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ISIS-K के निशाने पर अफगान में सिख व हिंदू, तालिबानी कब्जे के बाद काबुल धमाका भारत के लिए खतरनाक संकेत तो नहीं?

चौंकाने वाली बात यह है कि अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकवादी संगठन आईएसआईएस-के ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की चेतावनी के बाद काबुल हवाई अड्डे पर दो आत्मघाती हमले को तब अंजाम दिया है.

वाशिंगटन/नई दिल्ली : अफगानिस्तान के काबुल स्थित हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर गुरुवार की शाम हुए लगातार दो आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन आईएसआईएस-के ने ली है. मीडिया की खबरों के अनुसार, अफगानिस्तान में सक्रिय इस आतंकवादी संगठन के निशाने पर सिख और अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के लोग हमेशा रहते हैं. कयास यह लगाया जा रहा है कि काबुल हवाई अड्डे पर आत्मघाती हमला करके आतंकवादी संगठन आईएसआईएस-के ने भारत को चेतावनी तो नहीं दी है?

चौंकाने वाली बात यह है कि अफगानिस्तान में सक्रिय आतंकवादी संगठन आईएसआईएस-के ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की चेतावनी के बाद काबुल हवाई अड्डे पर दो आत्मघाती हमले को तब अंजाम दिया है. हालांकि, मीडिया की खबरों में यह कहा जा रहा है कि काबुल हवाई अड्डे पर इस आतंकवादी संगठन ने अमेरिका और उसके सहयोगियों समेत निर्दोष नागरिकों पर हमला करने की फिराक में है.

समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत के दौरान यूएस मिलिट्री अकेडमी वेस्ट पॉइंट में आंतकवाद विषय की विशेषज्ञ अमीरा जदून ने बताया कि अफगानिस्तान में सक्रिय खूंखार आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ग्रुप से जुड़े आईएसआईएस-के कैसे काम करता है. इसके साथ ही, इस आतंकवादी संगठन ने अफगानिस्तान में खतरा कैसे पैदा किया?

कौन है आईएसआईएस-के?

मीडिया की खबरों के अनुसार, इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत को आईएसआईस-के, आईएसकेपी और आईएसके के नाम से भी जाना जाता है. यह अफगानिस्तान में सक्रिय इस्लामिक स्टेट आंदोलन से आधिकारिक रूप से जुड़ा हुआ है. इसे इराक और सीरिया में सक्रिय इस्लामिक स्टेट से मान्यता मिली हुई है. आईएसआईए-के की स्थापना आधिकारिक रूप से जनवरी 2015 में की गई. अपनी स्थापना के कुछ समय बाद ही इसने उत्तरी और उत्तर-पूर्वी अफगानिस्तान के विभिन्न ग्रामीण जिलों पर अपनी पकड़ बना ली और अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान में घातक अभियान शुरू कर दिया.

अफगान-पाक में अल्पसंख्यक समुदाय पर हमला

अपनी स्थापना के बाद शुरुआती तीन साल में आईसआईएस-के ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के प्रमुख शहरों में रह रहे अल्पसंख्यक समुदाय, सार्वजनिक स्थलों और संस्थानों तथा सरकारी संपत्तियों को निशाना बनाकर कई हमले किए, लेकिन अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन तथा उसके अफगान साझेदारों के सामने यह समूह अपनी जमीन खोने लगा और इसका नेतृत्व धीरे-धीरे कमजोर पड़ता गया. नतीजतन, वर्ष 2019 के अंत और 2020 की शुरुआत में इसके 1,400 से अधिक लड़ाकों और उनके परिवारों ने अफगान सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.

कैसे हुई आईएसआईएस-के की स्थापना?

मीडिया की खबरों अनुसार, आईएसआईएस-के की स्थापना पाकिस्तानी तालिबान, अफगानिस्तानी तालिबान और इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान के पूर्व सदस्यों ने की थी. समय के साथ इस आतंकवादी संगठन ने दूसरे टेररिस्ट ग्रुप के आतंकवादियों को अपने साथ मिला लिया. इस समूह की एक सबसे बड़ी ताकत इसके लड़ाकों और कमांडरों का स्थानीय हालात से वाकिफ होना है.

सबसे पहले नंगरहार प्रांत में पकड़ बनाई मजबूत

आईएसआईएस-के ने सबसे पहले नंगरहार प्रांत के दक्षिणी जिलों में अपनी पकड़ बनानी शुरू की थी. नंगरहार प्रांत पाकिस्तान से सटी अफगानिस्तान की उत्तर-पूर्वी सीमा पर स्थित है. कभी आतंकवादी संगठन अलकायदा का गढ़ रहा तोरा-बोरा भी इसी इलाके में आता है. आईएसआईएस-के ने सीमा पर अपनी स्थिति का इस्तेमाल पाकिस्तान के कबायली इलाकों से आपूर्ति और आतंकवादियों को भर्ती करने में किया. इसके साथ ही, उसने यहां के दूसरे स्थानीय टेररिस्ट ग्रुप्स से हाथ भी मिलाकर उनकी महारत का इस्तेमाल किया.

