18.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

शिक्षा की दो नयी प्रवृत्तियां

पांच साल में उच्चतर शिक्षा में दाखिले अगर 11.4 फीसदी बढ़े, तो लड़कियों के दाखिले में 16.2 फीसदी वृद्धि हो गयी. सबसे ज्यादा बढ़ोतरी तो पीएचडी के दाखिले में हुई (60 फीसदी) जिसे नौकरी की मजबूरी, बेरोजगारी का समय काटने का जतन या शोध की बढ़ती भूख में से क्या माना जाये, हर कोई बता सकता है.

महामारी, टीकाकरण और राजनीतिक उठापटक की भारी-भरकम खबरों के बीच अगर बारहवीं की परीक्षा और परिणाम संबंधी खबरों को मीडिया में जगह मिल गयी, तो खैर ही मानना चाहिए. लेकिन इस दौरान दो महत्वपूर्ण रिपोर्टों का दब जाना चिंता पैदा करता है. ये दो, सरकार द्वारा 70 मानकों पर तैयार स्कूल रैंकिंग रिपोर्ट और उच्चतर शिक्षा से संबंधित पांच साल वाली रिपोर्ट है.

पहली रिपोर्ट बताती है कि पंजाब के सरकारी स्कूल सबसे अच्छा चल रहे हैं. दूसरी बताती है कि उच्चतर शिक्षा में लड़कियों की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है और इंजीनियरिंग की पढ़ाई का जोर कम हुआ है. पहली पर तो दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने थोड़ा हो-हल्ला मचाया भी, लेकिन उसे भी मीडिया में जगह नहीं मिली. मनीष दिल्ली के सरकारी स्कूलों को दुरुस्त करने में मन से जुटे हुए हैं, इसलिए वे दिल्ली को पांचवें स्थान पर देखकर जरूर निराश होंगे, जबकि बच्चों के अंक और नतीजों में काफी सुधार हुआ है.

दिल्ली के उप मुख्यमंत्री की मुख्य शिकायत पंजाब में सरकारी स्कूलों को सुधारने के नाम पर पैसे वालों और निजी कंपनियों के हवाले करने और आंकड़ों में हेराफेरी की थी. पंजाब के प्रधान सचिव, शिक्षा कृष्ण कुमार ने दावा भी किया कि उन्होंने भवन निर्माण से लेकर स्कूलों में अन्य सुविधाएं जुटाने में आम लोगों, सांसदों-विधायकों के कोष, पंचायतों और कंपनियों की मदद ली, शिक्षकों की तैनाती और तबादले की नीति में सख्ती की और कोरोना काल में कंप्यूटर और इंटरनेट के जरिये ‘घर बैठे सिखया’ जैसी योजना चलायी.

कुछ साल पहले एक कार्यशाला में हिस्सा लेने उच्च अध्ययन संस्थान शिमला गया था, तब एक स्वयंसेवी संस्था के सर्वेक्षण की रिपोर्ट पेश की गयी. उसमें कहा गया था कि सरकारी धन, पंचायतों और सांसद-विधायक निधि के धन से पंजाब के सरकारी स्कूलों के भवन वगैरह चाक-चौबंद हैं, अध्यापकों की कमी नहीं है, दोपहर का भोजन मिलता है, लेकिन स्कूलों में ज्यादातर दलित बच्चों के ही आने से उनका विकास बहुत एकांगी और असंतुलित हो रहा है. बड़ी जातियों के बच्चे अंग्रेजी मीडियम वाले प्राइवेट स्कूलों में जाते हैं.

पंजाब के शिक्षा सचिव ने भी सफलता के पीछे प्राथमिक स्तर से ही शिक्षा का माध्यम बदलकर अंग्रेजी करने को मुख्य कारक माना. उन्होंने बताया कि अब हम सिर्फ 40 फीसदी साधन ही सरकार की तरफ से दे रहे हैं और हमने 19,298 स्कूलों में से 67.2 फीसदी को निजी सहयोग से स्मार्ट स्कूलों में बदल दिया है. पंजाब के बाद चंडीगढ़ का नंबर है. तमिलनाडु मिड-डे मील और बच्चों के दाखिले के मामले में काम कर रहा है.

