बिशुनपुर : स्वतंत्रता सेनानी जतरा टाना भगत के वंशज आज भी गरीबी व बेरोजगारी के कारण पलायन को विवश हैं. जतरा टाना भगत के पोता विश्वा टाना भगत आज भी चिंगरी नवाटोली स्थित गांव में खपड़े के मकान में रहता है. 70 वर्ष की उम्र में भी मजदूरी कर पेट पालने को विवश है. जबकि विश्वा के चार पुत्र है. गांव में काम नहीं मिलने के कारण दो बेटे पलायन कर अन्य राज्य में काम कर रहे हैं.
जतरा टाना भगत के वंशज व टाना भगत समाज के लोगों ने कई बार प्रशासन से जतरा टाना भगत की समाधि स्थल गुमला शहर में बनाने की मांग कर चुके हैं. उनके शव को गुमला शहर के जशपुर रोड स्थित काली मंदिर के समीप से बहने वाली नदी के किनारे दफनाया गया था. लेकिन आज तक उनका एक समाधि स्थल नहीं बना है. उनके वंशज व अनुयायी चाहते हैं कि जतरा टाना भगत का बिरसा मुंडा एग्रो पार्क के बगल में खाली पड़े जमीन पर समाधि स्थल बने.
अंग्रेजों से हुए उनके युद्ध की कहानी शिलापट्ट में अंकित किया जाये. ताकि वर्तमान व आनेवाली पीढ़ी उनके बारे में जान सके. जतरा टाना भगत के अनुयायियों ने पूर्व में गुमला डीसी को आवेदन सौंप चुके हैं. जिसमें समाधि स्थल बनाने की मांग की है. पोता विश्वा टाना भगत ने भी अपने दादा की समाधि स्थल बनवाने की मांग की है. जिससे विशेष अवसरों पर उनके समाधि स्थल पर फूल माला चढ़ाया जा सके. यहां बता दें कि पैतृक गांव में जतरा टाना भगत की प्रतिमा स्थापित है. शिलापट्ट भी है. जिसमें जन्म व मृत्यु की तिथि है. परंतु गुमला शहर में जतरा टाना भगत की कोई निशानी स्थापित नहीं है. जिससे आने वाले पीढ़ी उनके योगदानों को जान सके.
विश्वा टाना भगत ने बताया कि हमलोगों को शहीद आवास मिला है. परंतु एक बार का पैसा मिला. जिसके बाद दोबारा पैसा नहीं मिल रहा है. जिस कारण घर नहीं बना पा रहे हैं. घर में लगे छड़ में भी अब जंग लग रहा है. पता नहीं पैसा कब मिलेगा और हम लोग पक्का के घर में रह सकेंगे. कच्चा मकान है. बरसात में कच्चा मकान में रहने में काफी दिक्कत होता है. घर के समीप पूर्व में शौचालय बना था. परंतु वह बेकार पड़ा है. शौचालय खंडहर में तब्दील हो गया है. बुधमनिया ने कहा कि पूर्व में शौचालय बना था. परंतु पेन नहीं बैठाया गया था.