इस्लामिक स्टेट से मिला धन और प्रशिक्षण

विशेषज्ञों के हवाले से मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि इस आतंकवादी संगठन को इराक और सीरिया में सक्रिय इस्लामिक स्टेट ग्रुप से धन, सलाह और ट्रेनिंग हासिल हुआ है. कुछ विशेषज्ञों का तो यह भी मानना है कि इस आतंकवादी संगठन को 10 करोड़ अमेरीकी डॉलर की मदद मिली.

क्या हैं इसके उद्देश्य और रणनीति?

आईएसआईएस-के की सामान्य रणनीति इस्लामिक स्टेट आंदोलन के लिए मध्य और दक्षिण एशिया में अपनी तथाकथित खिलाफत का विस्तार करना है. इसका उद्देश्य इस क्षेत्र में सबसे प्रमुख जिहादी संगठन के रूप में खुद को मजबूत करना है. कुछ हद तक इससे पहले आए जिहादी समूहों की विरासत को बरकरार रखना है. समूह अनुभवी लड़ाकों के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों के युवाओं से भी जिहाद में शामिल होने की अपील करता है.

कौन-कौन हैं इसके निशाने पर?

मीडिया की खबरों के अनुसार, आतंकवादी संगठन आईएसआईएस-के के निशाने पर आमतौर पर अफगानिस्तान की अल्पसंख्यक हजारा और सिख जैसी आबादी रहती है. इसके साथ ही, यह पत्रकारों, सहायता कर्मियों, सुरक्षा कर्मियों और सरकारी ढांचे को भी निशाना बनाता है.

तालिबान से क्या हैं संबंध?

आईएसआईएस-के अफगान तालिबान को अपने रणनीतिक विरोधी के रूप में देखता है. यह तालिबान को दुष्ट राष्ट्रवादियों के रूप में देखता है, जिसका उद्देश्य केवल अफगानिस्तान की सीमाओं में सरकार का गठन करना है. यह इस्लामिक स्टेट आंदोलन के उद्देश्य के विपरीत है, जिसका लक्ष्य वैश्विक खिलाफत स्थापित करना है.

तालिबानी ठिकानों पर करता है हमला

आईएसआईएस-के अपनी स्थापना के बाद से पूरे देश में तालिबान के ठिकानों को निशाना बनाते हुए अफगान तालिबान सदस्यों को अपने साथ मिलाने की कोशिश कर रहा है. आईएसआईएस-के के प्रयासों को कुछ सफलता मिली है, लेकिन तालिबान ने आईएसआईएस-के लड़ाकों और ठिकानों पर हमलों और अभियानों को आगे बढ़ाकर समूह की चुनौतियों का सामना करने में कामयाबी हासिल की है.

कई बड़े हमले करने का दिया है संकेत

मीडिया की खबरों के अनुसार, आईएसआईए-के पहले की तुलना में काफी कमजोर हो चुका है. फिलहाल, उसका लक्ष्य अपने लड़ाकों की फौज को फिर से खड़ा करना है. इसके साथ ही, उसने बड़े हमले करने का संकेत दिया है. ऐसा करने के पीछे उसका एकमात्र उद्देश्य अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अपनी मौजूदगी को बनाए रखना है.

अफगानिस्तान के लिए बड़ा खतरा

विशेषज्ञों के हवाले से मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, अफगानिस्तान में आईएसआईएस-के ने खुद को कहीं अधिक बड़ा खतरा साबित कर दिया है. अफगानिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यक समुदाय और असैन्य संस्थाओं के खिलाफ हमलों के अलावा इस आतंकवादी संगठन ने अंतरराष्ट्रीय सहायता कार्यकर्ताओं, बारूदी सुरंग हटाने के प्रयासों को निशाना बनाया है.

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काबुल हवाई हमला खतरे की घंटी

मीडिया की खबरों के अनुसार, यहां तक कि जनवरी 2021 में उसने काबुल में टॉप अमेरिकी दूत की हत्या करने की भी कोशिश की. अभी यह बताना जल्दबाजी होगी कि अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी से आईएसआईएस-के को क्या फायदा होगा, लेकिन काबुल हवाई अड्डे पर इस आतंकवादी संगठन की ओर से किया गया हमला खतरे को दर्शाता है.

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