फिल्म – भूत पुलिस
निर्देशक-पवन कृपलानी
प्लेटफॉर्म-डिज्नी प्लस हॉटस्टार
कलाकार- सैफ अली खान,अर्जुन कपूर,यामी गौतम,जैकलीन फ़र्नान्डिज, अमित मिस्त्री, जेमी लीवर और अन्य
रेटिंग – डेढ़
स्त्री फिल्म की बंपर कामयाबी ने हॉरर कॉमेडी फिल्मों की विधा को हिंदी सिनेमा का पसंदीदा फार्मूला बना दिया है. यही वजह है कि अब तक डर एट द मॉल और रागिनी एमएमएस जैसी हॉरर फिल्में बना चुके निर्देशक पवन कृपलानी इस बार लोगों को डराने के साथ साथ हँसाने की तैयारी के साथ आए हैं लेकिन उनकी यह तैयारी बेअसर साबित होती है. यह फ़िल्म ना तो डराने में कामयाब होती है ना ही हंसाने में. फिल्म की पटकथा बेहद कमजोर है.
फिल्म दो भाइयों की कहानी है. विभूति वैद्य ( सैफ अली खान) और चिरौंजी वैद्य(अर्जुन कपूर)की. उनके पिता बहुत बड़े तांत्रिक थे इसलिए उनकी भी भूत को भगाने वाले दुकान चल रही है. विभूति को लगता है कि उसके पिता ने लोगों के अंध विश्वास का फायदा उठाया था. भूत नहीं होते हैं लेकिन चिरौंजी अपने काम को बहुत सीरियस लेता है और मरे हुए पिता पर उसका फुल ऑन फेथ भी है. एक भूत मेले में माया (यामी गौतम) दोनों भाइयों से मिलती है और बताती है कि उसके पिता ने उसके चाय बागान से 27 साल पहले प्रेतनी कचकंडी को भगाया था. वो भूतनी वापस आ गयी है.
वे दोनों भाई कचकंडी को भगाने के वहां माया के साथ जाते हैं. माया की छोटी बहन कनिका ( जैकलीन ) भी है क्या ये दोनों भाई कचकंडी के भूत से दोनों बहनों को बचा पाएंगे. विभूति की सोच सही है कि भूत नहीं होते हैं या चिरौंजी की जो आत्माओं को अपने आसपास महसूस करता है. फिल्म की स्क्रिप्ट में ऐसा कुछ नहीं है. जो पहले हमने नहीं देखा हो. जब किसी की कोई अधूरी इच्छा रह जाती है और उसका अंतिम संस्कार नहीं होता है तो वह आत्मा आसपास के अवशेषों के साथ मिलकर कचकंडी बन जाती है.
फिल्म में दो बैक स्टोरी भी है लेकिन वो भी प्रभावित नहीं करती है।फ़िल्म का वीएफएक्स कमज़ोर रह गया है. फिल्म में मम्मी भूत का जिक्र हुआ है और वीएफएक्स में विदेशी फिल्म मम्मी की कॉपी. माया के कमरे में जो कचकंडी की रूह नज़र आती है वो मम्मी की ही याद दिलाती है.
सिनेमेटोग्राफी फ़िल्म की ज़रूर अच्छी है. राजस्थान और हिमाचल की खूबसूरती का इस्तेमाल कहानी के जॉनर के साथ बखूबी हुआ है. फिल्म के संवाद भी कमजोर रह गए कॉमेडी जॉनर की फिल्म है और मुश्किल से एक दो संवादों को सुनकर हंसी आती है.
अभिनय की बात करें तो स्टारकास्ट बड़ी है लेकिन कोई भी एक्टर पर्दे पर असरदार नज़र नहीं आया है. सैफ अली खान और अर्जुन कपूर का किरदार दूर दूर तक राजस्थान से जुड़ा नज़र नहीं आ रहा था. वे पूरी तरह से शहरी युवा ही अपने हाव भाव और संवाद से नजर आए हैं. सैफ की भाषा कंफ्यूज करती है. इसे स्क्रिप्ट की खामी ही कह सकते हैं कि फिल्म में फिर भी अभिनेताओं को करने को कुछ तो है लेकिन अभिनेत्रियों यानी जैकलीन और यामी गौतम के लिए कुछ भी नहीं है.
परफॉर्मेंस पर आधारित दृश्य तो दूर की बात है. नाच गाना और रोमांस भी नहीं है. राजपाल यादव के हिस्से में तो एक ही सीन आया है. दिवंगत अभिनेता अमित मिस्त्री को पर्दे पर देखना भावनात्मक सा लगता है. जेमी लीवर ने जरूर अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.