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सुप्रीम कोर्ट: बिहार में पुलिस राज के हालात!साधारण और प्रभावशाली व्यक्ति की आजादी में नहीं कर सकते अंतर

सुप्रीम कोर्ट ने बगैर किसी प्राथमिकी के एक वाहन चालक को 35 दिन तक पुलिस हिरासत में रखने के मामले में पांच लाख रुपये का मुआवजा देने संबंधी पटना हाइकोर्ट के आदेश के खिलाफ बिहार सरकार की अपील शुक्रवार को खारिज कर दी. शीर्ष अदालत ने कहा कि एक वाहन चालक जैसे साधारण व्यक्ति और एक प्रभावशाली व्यक्ति को उसकी आजादी से वंचित करने के मामले में किसी प्रकार का विभेद नहीं किया जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट ने बगैर किसी प्राथमिकी के एक वाहन चालक को 35 दिन तक पुलिस हिरासत में रखने के मामले में पांच लाख रुपये का मुआवजा देने संबंधी पटना हाइकोर्ट के आदेश के खिलाफ बिहार सरकार की अपील शुक्रवार को खारिज कर दी. शीर्ष अदालत ने कहा कि एक वाहन चालक जैसे साधारण व्यक्ति और एक प्रभावशाली व्यक्ति को उसकी आजादी से वंचित करने के मामले में किसी प्रकार का विभेद नहीं किया जा सकता.

कोर्ट ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि एक दूध वैन के चालक को पिछले साल देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान बिना किसी कारण के हिरासत में लिया गया था. कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि बिहार राज्य में पुलिस राज चल रहा है.

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने शुरू में कहा कि बिहार सरकार को पिछले साल 22 दिसंबर के पटना हाइकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दायर नहीं करनी चाहिए थी.

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बिहार की ओर से पेश अधिवक्ता देवाशीष भरुका ने कहा कि राज्य ने थाना प्रभारी के खिलाफ कार्रवाई की है और अनुशासनात्मक कार्रवाई जारी है. एक चालक को पांच लाख रुपये का मुआवजा देय नहीं हो सकता है.

पीठ ने कहा कि चालक जैसे एक विनम्र, साधारण व्यक्ति और एक प्रभावशाली व्यक्ति को उसकी आजादी से वंचित करने के मामले में किसी प्रकार का विभेद नहीं किया जा सकता.

POSTED BY: Thakur Shaktilochan

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