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जोखिम में रह रहे हैं देश के 80 फीसदी लोग, 463 जिलों में जलवायु परिवर्तन बनता जा रहा है बड़ा खतरा

आपदाओं का सीधा संबंध जलवायु में हो रहे परिवर्तन से है.वहीं, जलवायु परिवर्तन को लेकर हुए कई शोधों में जिक्र किया गया है कि जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक न होकर मानवीय गतिविधियों का नतीजा है. क्लाइमेट वल्नेरेबिलिटी इंडेक्स के अनुसार 463 जिलों में जलवायु परिवर्तन बनता जा रहा है बड़ा खतरा.

कई जानकारों का मानना है कि बीते समय से देश में जो आपदाएं आ रही है उसकी सीधा संबंध जलवायु में हो रहे परिवर्तन से है. वहीं, जलवायु परिवर्तन को लेकर हुए कई शोधों में जिक्र किया गया है कि जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक न होकर मानवीय गतिविधियों का नतीजा है. इसी कड़ी में, क्लाइमेट वल्नेरेबिलिटी इंडेक्स (Climate Vulnerability Index) का कहना है कि देश में जलवायु परिवर्तन के लिए देश में कई समस्याओं को झेल रहा है.

बता दें, क्लाइमेट वल्नेरेबिलिटी इंडेक्स के एक अध्ययन को काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर ने जारी किया है. अध्ययन में असम, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक बिहार जलवायु के लिहाज से जोखिम वाले राज्यों की श्रेणी में रखा है. शोध में यह भी कहा गया है कि भारत के 80 फीसदी से अधिक लोग चरम जलवायु घटनाओं वाले इलाके में रहते हैं.

क्लाइमेट वल्नेरेबिलिटी इंडेक्स के अध्ययन में यह भी कहा गया है कि, भारत के 640 जिलों में से 460 से ज्यादा जिले प्राकृति आपदा जैसे बाढ़, सूखा, चक्रवात जैसी आपदाओं से घिरे हैं. इनमें कइ जगह तो जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक आपदा झेल रहे हैं. इस कारण कहीं सूखा पड़ रहा है तो कही भीषण बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है.

इन इलाकों को जोखिम वाले इलाके में रखा गया है: असम के धेमाजी और नागांव, ओडिशा में गजपति, तेलंगाना में खम्मम, आंध्र प्रदेश में विजयनगरम, महाराष्ट्र में सांगली इन सब इलाकों को सबसे ज्यादा जोखिम वाले इलाकों की श्रेणी में रखा गया है. इसके कई और इलाके में जहां कुदरत मानव कृत्यों के कारण बदलाव की स्थिति में आ गया है. वहां पर आपदाएं सामने आ रही हैं.

इसी कड़ी में साल 2013 में 1991 और 2012 के बीच किए गए शोध को प्रकाशित किया गया. इस अध्ययन से पता चला है कि, मनुष्यों की गतिविधियों के कारण प्रकृति बदल रही है. पृथ्वी की जलवायु में परिवर्तन हो रहा है. हाल के सर्वेक्षण से यह भी पता चला है कि इस जैसे जैसे मनुष्यों की गतिविधियां बढ़ रही है, यह फासला और बढ़ता जा रहा है.

Posted by: Pritish Sahay

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