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कोरोना काल में आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय की बढ़ी मुश्किलें, स्वरोजगार से जोड़ने की कर रहे हैं मांग

Jharkhand News, सरायकेला खरसावां न्यूज (शचिंद्र कुमार दाश) : झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के कुचाई, चांडिल व नीमडीह प्रखंड के कुछ गांवों में आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय के लोग निवास करते हैं. अब भी इन लोगों के सामने आजीविका एक बड़ी समस्या है. आदिम जनजाति समुदाय के लोग सरकार से आजीविका उपलब्ध कराने की आस लगाये बैठे हैं. अधिकतर आदिम जनजाति वर्ग के लोग जंगल व वनोत्पाद पर निर्भर हैं, लेकिन कोरोना काल में इनकी मुश्किलें बढ़ गयी हैं. ग्रामीणों ने बताया कि मुर्गा, बत्तख, सुकर पालन कर वे स्वरोजगार से जुड़ना चाहते हैं.

Jharkhand News, सरायकेला खरसावां न्यूज (शचिंद्र कुमार दाश) : झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले के कुचाई, चांडिल व नीमडीह प्रखंड के कुछ गांवों में आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय के लोग निवास करते हैं. अब भी इन लोगों के सामने आजीविका एक बड़ी समस्या है. आदिम जनजाति समुदाय के लोग सरकार से आजीविका उपलब्ध कराने की आस लगाये बैठे हैं. अधिकतर आदिम जनजाति वर्ग के लोग जंगल व वनोत्पाद पर निर्भर हैं, लेकिन कोरोना काल में इनकी मुश्किलें बढ़ गयी हैं. ग्रामीणों ने बताया कि मुर्गा, बत्तख, सुकर पालन कर वे स्वरोजगार से जुड़ना चाहते हैं.

आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय के अधिकतर लोग अब भी बांस व घास से विभन्न घरेलू सामग्रियों का निर्माण कर आजीविका चलाते हैं. कुचाई प्रखंड में रहने वाले बिरहोर समुदाय के लोग जहां पेड़ की छाल व सीमेंट की बोरी से रस्सी बनाने का काम करते हैं, जबकि चांडिल-नीमडीह प्रखंड के इस समुदाय के कुछ लोग बांस से हैंडीक्राफ्ट बनाते हैं. साथ ही इस समुदाय के लोग जंगल में सूखी लड़की चुन कर बेचने के साथ साथ पत्ता, दातुन आदि भी बाजार में बेच कर रोजी रोटी चलाते हैं.

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कुचाई की अरुवां पंचायत के जोड़ासरजम गांव स्थित आदिम जनजाति वर्ग के गांव के करीब 15-16 परिवार के करीब 75-80 लोग आदिम जन जनजाति बिरहोर समुदाय के हैं. गांव के बिरहोर समुदाय के लोगों के जीविकोपार्जन का एक मात्र साधन रस्सी तैयार कर बाजार में बेचना है. बिरहोर समुदाय के लोग जंगल से पेड़ों की छाल व सीमेंट के बोरा से धागा निकाल कर रस्सी बनाते हैं तथा इसे बाजार में बेचते हैं. इसी से ही उनकी रोजी रोटी चलती है. परंतु पिछले एक साल से कोविड-19 को लेकर हाट बाजार फीका पड़ने के इन लोगों के रोजगार पर असर पड़ा है. इसके अलावा बिरहोर परिवार के सदस्य जंगल से सूखी लकड़ी चुन कर बाजार में बेचते हैं. यहां के बिरहोर परिवारों ने सरकार से आजीविका उपलब्ध कराने की मांग की है. ग्रामीणों ने बताया कि मुर्गा, बतख, सुकर पालन कर वे स्वरोजगार से जुड़ना चाहते हैं.

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बिरहोर समुदाय के लोगों ने बताया कि उन्हें सरकार की ओर से शुरु की गयी डाकिया योजना के तहत हर माह समय पर चावल व अन्य सामान मिल जाता है. पीडीएस दुकानदार उनके घरों तक सामान पहुंचाता है. सरकार की ओर से गांव के बिरहोर समुदाय के लोगों के लिये बिरसा आवास बनाया गया है. जोड़ासरजम गांव में पांच में से तीन चापाकल खराब पड़ा हुआ है. सोलर ऊर्जा संचालित जलापूर्ति योजना व दो चापाकल चालू अवस्था में है. इसी से ग्रामीणों की प्यास बुझती है. जोड़ासरजम में लगायी गयी जलमीनार खराब पड़ी हुई है.

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राज्य सरकार के पीवीटीजी ग्रामोत्थान योजना के तहत पीवीटीजी ग्रामों का समेकित विकास करते हुए आदर्श गांव के रुप में विकसित की योजना पिछले वित्तीय वर्ष में तैयार की गयी थी. इसके तहत आदिम जनजाति बहुल गांवों में आवास, पेयजल, आजीविका, सोलर स्ट्रीट लाइट के अलावा बुनियादी संरचनाओं को सुदृढ़ करने व लोगों को आजीविका उपलब्ध कराने की योजना है. संबंधित विभाग की ओर से इसको लेकर प्रस्ताव भी राज्य सरकार के पास भेजा गया है.

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सरायकेला-खरसावां जिले के इन गांवों में आदिम जनजाति समुदाय के लोग रहते हैं.

कुचाई प्रखंड : जोड़ासरजम, चंपद व बिरगामडीह

चांडिल प्रखंड : आसनबनी, रामगढ़, कांदरबेड़ा, जामडीह, कदमझोर, मकुलाकोचा, काठजोड़, माचाबेड़ा, दिगारदा, कदमबेड़ा, आमकोचा, डुंगरीडीह, बाडेदा, पासानडीह, घुंघुकोचा व कोडाबुरु

नीमडीह प्रखंड : उगडीह, बिंदुबेडा, फाडेंगा, पोडाडीह, हाडुबेडा, सामानपुर, भांगाठ, माकुला, बुरुडीह, बाडेदा, चालियामा, डुमरडीह व तनकोचा

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Posted By : Guru Swarup Mishra

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