अक्तूबर के महीने में स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध अधिकतर कंपनियां जुलाई-सितंबर तिमाही के नतीजे जारी करती हैं. अच्छी खबर यह है कि कॉरपोरेट मुनाफा, कम-से-कम बड़ी कंपनियों का, तेजी से बढ़ रहा है. यह मुनाफा बढ़ती मांग और बढ़ती कीमतों की वजह से बढ़ रहा है. यह बात सभी क्षेत्रों के लिए सही है, चाहे खाने-पीने जैसी उपभोक्ता वस्तुएं हों, वाशिंग मशीनें और टोस्टर हों, घरेलू सजावट की चीजें हों, या फिर धातु, सीमेंट, निर्माण के सामान, रसायन आदि हों. ई-कॉमर्स की वेबसाइटों पर खूब बिक्री हो रही है.
वित्तीय-तकनीकी कंपनियां भी बड़ी मात्रा में बिक्री कर रही हैं और उनके मूल्य बढ़ रहे हैं. यहां तक कि बैंक भी अच्छा कर रहे हैं. आइसीआइसीआइ बैंक को अब तक का सबसे बड़ा तिमाही मुनाफा हुआ है. वाहन क्षेत्र में भी बढ़त हो रही है, हालांकि महंगी गाड़ियों की मांग की वृद्धि तेज है, जबकि दुपहिया वाहन में कुछ मंदी है. यह अंग्रेजी अक्षर ‘के’ आकार के सुधार को इंगित करता है. इस ‘के’ की ऊपरी रेखा उच्च आय वाली शहरी आबादी के उपभोग को रेखांकित करती है और निचली रेखा कम आमदनी वाले लोगों और ग्रामीण आबादी के उपभोग को बताता है. ऊपरी रेखा उनके बारे में भी बताती है, जो स्टॉक मार्केट की संपत्ति के बढ़त से बहुत लाभान्वित हुए हैं.
स्टॉक बाजार में खुदरा भागीदारी, खासकर म्यूचुअल फंड के रास्ते, बढ़ रही है, पर यह अभी भी उच्च आय के हिस्से का ही प्रतिनिधित्व करता है. हाल ही में नेशनल सिक्यूरिटीज डिपॉजिटरीज लिमिटेड में रखी गयी प्रतिभूतियों का मूल्य चार ट्रिलियन डॉलर पार कर गया है. यह सकल घरेलू उत्पाद के आकार से एक-तिहाई अधिक है. यह एक नयी ऊंचाई है. मांग में यह वृद्धि और बेतहाशा खरीदारी अगली तिमाही से पहले की है, जब त्योहारों के मौसम में खूब खरीदारी होती है.
अगर सही में आर्थिकी गतिशील है, तो दीपावली और क्रिसमस की तिमाही भी अच्छा मुनाफा लायेगी. लेकिन एक चिंता भी हमारे सामने है. उपभोक्ता वस्तुओं की बड़ी निर्माता कंपनी हिंदुस्तान यूनीलीवर के प्रमुख ने चेतावनी दी है कि एक दशक से अधिक समय में लागत खर्च में बढ़त सबसे ज्यादा है. इसे कई कंपनियों के अधिकारियों ने भी कहा है. लागत खर्च में बढ़त का सबसे अच्छा अंदाजा थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति से जाहिर होता है, जो कई महीनों से लगातार दो अंकों में बनी हुई है.
इस लागत खर्च में ऊर्जा और साजो-सामान, धातु और रसायन समेत कच्चा माल तथा दुनियाभर में महसूस की जा रही आपूर्ति शृंखला में अवरोध से पैदा हुए जैसे खर्च शामिल हैं. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति के बीच की खाई बहुत बड़ी है और इसमें संकुचन आना अवश्यंभावी है. इसका अर्थ यह है कि उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति में भी निश्चित ही वृद्धि होगी. एशियन पेंट्स जैसी कंपनियों ने संकेत दिया है कि तीसरी तिमाही में उनके उत्पादों के दाम में बड़ी बढ़ोतरी हो सकती है. कई क्षेत्रों में सक्रिय कंपनियां भी इसका अनुसरण कर सकती हैं.
माचिस की डिब्बी की कीमत दुगुनी हो गयी है. इस मामूली उत्पाद के दाम सात साल में पहली बार बढ़े हैं. शैम्पू, नूडल्स, टूथपेस्ट, खाद्य तेल आदि की कीमतें बढ़ने से उपभोक्ता मुद्रास्फीति भी बढ़ेगी. दरअसल, भारतीय रिजर्व बैंक को भी यह भरोसा नहीं है कि 2023 से पहले वह उपभोक्ता मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत के अपने लक्ष्य तक ला सकेगा.
