सबसे लोकप्रिय जवाब नहीं था (70% ने भारतीय वंश का हवाला दिया और 69% ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हुए संघर्ष को याद करना), पर यह अभी भी महत्वपूर्ण है.
जैसा कि उम्मीद की जा रही थी, किसी को वास्तव में भारतीय बनाने की प्रतिक्रिया धर्म और क्षेत्र में काफी भिन्न होती है. सर्वे के अनुसार क्रिकेट राष्ट्रवाद देश के उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में और हिंदुओं और जैनियों के बीच अधिक प्रचलित है. भारत के गैर-मुस्लिम धार्मिक अल्पसंख्यक (सिख और ईसाई) भारतीय क्रिकेट टीम को मुसलमानों की तुलना में किसी की भारतीय पहचान मानने का कम समर्थन करते हैं.
मुसलमानों द्वारा पाकिस्तानी टीम का समर्थन करने की खबरें सच हैं या नहीं, इस मुद्दे पर एक वास्तविक राजनीतिक समस्या है. अधिकांश भारतीय न केवल भारतीय होने के साथ क्रिकेट टीम का समर्थन करते हैं, बल्कि एक बड़ा हिस्सा इस बात से सहमत है कि “भारत का सम्मान करना” किसी के धर्म का हिस्सा माने जाने के लिए भी आवश्यक है. यह संख्या हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के बीच 70% जितनी अधिक है. इसका मतलब यह है कि जब इस तरह की घटनाएं होती हैं, और क्रिकेट से परे पाकिस्तान की जीत पर कथित उत्सवों को देश के अपमान के रूप में पेश करने का प्रयास किया जाता है, तो ऐसी राजनीति को कम करने या आलोचना करने का प्रयास किया जाता है (उदारवादी स्थिति ठीक यही करती है).