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क्या है धारा 66 ए, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी किया नोटिस

देश में इस समय सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) की धारा 66 ए (Section 66A) चर्चा में हैं. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इसे लेकर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया है और चार सप्ताह के अंदर जवाब दाखिल करने को कहा है.

देश में इस समय सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) की धारा 66 ए (Section 66A) चर्चा में हैं. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इसे लेकर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया है और चार सप्ताह के अंदर जवाब दाखिल करने को कहा है. यह नोटिस उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को भी जारी किया गया है. इसके साथ ही कोर्ट ने निष्क्रिय कानून (धारा 66 ए ) का उपयोग जारी रखने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की चेतावनी भी दी.

बता दें, यह नोटिस उस याचिका पर जारी किया गया है, जिसमें उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की गई है जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2015 में धारा 66ए को निरस्त करने के बावजूद कथित रूप से एफआईआर दर्ज करने में शामिल हैं.

जस्टिस आरएफ नरीमन और बीआर गवई की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा, न्यायपालिका हम अलग से देखेंगे क्योंकि यह मामला न केवल अदालतों से बल्कि पुलिस से भी संबंधित है. चूंकि पुलिस राज्य का विषय है, इसलिए यह बेहतर होगा कि सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित क्षेत्रों को पक्षकार बनाया जाए. कोर्ट ने चार सप्ताह बाद मामले की अगली तारीख तय की है.

जो हो रहा है, वह भयानक है

आईटी की धारा 66ए रद्द करने के बावजूद दर्ज हो रहे मामलोें पर न्यायमूर्ति नरीमन, न्यायमूर्ति गवई और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, यह चौंकाने वाला है. हम नोटिस जारी करेंगे. वहीं न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा, अद्भुत! जो हो रहा है, वह भयानक है.

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745 मामले अभी भी लंबित

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट गैर सरकारी संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (People Union for Civil Liberties) की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस याचिका में बताया गया है कि धारा 66 ए के निरस्त होने के सात साल बाद भी मार्च 2021 तक 11 राज्यों की जिला अदालतों में कुल 745 मामले अभी भी लंबित हैं. इन मामलों के आरोपियों पर आईटी अधिनियम की धारा 66 ए के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है.

बता दें कोर्ट का यह फैसला उस समय आया है, जब कुछ दिन पहले ही गृह मंत्रालय (Home Ministry) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह निर्देश दिया है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र के सभी पुलिस स्टेशनों में धारा 66 ए (Section 66A) of the के तहत मामले दर्ज न करें.

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सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने जताई थी हैरानी

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 5 जुलाई को इस बात पर हैरानी और स्तब्धता जाहिर की थी कि लोगों के खिलाफ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ए के तहत अब भी मुकदमे दर्ज हो रहे हैं, जबकि शीर्ष अदालत ने 2015 में ही इस धारा को अपने फैसले के तहत रद्द कर दिया था. पिछले महीने कोर्ट ने बताया था कि रद्द किए गए कानून के तहत 1,000 से अधिक नए मामले दर्ज किए गए हैं.

इस वजह से हटा धारा 66ए

मुंबई की कानून की छात्रा श्रेया सिंघल द्वारा चुनौती दिए जाने के बाद 24 मार्च, 2015 को धारा 66ए को हटा दिया गया था. श्रेया ने 2012 में एक याचिका दायर की थी. यह याचिका शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की मौत के बाद शहर के बंद की आलोचनात्मक टिप्पणी पोस्ट करने के लिए दो महिलाओं को गिरफ्तार करने के बाद दायर की गई थी.

क्या है धारा 66 ए

सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 66ए के तहत सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट करने पर तीन साल तक की कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान था. 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि इससे जनता के जानने का अधिकार प्रभावित होता है.

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Posted by: Achyut Kumar

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