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दशहरा से पहले जब यज्ञ के लिए भगवान राम के सामने सीता को लेकर आया था रावण, जानिए कुमार विश्वास से ये रामकथा

Dussehra Wishes: जगंल में रहने वाले यजमान की व्यवस्थ करना आचार्य की जिम्मेदारी होती है, इसलिए उसकी अर्धांगिनी की व्यवस्था करना मेरी जिम्मेदारी है. इसलिए इस रथ में आप बैठ जाइए और ध्यान रखना वहां में आप मेरी ही सुरक्षा और कैद रहेगी.

Dussehra Wishes: जब भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय के लिए सेतु निर्माण के बाद रामेश्वरम पर शिवलिंग की स्थापना करनी थी, तब श्रीराम ने जामवंतजी से कहा कि आसपास से कोई पुरोहित, पुजारी या आचार्य, ब्राम्हण या पुजारी ढूढ़कर लाइए जो विधि पूर्वक इस यज्ञ को संपन्न करा सकें. तब जामवंत ने कहा कि हे प्रभु इस जंगल में समुद्र तट पर कौन मिलेगा, यहां पेड़ पौधे वन्यजीव के अलावा क्या मिलेगा, तब भगवान श्रीराम ने कहा कि आचार्य ऐसा लाइए जो शैव और वैष्णव हो, जिसे दोनों परंपराओं का ज्ञाता हो. तब जामवंतजी बोले, हे प्रभु ऐसा तो केवल एक ही व्यक्ति है, लेकिन वह हमारा शत्रु है. पुलत्‍स्‍य मुनि का नाती है, वैष्‍णव है, शिव भक्‍त है और दोनों परंपराओं के बारे में अच्छी जानकारी है. तब श्री राम ने कहा कि ठीक है आप बात करें और यज्ञ का निमंत्रण दें.

तब जामवंतजी श्रीराम के कहने पर रावण के दरबार में पहुंचते है. यह बात जब रावण को पता चली कि जामवंतजी लंका आएं हुए है. जामवंत उनके पितामह के दोस्त रह चुके है. रावण को लगा कि मेरे बाबा के दोस्त है तो उन्हें आदर करना चाहिए. तब रावण ने कहा कि मेरे दरबार में आने के लिए उन्हें कही रास्ते में कठिनाई नहीं हो, और सभी राक्षस हाथ जोड़कर खड़े हो जाएं. तब कथा आती है, जब जामवंत जी रावण के पास पहुंचते है तो रावण जामवंतजी का पैर छूकर प्रणाम करते है. फिर कहा कि मैं आपका स्वागत करता हूं, बताइए आप लंका किसलिए आए है. तब जामवंत जी कहते है कि मैं चाहता हूं कि आप मेरे यजमान का आचार्य बन जाएं. तब रावण कहता है कि इस विषय पर मुझे विचार करना पड़ेगा, इसमें कुछ देर समय लगेगा. तब तक आसन ग्रहण कर लीजिए. जामवंतजी बैठ गए. तब रावण पूछता है कि आपका यजमान कौन है. जामवंतजी बताते है कि अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र श्रीराम है. वे सेतु निर्माण के बाद रामेश्वरम पर शिवलिंग की स्थापित करना चाहते है एक बड़े काम के लिए.

तब रावण पूछता है कि क्या ये बड़ा काम लंका विजय तो नहीं है. तब जामवंत ने कहा आचार्य आप ठीक समझ रहे है. लंका विजय का जिक्र है. क्या आचार्य पद स्वीकार करेंगे. रावण भी प्रतिभाशाली उसे पता था, कौन व्यक्ति आया है मुझे आचार्य बनाने, इतना बड़ा अवसर मिल रहा है. उनके बारे में मैं ज्यादा तो नहीं जानता हूं, लेकिन उन्होंने अपने दूतों को बहुत अच्छे से रखते है. और ऐसे व्यक्ति का आचार्य बनना मुझे स्वीकार है. तब जामवंत ने पूछ कि क्या व्यवस्था करनी होगी. क्या सामग्री मंगानी पड़ेगी. तब आचार्य रवण ने कहा कि चुकि मेरा यजमान वनवासी है और अपने घर से बाहर है. इसलिए हमारे शास्त्र में कहा गया है ऐसी स्थिति में सारी तैयारी आचार्य को स्वयं करनी पड़ती है. आप यजमान से कह दीजिए कि सुबह स्नान करके व्रत के साथ तत्पर रहें मैं सबकुछ कर लूंगा. रावण ने अपने लोगों को बुलाकर कहा कि पूजा करने जाना है ये सभी सामग्री की तैयारी कर लें. इसके बाद रावण रथ लेकर मां सीता के पास गया. सीता से उन्होंने कहा कि समुंद्र के उसपार तुम्हारा पति और मेरा यजमान लंका विजय के लिए यज्ञ आयोजित किया है, और मुझे यज्ञ के आचार्य के रूप में बुलाया है.

