Tabbar Review
वेब सीरीज टब्बर
निर्देशक अजित पाल सिंह
संगीत-स्नेहा खानविलकर
कलाकार- पवन मल्होत्रा,सुप्रिया पाठक,रणवीर शौरी,गगन ,साहिल मेहता, परमवीर सिंह चीमा और कंवलजीत
रेटिंग-तीन
टब्बर पंजाबी शब्द है. जिसका हिंदी में अर्थ परिवार होता है. यह सीरीज भी एक परिवार की कहानी है. एक पिता अपने परिवार को बचाने के लिए किस हद तक जा सकता है. कहानी का मूल कांसेप्ट अजय देवगन की फ़िल्म दृश्यम को जेहन में ला सकता है लेकिन सीरीज देखने के बाद यह बात समझ आ जाती है कि परिवार,पॉलिटिक्स,ड्रग्स और मर्डर वाली इस कहानी में संवेदना और नैतिकता जैसा कुछ नहीं है. यहां भला कौन है बुरा कौन का मामला नहीं है. कहानी और किरदार से लेकर हर चीज़ स्याह है.
फ़िल्म की कहानी ओमकार (पवन मल्होत्रा) और उसके परिवार की है. ओमकार रिटायर्ड पुलिस अफसर है. जिसका बड़ा बेटा हैप्पी (गगन) दूसरे शहर में आईएएस की तैयारी कर रहा है. वह घर पर आया हुआ है लेकिन गलती से अपने साथ एक बैग ले आया है. बैग का मालिक महीप उस बैग को ढूंढते हुए उनके घर आ धमकता है. गलतफहमी से हालात कुछ इस तरह बदलते हैं कि गगन महीप को गोली मार देता है.
गगन को बचाने के लिए पूरा परिवार इस हत्या को छुपाने में जुट जाता है लेकिन महीप कोई आम आदमी नहीं बल्कि रसूखदार नेता अजीत सोढ़ी (रणवीर शौरी) का छोटा भाई है. जिस वजह से पूरे शहर की पुलिस महीप को ढूंढने में लगी है. ओमकार के छिपाने के बावजूद महीप की लाश मिल जाती है. उसके बाद कहानी में ऐसे मोड़ आने लगते हैं कि गलती से हुए एक मर्डर को छिपाने के लिए और भी कई मर्डर में ओमकार और उसके परिवार को शामिल होना पड़ता है. सीरीज का अंत मार्मिक है.
8 एपिसोड वाली यह सीरीज नैतिकता की बात नहीं करता है जो आमतौर पर हमारी फिल्में और वेब सीरीज करती हैं. यह सीरीज बताती है कि आदमी की जब अपने और अपने परिवार के जान पर बन आती है तो फिर वह किसी की भी और कितनी भी जानें लेने से गुरेज नहीं करता है. इस वेब सीरीज का हर किरदार ग्रे है. शुरुआत में लगता है कि यह दृश्यम का अपना वर्जन है. यहां ड्रग्स की तस्करी करने वाले एक शख्स की वजह से एक आम आदमी का परिवार मुसीबत में पड़ गया है.
शुरुआती के कुछ एपिसोड्स में कहानी ऐसी लगती है लेकिन जब हैप्पी अपने सीक्रेट्स का खुलासा करता है तो मालूम पड़ता है कि कोई भी नायक नहीं है. थ्रिलर सीरीज की बुनावट ऐसी है कि हर समय तनाव बना रहता है. कभी भी किसी का मर्डर हो सकता है. उसके बाद सबकुछ नार्मल फ़िल्म का यह ट्रीटमेंट आपको कहीं ना कहीं अंदर तक झकझोर देता है.
स्क्रिप्ट की खामियों की बात करें तो हालांकि यह सीरीज रोचकता को शुरू से अंत तक बनाए रखती हैं लेकिन लॉजिक के मामले में थोड़ी कमज़ोर भी दिखती है. क्या दवाई की गोली की शक्ल में जहर मिलता है जिसे आदमी पॉकेट में रखे घूमता रहे और किसी को पानी में मिलाकर दे दें तो उसकी मौत हो जाए. सारी हत्याएं और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हेर फेर बड़ी आसानी से हो जाती है. यह बात भी अखरती है.
इस डार्क थ्रिलर सीरीज को चमकदार इसके कलाकार बनाते हैं. पवन मल्होत्रा एक बार फिर कमाल कर गए हैं. उन्होंने अपने किरदार के हर पहलू को शिद्दत से जिया है।यह सीरीज उनके कंधों पर है. यह कहना गलत ना होगा.
अभिनेत्री सुप्रिया पाठक ने उनका बखूबी साथ दिया है. वे घरेलू प्यारी पत्नी और माँ की भूमिका से मानसिक संतुलन खो बैठी महिला तक अपने किरदार से दोनों आयामों को जीवंत किया है. गगन और साहिल दोनों ही अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय करने में कामयाब रहे हैं. रणवीर शौरी का रोल छोटा है लेकिन उपस्थिति अहम है. हालांकि उनके किरदार का कहानी में कम स्पेस अखरता है. सीनियर एक्टर कंवलजीत को भी फ़िल्म में करने को कुछ खास नहीं था।बाकी के सह कलाकारों ने सभी का बखूबी साथ दिया है.
कलाकारों के साथ साथ इस फ़िल्म का संगीत भी एक अहम किरदार है जो हालात और लोगों की मनोदशा को बखूबी बयान करता है. इसके लिए संगीतकार स्नेहा खानविलकर की जितनी तारीफ की जाए कम है. संत फ़क़ीर के लिखे गीत,गुरुद्वारा के कीर्तन और शबद का इस्तेमाल हुआ है. सीरीज के कैमरावर्क की भी तारीफ करनी होगी. कुलमिलाकर यह डार्क थ्रिलर सीरीज एंगेजिंग और एंटरटेनिंग है.