गुमला : झारखंड प्रदेश के अंतिम छोर पर बसे गुमला जिले में शक्तिस्वरुपा मां दुर्गा पूजा का इतिहास काफी प्राचीन है. नागवंशी राजाओं ने जिले के पालकोट प्रखंड में सर्वप्रथम दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी. नागवंशी राजाओं द्वारा निर्मित मंदिर व मूर्ति आज भी पालकोट में है. आज भी यहां दुर्गा पूजा की अपनी महत्ता है. नागवंशी महाराजा यदुनाथ शाह ने 1765 में दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी.
यदुनाथ के बाद उनके वंशज विश्वनाथ शाह, उदयनाथ शाह, श्यामसुंदर शाह, बेलीराम शाह, मुनीनाथ शाह, धृतनाथ शाहदेव, देवनाथ शाहदेव, गोविंद शाहदेव व जगरनाथ शाहदेव ने इस परंपरा को बरकरार रखा. उस समय मां दशभुजी मंदिर के समीप भैंस की बलि देने की प्रथा थी. परंतु जब कंदर्पनाथ शाहदेव राजा बने, तो उन्होंने बलि प्रथा समाप्त कर दी. दुर्गा पूजा की परंपरा 256 वर्ष पुरानी है. परंतु आज भी पालकोट का दशभुजी मंदिर विश्व विख्यात है. यहां दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं. मां दशभुजी से मांगी गयी मुराद पूरी होती है.
जब देश गुलाम था. अंग्रेजों की हुकूमत थी. भारतवासी अंग्रेजों के जुल्मों-सितम सह रहे थे. ऐसे समय गुमला शहर में दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई. गुमला में दुर्गा पूजा पर्व मनाने की परंपरा भी अनोखी है. यहां सभी जाति के संगम है. हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख व ईसाई. ऐसे इतिहास के पन्नों पर सर्वप्रथम गुमला शहर में बंगाली समुदाय के लोगों ने 1921 में प्रतिमा स्थापित कर दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी.
बंगाली क्लब में जहां आज पक्का मकान व सुंदर कलाकृतियां नजर आती है. उस समय खपड़ानुमा भवन था. 1921 में जब पहली बार पूजा हुई, तो गुमला ज्यादा विकसित नहीं था. यह बिहार प्रदेश का छोटा गांव हुआ करता था. दृश्य भी उसी तरह था. पर मां दुर्गा की कृपा और लोगों के दृढ़ विश्वास ने कालांतर में गुमला का स्वरूप बदला. आज सिर्फ गुमला शहर में दर्जन भर स्थानों पर श्रीदुर्गा पूजा होती है.
Posted By : sameer oraon