लगभग दो साल से भारत के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की मुद्रास्फीति छह फीसदी या उससे ऊपर रही है, जो रिजर्व बैंक द्वारा स्वीकृत सबसे ऊपरी सीमा है. अमेरिका और यूरोप में भी मुद्रास्फीति की दर रिकॉर्ड ऊंचाई पर है. सर्दियों में घर को गर्म रखने में इस्तेमाल होनेवाली गैस भी महंगी हो रही है तथा तेल के दाम भी बढ़ रहे हैं.
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन ने कहा है कि वैश्विक खाद्य मूल्य सूचकांक पिछले सात साल में सबसे उच्च स्तर पर है. ऊर्जा, धातु, फाइबर और रसायनों के ब्लूमबर्ग वस्तु मूल्य सूचकांक में भी तेज बढ़ोतरी हुई है. समुद्री ढुलाई के खर्च अभी भी बहुत अधिक हैं और आगे भी ऐसी स्थिति रहेगी. इन सभी को लागत खर्च कहा जाता है, लेकिन देर-सबेर इसका असर उपभोक्ता मुद्रास्फीति पर होगा.
इस दबाव के साथ उच्च वित्तीय घाटा भी मौजूद है, जिसे उच्च करों की जरूरत होती है (जैसे भारत में पेट्रोल-डीजल पर), जिससे मुद्रास्फीति बढ़ती ही है. इन उच्च खर्चों की भरपाई केवल अच्छी कृषि ऊपज से नहीं हो सकती है. कोविड की दूसरी लहर की तरह मुद्रास्फीति भी अचानक बढ़ सकती है. यह धीरे-धीरे और अनुमान के अनुसार नहीं बढ़ती. अगर हम वेतन खर्च के चक्र में आते हैं (सरकार ने महंगाई भत्ते में बदलाव किया है), तब मुद्रास्फीति को वापस नीचे लाना आसान नहीं होगा.
मुद्रास्फीति का भय स्टॉक मार्केट को भी है. उसमें कुछ गिरावट आने लगी है. रिजर्व बैंक के सर्वे में भी दो अंकों के अनुमान व्यक्त किये गये हैं. उच्च स्तर पर जाने के बाद इसे नीचे लाना मुश्किल होता है. मुद्रास्फीति की चिंता का एक सूचक सोने की खरीदारी बढ़ना भी है. सोने के दाम बढ़ने का मतलब है कि लोग महंगाई से बचने के लिए कुछ उपाय कर रहे हैं. लेकिन ऐसा आबादी का एक छोटा व धनी हिस्सा ही करता है. दूसरी ओर, मजबूरी में लोग सोना बेच भी रहे हैं. बीते लगभग सालभर में सोने के एवज में लिये गये कर्ज में 62 फीसदी की बड़ी बढ़त हुई है, जो कम आय के दबाव को इंगित करती है. ऐसा कर्ज अक्सर बच्चों की शिक्षा, शादी, बीमारी या घरेलू खर्च आदि के लिए लिया जाता है.
यदि आमदनी में बढ़त यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की गति ऊंची मुद्रास्फीति के हिसाब से बनी रहे, तब नॉमिनल जीडीपी और कर राजस्व में बढ़ोतरी होगी. यह वित्तीय स्थिति के लिए अच्छा प्रभाव हो सकता है. लेकिन अगर वृद्धि में कमी आती है और मुद्रास्फीति ऊंची रहती है, तब हमारे सामने एक अवरुद्ध स्थिति होगी. ऐसा लगता है कि मांग के कारक मजबूत हैं, तो अवरुद्ध जैसी स्थिति नहीं आयेगी. बढ़ती अर्थव्यवस्था का मुख्य सूचक बैंक ऋण में वृद्धि है और द्वितीयक सूचक अच्छे रोजगार के अवसर और श्रम शक्ति में भागीदारी है.
इस पर गंभीरता से नजर रखनी होगी. अगर इंफ्रास्ट्रक्चर खर्च में वृद्धि होती है और श्रम आधारित निर्यात के क्षेत्र, सॉफ्टवेयर व आइटी में व्यापक रोजगार पैदा होता है, तब मुद्रास्फीति का दबाव कुछ कम महसूस होगा.