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आदिम जनजाति बहुल इलाका पेशरार का गांव अब भी विकसित नहीं, सड़क बिजली व पानी समेत कई चीजों का है अभाव

पुल-पुलिया के अभाव में बरसात में यहां के लोग झेलते है परेशानी, बगैर पुलिया के नदियों में आने-जाने को विवश हैं ग्रामीण

सेन्हा : आदिम जनजाति बहुल इलाका पेशरार में विकास कार्य अभी भी धरातल पर सही तरीके से नहीं उतर सका है. यह क्षेत्र कभी घोर उग्रवाद प्रभावित इलाका हुआ करता था. समय के साथ स्थितियां बदली और उग्रवादी गतिविधियों में कमी आयी है. इस क्षेत्र के लोग विकास से अब भी कोसों दूर है.

पेशरार जानेवाली मुख्य सड़क का तो काया कल्प हो गया, लेकिन ग्रामीण इलाके को प्रखंड मुख्यालय, जिला मुख्यालय व शहर से नहीं जोड़ा जा सका है. अभी भी इस क्षेत्र के लोग जंगलों में बने संकीर्ण रास्तों व बगैर पुलिया के नदियों में आने-जाने को विवश हैं. प्रखंड क्षेत्र के हिन्हें, गड़ातू, जुड़नी, पिरतौल, सनई जैसे गांवों का संपर्क पथ नहीं बन सका है.

पुल-पुलिया के अभाव में बरसात में यहां के लोग गांव से भी निकलने में परेशानी झेलते है. ग्रामीण अजय उरांव, प्रदीप उरांव, धनेश्वर खेरवार, आनंद लकड़ा, मनी असुर, राजू तुरी, लालो नगेसिया, रमेश उरांव, दीपक लोहरा, संजय उरांव ने बताया कि क्षेत्र में विकास का काम नहीं हो सका है. सड़क, बिजली व पानी की सुविधा इन क्षेत्रों में नहीं है. जिला मुख्यालय से 40-45 किमी दूर इस गांव के लोग आज भी बदतर जीवन जीने को विवश हैं.

स्वास्थ्य व्यवस्था के अभाव में मरीजों को परेशानी होती है. जड़ी-बूटी के भरोसे आज भी इस क्षेत्र के लोग हैं. इन गांवों में बीमार व प्रसव के लिए महिलाओं को हॉस्पीटल पहुंचाना कठिन काम है. पुल-पुलिया के अभाव में बाकी दिनों में तो लोग जैसे-तैसे काम चला लेते हैं, लेकिन बारिश के मौसम में उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है. बिजली नहीं रहने से जंगली जानवरों व सांप-बिच्छू के शिकार कई लोग होते हैं. जानकारी व सुविधा के अभाव में क्षेत्र के लोग की जान असमय चली जाती है. पेशरार प्रखंड में अधिकांश अन्य असुर, खेरवार, नगेसिया, तुरी, लोहरा, बिरहोर, परहिया समेत अन्य आदिम जनजाति के लोग रहते हैं.

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