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कौशल विकास जरूरी

केवल सरकार के स्तर पर कौशल विकास की संभावनाओं को साकार नहीं किया जा सकता है. इसमें निजी क्षेत्र को भी सकारात्मक भूमिका निभानी होगी.

आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को साकार करने तथा वैश्विक आपूर्ति शृंखला में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करने के लिए गुणवत्तापूर्ण वस्तुओं का उत्पादन आवश्यक है. इसके लिए देश की कार्य शक्ति की कौशल क्षमता के विकास पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ के 80वें संस्करण में इसे रेखांकित करते हुए कहा है कि अब कौशल विकास को महत्व देने का समय आ गया है.

इस संबोधन में उन्होंने अर्थव्यवस्था के विकास में स्टार्टअप के योगदान की भी चर्चा की. नये उद्यमों में तकनीक की प्रधानता को देखते हुए भी विभिन्न प्रकार के कुशल कामगारों की आवश्यकता है. वर्ष 2009 में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम की स्थापना हुई थी, लेकिन कार्यक्रमों को लागू करने की गति धीमी रही थी. साल 2015 में केंद्र सरकार ने 2022 तक 50 करोड़ युवकों को प्रशिक्षित करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया.

इस पहल में राज्य सरकारों की उल्लेखनीय भूमिका सुनिश्चित की गयी थी. उस समय प्रकाशित रिपोर्टों के अनुसार, एक-तिहाई से भी कम छात्रों में नियोक्ताओं की अपेक्षाओं के अनुरूप कौशल था. योजना आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, कार्यबल के केवल दो प्रतिशत हिस्से को ही पेशेवर प्रशिक्षण प्राप्त था. ऐसे में कौशल विकास को प्राथमिकता देना आवश्यक हो गया था क्योंकि अर्थव्यवस्था तेज गति से बढ़ रही थी तथा उद्योगों और उद्यमों के स्वरूप में बदलाव भी हो रहा था.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि इन कार्यक्रमों का लाभ मिलने लगा है, पर अभी भी अकुशल कामगारों की तादाद बहुत अधिक है. अत्याधुनिक तकनीक, विशेषकर डिजिटल प्रणाली, के आने के साथ काम करने के तौर-तरीकों में परिवर्तन हो रहा है. दीर्घकालिक दृष्टि से सरकार की यह पहल भी बेहद अहम है कि पिछले साल घोषित राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रारंभ से ही कौशल शिक्षा देने तथा पाठ्यक्रमों को रोजगारपरक बनाने का प्रावधान किया गया है.

सरकार कौशलयुक्त लोगों के स्वरोजगार या नया उद्यम शुरू करने के लिए आसान शर्तों पर वित्तीय सहायता मुहैया कराने की भी अनेक योजनाएं भी चला रही है. छोटे और मझोले उद्यम अर्थव्यवस्था का बड़ा आधार हैं. उनमें तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाने तथा कामगारों को प्रशिक्षित करने के कार्यक्रम भी हैं. यह समझना जरूरी है कि केवल सरकार के स्तर पर कौशल विकास की संभावनाओं को साकार नहीं किया जा सकता है.

इसमें निजी क्षेत्र को भी सकारात्मक भूमिका निभानी होगी. निजी क्षेत्र के संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए. हमारे देश में हर साल एक से डेढ़ करोड़ युवा रोजगार हासिल करनेवालों की सूची में शामिल हो जाते हैं. महामारी ने नयी चुनौतियां पैदा कर दी है. स्थानीय स्तर पर उत्पादन की संभावनाओं को देखते हुए विशेष योजनाएं तैयार की जानी चाहिए. कौशल विकास के लिए संसाधनों की उपलब्धता पर भी ध्यान देना होगा. इन उपायों से तथा श्रमबल के अनुभव को देखते हुए हम भविष्य के प्रति आश्वस्त हो सकते हैं.

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