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पश्चिम बंगाल में प्रदूषण खत्म करने के लिए सीएनजी बसें उतारने की तैयारी

सीएनजी से सरकारी बसों को चलाने का लक्ष्य रखा गया है. वहीं, दो साल में सभी निजी बसों को सीएनजी से चलाये जाने की योजना है.

कोलकाताः पश्चिम बंगाल में प्रदूषण को नियंत्रित और खत्म करने के लिए सड़कों पर सीएनजी (कंप्रेस्ड नेचुरल गैस) बसें उतारने की तयारी चल रही है. राज्य परिवहन विभाग सभी सरकारी व निजी बसों को सीएनजी से चलाने की योजना पर कार्य कर रहा है. महानगर से परिवहन विभाग की इस योजना का शुभारंभ अगले छह माह में होगा.

सीएनजी से सरकारी बसों को चलाने का लक्ष्य रखा गया है. वहीं, दो साल में सभी निजी बसों को सीएनजी से चलाये जाने की योजना है. पर, निजी बसों को सीएनजी में बदला जा सकता है या नहीं, यह बड़ा सवाल है. इस पर विशेषज्ञों से विचार-विमर्श किया जा रहा है.

वित्तीय मदद देगी सरकार

प्रदूषण नियंत्रण के लिए सीएनजी से वाहन चलाना जरूरी है. पर लॉकडाउन के कारण बस मालिकों की दशा खराब है. वे घाटे में चल रहे हैं. ऐसे में बसों को सीएनजी में बदलना आसान नहीं है. इस मद में बस मालिकों के हित में राज्य सरकार 50% खर्च वहन करेगी. परिवहन विभाग के अधिकारी ने बताया कि कसबा स्थिति परिवहन विभाग-2 कार्यालय परिसर में सीएनजी गैस रीफिलिंग सेंटर बनेगा.

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यदि सब ठीक रहा, तो अगले छह माह में महानगर में सीएनजी चालित सरकारी बसें चलने लगेंगी. पर ऐसी निजी बसें चलाने में अभी दो वर्ष लग सकते हैं. तब तक आधारभूत ढांचा तैयार होगा. कई जगहों पर सीएनजी रीफिलिंग सेंटर बनेंगे.

250 से अधिक रीफिलिंग स्टेशन की जरूरत

परिवहन विभाग के अनुसार महानगर की सड़कों पर चलनेवाली निजी व मिनी बसों की संख्या करीब छह हजार है. जबकि कोलकाता में सरकारी बसों की संख्या लगभग 2300 है. ऐसे में कोलकाता में 250 से अधिक रीफिलिंग सेंटर तैयार करने होंगे.

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आधारभूत ढांचा तो बने : बस मालिक

ज्वाइंट काउंसिल ऑफ बस सिंडिकेट के महासचिव तपन कुमार बनर्जी मानते हैं कि पहले सरकार सीएनजी बसों के लिए जरूरी आधारभूत ढांचा तो बनाये. इसकी कोशिशि वाममोर्चा के शासनकाल में भी हुई थी. सीएनजी से होनेवाले फायदे व नुकसान पर भी विचार करना होगा.

उधर, सिटी सब-अर्बन बस सर्विस के महासचिव टीटू साहा उक्त योजना की सराहना करते हैं, पर महानगर में 300 से अधिक रीफिलिंग सेंटर बनाने होंगे, जो आसान नहीं है. साथ ही डीजल चालित बसों को सीएनजी में बदलना राज्य सरकार की वित्तीय मदद के बगैर मुश्किल है.

Posted By: Mithilesh Jha

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