Jharkhand Govt Job News रांची : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य में नियुक्ति करने का एलान किया है. 2021 को नियुक्ति का वर्ष बताया है. राज्य गठन के बाद से ही नियोजन व स्थानीय नीति कानूनी पेच में उलझती रही है. वर्तमान सरकार के लिए नीतियों का पेच सुलझाना चुनौती होगी. ठोस नियोजन नीति के बिना राज्य में बड़ी संख्या में नियुक्तियां संभव नहीं है. पिछले 21 वर्षों से सर्वमान्य नीति नहीं बन पायी है. पूर्ववर्ती रघुवर दास की सरकार ने वर्ष 2016 में नियोजन नीति बनायी. राज्य गठन के 16 वर्ष बाद बनी भी, लेकिन यह विवादों में घिर गयी. 13 अनुसूचित जिला और 11 गैर अनुसूचित जिला के लिए अलग-अलग नीतियां बनायीं गयीं.
अनुसूचित जिला में तृतीय और चतुर्थ वर्ग की नौकरियों को स्थानीय के लिए रिजर्व कर दिया, लेकिन 11 जिलों में स्थानीय की बाध्यता नहीं थी. इसके आधार पर हुई 13 जिला की नियुक्ति कोर्ट में फंस गयी. दो अलग नीति का विरोध हुआ, तो बाद में कमेटी बनायी गयी. हालांकि कमेटी की अनुशंसा के बाद सभी 24 जिलों में तृतीय व चतुर्थ वर्ग की नौकरियों को 10 वर्षों के लिए स्थानीय निवासियों के लिए आरक्षित कर दिया गया. जेपीएससी का मामला हो या कर्मचारी चयन आयोग से की गयी नियुक्तियां, सब फंसते रहे हैं.
वर्ष 2016 में रघुवर दास की सरकार ने राज्य गठन के बाद पहली बार स्थानीय नीति बनायी थी. पूर्ववर्ती सरकार की नीतियों पर सवाल उठते रहे. तत्कालीन भाजपा के विधायकों ने भी तय किये गये कट-ऑफ डेट पर सवाल उठाये थे. भाजपा के 26 विधायकों ने लिखित रूप से सरकार के सामने आपत्ति जतायी थी. रघुवर सरकार के बाद हेमंत सोरेन ने सत्ता संभाली, तो पूर्व सरकार की स्थानीय नीति को रद्द कर दिया. स्थानीय नीति को लेकर झारखंड में राजनीतिक उठा-पटक होती रही है. सरकारें बदल गयीं, लेकिन नीति नहीं बन पायी़
वर्ष 2014 में हेमंत सोरेन ने अपनी सरकार में स्थानीय नीति बनाने का प्रयास किया था. उस समय स्थानीय नीति के लिए एक कमेटी बनायी गयी थी. डेढ वर्ष के कार्यकाल में श्री सोरेन ने प्रयास किया था. सरकार का गठन स्थानीय नीति की उठा-पटक पर ही हुआ था. कमेटी ने ड्राफ्ट भी तैयार किया था, लेकिन इस पर सर्वसम्मति से राय नहीं बन पायी. जनवरी 2014 को कमेटी का गठन किया गया था़ तत्कालीन मंत्री स्व राजेंद्र प्रसाद सिंह संयोजक बनाये गये थे़ वहीं तत्कालीन मंत्री गीता श्री उरांव, चंपई सोरेन, सुरेश पासवान, विधायक लोबिन हेंब्रम, बंधु तिर्की, विद्युतवरण महतो, डॉ सरफराज अहमद व संजय सिंह यादव को सदस्य बनाया गया था.
11 अनुसूचित जिला में तृतीय व चतुर्थ वर्ग की नौकरियों को स्थानीय के लिए रिजर्व कर दिया, लेकिन 11 जिलों में स्थानीय की बाध्यता नहीं थी. फलत: नियुक्ति कोर्ट में फंसा. दो अलग-अलग नीति का विरोध हुआ, तो बाद में कमेटी बनायी गयी. हालांकि कमेटी की अनुशंसा के बाद सभी जिलों में तृतीय व चतुर्थ वर्ग की नौकरियों को 10 वर्षों के लिए स्थानीय निवासियों के लिए आरक्षित कर दिया गया
वर्ष 2011 में अर्जुन मुंडा की सरकार ने भी नियोजन नीति व स्थानीय नीति को परिभाषित करने के लिए एक समिति का गठन किया था. कमेटी ने दूसरे राज्यों की स्थानीय नीति का अध्ययन भी किया था. उस समय कमेटी में वर्तमान मुख्यमंत्री व तत्कालीन उपमुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व सुदेश कुमार महतो शामिल थे. कमेटी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची. तत्कालीन शिक्षा मंत्री बैद्यनाथ राम भी कमेटी के सदस्य थे.
राज्य गठन के बाद बिहार सरकार के श्रम एवं नियोजन विभाग के परिपत्र 03.03.1982 को स्वीकार करते हुए अधिसूचना जारी की थी. बिहार सरकार के पत्र के आधार पर स्थानीय व्यक्ति की परिभाषा का आधार जिला को माना गया
अगस्त 2002 को बाबूलाल मरांडी की सरकार ने स्थानीय व्यक्ति की परिभाषा एवं प्राथमिकता को निर्धारित किया. लेकिन हाइकोर्ट में जनहित याचिकाओं की सुनवाई के बाद 27 नंबर 2002 को खंडपीठ ने उसे निरस्त कर दिया.
27.06.2008 को सरकार ने पहले बनायी गयी कमेटी को पुनर्गठित किया.
वर्ष 2011 में सरकार ने एक बार फिर समिति का गठन किया
Posted By : Sameer Oraon