मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है. इसे हजरत इमाम हुसैन की शहादत की वजह से मुहर्रम को गम की महीना भी कहा जाता है. शिया मुस्लिम समुदाय अली के बेटे हुसैन इब्न अली और कर्बला युद्ध से पैगंबर मुहम्मद के नवासे के निधन पर शोक व्यक्त करता है. कर्बला इराक में तीर्थयात्रा का एक प्रसिद्ध गंतव्य है. हुसैन इब्न अली 680 ई. में कर्बला में शहीद हुए थे.
क्यों मनाया जाता है मुहर्रम
इस्लामिक मान्यताओं में मुहर्रम के महीने में दसवें दिन ही इस्लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपनी जान कुर्बान कर दी थी. इसे आशूरा भी कहा जाता है. इसलिए मुहर्रम के दसवें दिन को बहुत खास माना जाता है. हजरत इमाम हुसैन का मकबरा इराक के शहर कर्बला में उसी जगह है जहां इमाम हुसैन और यजीद की जंग हुई थी. ये जगह इराक की राजधानी बगदाद से अनुमानित 120 किलोमीटर दूर है. इस्लामिक इतिहास अनुसार, मोहर्रम के 10वें दिन पैंगबर मूसा ने मिस्र के फिरौन पर जीत हासिल की थी. जिसके याद में मुसलमान समुदाय रोज़ा रखते हैं. कई लोग इस माह में पहले 10 दिनों के रोजे रखते हैं. जो लोग पूरे 10 दिनों को रोजे नहीं रख पाते, वो 9वें और 10वें दिन रोजे रखते हैं.
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कर्बला को कर्बला के शहंशाह पर नाज़ है
उस नवासे पर मुहम्मद को नाज़ है
यूं तो लाखों सिर झुके सज़दे में लेकिन
हुसैन ने वो सज़दा किया, जिस पर खुदा को नाज़ है
सजदे में जा कर सिर कटाया
हुसैन ने नेजे पे सिर था
और ज़ुबान पे अय्यातें कुरान
इस तरह सुनाया हुसैन ने
मुहर्रम पर याद करो वो कुर्बानी
जो सिखा गया सही अर्थ इस्लामी
ना डिगा वो हौसलों से अपने
काटकर सर सिखाई असल जिंदगानी
फिर आज हक़ के लिए जान फिदा करे कोई,
वफ़ा भी झूम उठे यूँ वफ़ा करे कोई,
नमाज़ 1400 सालों से इंतजार में है,
हुसैन की तरह मुझे अदा करे कोई
पानी का तलब हो तो एक काम किया कर,
कर्बला के नाम पर एक जाम पिया कर,
दी मुझको हुसैन इब्न अली ने ये नसीहत,
जालिम हो मुकाबिल तो मेरा नाम लिया कर
Posted By: Shaurya Punj