जगंल में रहने वाले यजमान की व्यवस्थ करना आचार्य की जिम्मेदारी होती है, इसलिए उसकी अर्धांगिनी की व्यवस्था करना मेरी जिम्मेदारी है. इसलिए इस रथ में आप बैठ जाइए और ध्यान रखना वहां में आप मेरी ही सुरक्षा और कैद रहेगी. मैं आचार्य हूं इसलिए कहता हूं कि आप बैठ जाइए. तब सीता राणव को आचार्य कहकर प्रणाम करती है. सीता के प्रणाम करने पर रावण ने अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद देता है. जब रावण पहुंचा राम के पास तो दोनों भाइयों ने हाथ जोड़कर प्रणाम करते है, और कहते है आचार्य मैं आपका यजमान हूं और लंका पर विजय पाने के लिए एक यज्ञ कर रहा हूं. मैं चाहता हूं कि यहां पर शिवलिंग स्थापित हो. ताकि देवा के देव महादेव का आशीर्वाद प्राप्त हो कि मैं लंका पर विजय प्राप्त कर सकें. लंकेस से कह रहे है राम. आचार्य कहते है कि मैं आपका यज्ञ का पूरी तरह से संपादित करूंगा. महादेव चाहेंगे तो इस यज्ञ का फल पूरा मिलेगा. ये बात रावण ने कहा, तैयारिया शुरू कि गई तो बताया गया कि हनुमान ने शिवलिंग लाने के लिए गये है. इसपर सभी लोग कहने लगे कि पता नहीं शिवलिंग लेकर आएंगे या भगवान शिव को ही उठा लाएंगे.

आचार्य ने कहा कि पूजा में देरी नहीं किया जा सकता है, क्योंकि शुभ मुहूर्त निकल जाएगी. इसलिए आप बैठिए और आपकी धर्मपत्नी वे कहां है उन्हें बुलाइए. तब भगवान राम ने कहा कि आचार्य मेरी धर्म पत्नी तो यहां पर उपस्थित नहीं है. ऐसी कोई शास्त्र विधि बताइए जिसे उनकी अनुपस्थिति में यज्ञ का शुभारंभ किया जा सकें. तब रावण ने कहा कि इसके बिना संभव नहीं है. इसका केवल तीन ही उपाय है. पहला आप बिदुर हो, दूसरा अविवाहित, नहीं तो आपकी विवाह नहीं हुआ हो. तीसरा आपकी पत्नी आपको त्याग दिया हो. क्या तीनों स्थितियां है. तब राम ने कहा कि ऐसी तो नहीं है. तब जामवंत जी ने कहा कि आचार्य इसकी क्या व्यवस्था है. तब आचार्य कहते है कि जब यजमान जंगल में हो, तो उसकी पूरी तैयारियां आचार्य की जिम्मेदारी होती है.

इसलिए आप किसी को भेज दीजिए उस रथ में सीता बैठी है उसे बुला लाएं. इसके बाद विधिवत पूजा हुआ. मां सीता ने अपने हाथों से शिवलिंग को स्थापित किया. यज्ञ संपन्न हुआ. तब राम ने पूछा कि आचार्य आपकी दक्षिण. तो रावण ने कहा कि आप वनवासी है, आपके पास क्या होगा कि दक्षिणा दे पाएंगे. तब श्रीराम ने कहां कि आचार्य बता दीजिए, जब मैं देने के स्थिति में हो तो आप को दे सकूं. तब रावण कहते है कि मुझे दक्षिणा नहीं चाहिए. बस जब मेरी अंतिम समय आएं तो यजमान मेरे सामने हो. यहीं मेरी दक्षिणा है.

Posted by: Radheshyam Kushwaha

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