आपके किचन में नमक (Salt) जरूर होगा. इसके बिना खाने का स्वाद अधूरा रह जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि नमक के साथ आप अपने भोजन में प्लास्टिक (Plastic) भी डाल रहें हैं. चौंक गए न? लेकिन यह सच है. शोधकर्ताओं ने टेबल सॉल्ट में माइक्रोप्लास्टिक (Microplastics) पाया है, जो एक सर्वव्यापी भोजन सामग्री है. इस प्रकार यह सुझाव देता है कि गुजरात की एकल-उपयोग सुविधा की लत इसे काटने के लिए वापस आ रही है.
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक, हाल ही में तमिलनाडु के तीन विश्वविद्यालयों ने नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च, गोवा के साथ मिलकर गुजरात और तमिलनाडु के नमक के नमूनों का अध्ययन किया. दोनों राज्य खाद्य नमक के प्रमुख उत्पादक हैं और इसे बनाने के लिए समुद्र पर निर्भर हैं.
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माइक्रोप्लास्टिक छोटे कण होते हैं, जो 100-200 माइक्रोमीटर जितने होते हैं. माइक्रोप्लास्टिक सिंगल-यूज या सामान्य प्लास्टिक वस्तुओं से दूर हो जाते हैं. इन वस्तुओं में पैकेजिंग सामग्री, कटलरी, सड़कों के लिए उपयोग किए जाने वाले पेंट, पॉलिएस्टर वस्त्र, मोती, मछली पकड़ने के जाल, उपकरण और सौंदर्य प्रसाधन आदि शामिल हैं.
शोधकर्ताओं के अनुसार, गुजरात नमक के नमूनों में कुल माइक्रोप्लास्टिक सामग्री 46-115 कण प्रति 200 ग्राम तक थी. तमिलनाडु के मामले में यह 23-101 कण प्रति 200 ग्राम के बीच था. चूंकि यह एक उभरता हुआ शोध है, इसलिए अनुमेय स्तरों को निर्धारित करने के लिए कोई संदर्भ सीमा उपलब्ध नहीं है. खाद्य नमक में पहचाने जाने वाले सबसे आम माइक्रोप्लास्टिक पॉलीइथाइलीन, पॉलिएस्टर और पॉलीविनाइल क्लोराइड थे.
तमिलनाडु के पेरियार विश्वविद्यालय (Periyar University) के भूविज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर ए विद्यासाकर ने कहा, माइक्रोप्लास्टिक फाइबर के स्रोत नमक उत्पादक कंपनियों की प्रसंस्करण और पैकेजिंग इकाइयां हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि हवाई कण एक अन्य स्रोत हो सकते हैं.
विद्यासाकर के अनुसार, अध्ययन में पाए गए कुल माइक्रोप्लास्टिक में से 74.3% लाल और नीले रंग के रेशेदार पदार्थ थे. उन्होंने कहा, हम चाहते हैं कि नमक का उत्पादन और पैकेज करने वाले राज्य माइक्रोप्लास्टिक को एक समस्या के रूप में पहचानें. साथ ही राज्य अपनी शोधन प्रक्रियाओं में सुधार करें.
एक अन्य शोधकर्ता, तमिलनाडु के मलंकारा कैथोलिक कॉलेज (Malankara Catholic College Tamil Nadu) के भूविज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर एस कृष्ण कुमार ने कहा, हमारी टीम ने गुजरात और तमिलनाडु के नमूनों में कणों की उपस्थिति पर एक आधारभूत अध्ययन किया. हमने अभी तक हमारे शरीर पर उनके प्रभावों की जांच नहीं की है. उन्होंने कहा कि हानिकारक परिणाम पूरी तरह से ज्ञात होने में एक दशक का समय लगेगा, लेकिन पहले हमें माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी को पहचानना होगा.
अन्य शोधकर्ता मद्रास विश्वविद्यालय (University of Madras) के के सुरेश कुमार, पी सरवनन और के कासिलिंगम थे. एस अंबालागन और एस श्रीनिवासलु, महासागर प्रबंधन संस्थान, अन्ना विश्वविद्यालय (Institute for Ocean Management, Anna University) के थे. शोध दल में पेरियार विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के एस कामराज और नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (National Centre for Polar and Ocean Research) के एन एस मगेश भी शामिल थे.
Posted by : Achyut Kumar