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ब्रिटेन का नस्लभेद

विश्व स्वास्थ्य संगठन, अमेरिका तथा कई यूरोपीय देशों ने कोविशील्ड को कोविड संक्रमण के प्रतिरोधक वैक्सीन के रूप में स्वीकृति दी है.

अब समूची दुनिया कोरोना महामारी तथा उससे पैदा हुई मुश्किलों से जूझ रही है, तब कुछ विकसित देश बेहद आपत्तिजनक रवैया अपना रहे हैं. इस कड़ी में ब्रिटेन ने भारत में निर्मित कोविशील्ड वैक्सीन की खुराक लिये हुए लोगों को टीका नहीं लेनेवालों की श्रेणी में रख दिया है. इस टीका को लेने के बावजूद भारत से जानेवाले यात्रियों को ब्रिटेन में दस दिनों तक क्वारंटीन में रहना पड़ेगा. ब्रिटिश सरकार का यह फैसला भेदभावपूर्ण और अतार्किक है.

उल्लेखनीय है कि कोविशील्ड टीका ब्रिटेन में ही विकसित ऑक्सफोर्ड-आस्त्राजेनेका वैक्सीन के सूत्र पर लाइसेंस के साथ भारत में निर्मित है. भारत में विकसित अन्य टीके कोवैक्सीन के साथ कोविशील्ड की खुराक भारत में करोड़ों लोगों को दी चुकी है. भारत में चल रहा अभियान दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान है.

इतना ही नहीं, पहले इन टीकों की खुराक कई देशों को भी भेजी जा चुकी है. अब जब भारत में वैक्सीन की आपूर्ति समुचित ढंग से हो रही है, तो फिर से इन टीकों का निर्यात करने के लिए चर्चा हो रही है. ऐसे में ब्रिटेन का यह रुख निंदनीय है. भारत सरकार द्वारा कड़ी आपत्ति जताने के बाद ब्रिटिश शासन ने अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने की बात कही है. उम्मीद है कि उन्हें जल्दी अपनी गलती का अहसास होगा और भारत में बनी कोविशील्ड टीके की खुराक लेनेवाले बिना किसी परेशानी के ब्रिटेन की यात्रा कर सकेंगे.

ब्रिटेन समेत कुछ विकसित देश प्रारंभ से ही टीकों के बारे में अनुचित व्यवहार कर रहे हैं. सबसे पहले तो कुछ देशों ने अधिकांश टीकों की खरीद कर ली. इस पर संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऐतराज भी जताया था. इतना ही नहीं, इस्तेमाल के बाद बची खुराक को देने में उन देशों ने आनाकानी की.

इसका नतीजा यह हुआ कि बहुत से विकासशील और अविकसित देशों को उचित मात्रा में खुराक मुहैया नहीं करायी जा सकी. भारत इस समस्या से इसलिए बच गया कि हमारे यहां टीका निर्माण के इंफ्रास्ट्रक्चर और संसाधन उपलब्ध थे. इस वजह से भारत कई देशों की मदद भी कर सका तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन की साझा कोशिश में भी योगदान दे सका.

ब्रिटेन को इस तथ्य का संज्ञान भी लेना चाहिए कि 18 यूरोपीय देशों ने कोविशील्ड को कोविड संक्रमण के प्रतिरोधक वैक्सीन के रूप में स्वीकृति दी है, जिनमें फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, स्विट्जरलैंड, स्वीडेन, नीदरलैंड आदि भी हैं. इस वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन, अमेरिका और कई देशों ने भी मान्यता दी है.

कोरोना जैसी घातक महामारी के इस दौर में ब्रिटेन जैसे देशों को गैरजिम्मेदाराना व्यवहार नहीं करना चाहिए. यदि इस तरह की बेवजह पाबंदियां लगायी जायेंगी, तो देशों के बीच तनाव भी पैदा होगा और वैश्विक स्तर पर हो रही साझा कोशिशों को भी झटका लगेगा. संक्रमण से बचाव को राजनीतिक और व्यावसायिक हितों से परे रखा जाना चाहिए. अच्छे द्विपक्षीय संबंधों को देखते हुए ब्रिटेन को यह फैसला बदलना चाहिए.

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