हिमाचल का रिकॉर्ड भी अच्छा है. पंजाब को इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए तय 150 अंकों में पूरे 150 अंक मिले हैं. इसी पंजाब की शिक्षा के 25 साल पहले के आंकड़ों पर गौर करते हुए यह खुशी और हैरानी हो रही थी कि उच्च शिक्षा और मेडिकल-इंजीनियरिंग की पढ़ाई में लड़कियों की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही थी.

तब एक जानकार ने ध्यान दिलाया कि डॉक्टरी, इंजीनियरिंग और अध्यापन जैसे पेशों में लड़कियों का यही अनुपात न होना पंजाबी समाज की इस मानसिकता को बताता है कि वह औरतों से काम कराना नहीं चाहता और डॉक्टर या इंजीनियर बहु या पत्नी होना शान की चीज मानता है. स्नातक होने के बाद लडके अपने काम-धंधे में लग जाते हैं, जबकि शादी का इंतजार करती लड़कियां एमए और दूसरी बड़ी डिग्रियां लेती जाती हैं.

पांच साल में उच्चतर शिक्षा में दाखिले अगर 11.4 फीसदी बढ़े, तो लड़कियों के दाखिले में 16.2 फीसदी वृद्धि हो गयी. सबसे ज्यादा बढ़ोतरी तो पीएचडी के दाखिले में हुई (60 फीसदी) जिसे नौकरी की मजबूरी, बेरोजगारी का समय काटने का जतन या शोध की बढ़ती भूख में से क्या माना जाये, हर कोई बता सकता है. कॉमर्स की पढ़ाई में पांच साल में दस फीसदी का फासला भरकर लड़कियां लड़कों की बराबरी पर आ गयी हैं.

जेंडर पैरिटी इंडेक्स भी तेजी से सुधरा है. लड़कों का सकल पंजीकरण दर 2015-16 के 25.4 फीसदी से बढ़कर अगर 26.9 फीसदी हुआ है तो इसी अवधि में लड़कियों का पंजीकरण दर 23.5 से बढ़कर 27.3 फीसदी हो गया है. और इस जेंडर वाली बात से इतर यह सूचना भी महत्वपूर्ण है कि पांच साल में बीटेक और एमटेक में दाखिले कम हो गये हैं.

शिक्षा से संबंधित कई और खबरें आयी हैं- दुनिया के प्रमुख शिक्षण संस्थाओं की रैंकिंग से लेकर गुजरात के स्कूली शिक्षा में सबसे फिसड्डी होने, दाखिलों के मामले में बिहार में काफी सुधार होने जैसी खबरों के साथ कोरोना काल में दोपहर का भोजन बंद होने से गरीब बच्चों की तकलीफ तक के. लेकिन ये दो रपटें बहुत महत्व की हैं और इनकी दो बातों का सर्वाधिक महत्व हैं. इसमें पंजाब द्वारा प्राथमिक शिक्षा में अंग्रेजी माध्यम को अपनाने से मिली ‘सफलता’ चिंता का विषय होना चाहिए.

और अगर 25 साल पहले की तरह अभी भी लड़कियों की उच्च और तकनीकी शिक्षा का एक उद्देश्य बड़े घर में शादी और शान की गिनती कराने भर के लिए कोई बड़ी डिग्री का चलन बढ़ रहा है, तो यह चिंता का कारण है. यह आशंका इस चलते भी है क्योंकि कामकाजी आबादी में औरतों की हिस्सेदारी इसी तरह बढ़ती नजर नहीं आती. हाल के वर्षों में तो उसमें कमी ही आयी है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें